मध्यप्रदेश में 37420 वर्ग किमी. जंगल का निजीकरण

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शुरू हुआ विरोध शुरू

जनपथ टुडे, भोपाल, 20, नवम्बर 2020, मध्य प्रदेश के करीब 94,689 वर्ग किलोमीटर जंगल में से 37,420 स्क्वायर किलोमीटर जंगल के निजीकरण के खिलाफ विरोध शुरू हो गया है। आदिवासीयो से लेकर बुद्धिजीवी वर्ग तक सभी लोग जंगल के निजीकरण को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।

मध्य प्रदेश के मंत्रालय एवं विंध्याचल से खबर आई है कि शिवराज सिंह चौहान सरकार ने वन विभाग से जंगल के बारे में डिटेल जानकारी मांगी है। सरकार जंगलों को PPP मॉडल यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनशिप मॉडल के तहत निजी कंपनियों को देने की योजना बना रही है। इस खबर के बाद जंगल में रहने वाले आदिवासियों के अलावा शहरों में रहने वाले बुद्धिजीवी भी सरकार के प्रति असहमति व्यक्त कर रहे हैं।

मध्य प्रदेश में जंगल की स्थिति

मध्यप्रदेश में वन विभाग के पास लगभग 65000 वर्ग किलोमीटर का जंगल है। इसमें से लगभग 1000 वर्ग किलोमीटर संरक्षित वन क्षेत्र है। एक हिस्से में राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य और सेंचुरी आदि हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश की 94,689 वर्ग किलोमीटर जमीन वन क्षेत्र के लिए छोड़ी गई है। इसमें से 37,420 वर्ग किलोमीटर का इलाका बिगड़ा वन क्षेत्र है यानी इस जमीन पर वृक्ष कम और कटीली झाड़ियां या अनुपयोगी खरपतवार ज्यादा है। सरल शब्दों में कहें तो वन विभाग हर साल वृक्षारोपण करने के बावजूद 37420 वर्ग किलोमीटर की जमीन पर जंगल खड़ा नहीं कर पाया है।

वन मंत्री ने प्रेस नोट जारी करके सरकार का स्टैंड बताया

मध्य प्रदेश के वनमंत्री विजय शाह ने एक विज्ञप्ति जारी कर बताया है कि ‘प्रदेश के बिगड़े वनक्षेत्रों को तेजी से पुनर्स्थापित करने और इनमें सुधार करने के उद्देश्य से वन विभाग द्वारा निजी निवेश को जिम्मा सौंपने की योजना बनायी गई है। इसका प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा जाएगा और वहां से मंजूरी मिलने के बाद निजी निवेश को आमंत्रित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।’ वनमंत्री के अनुसार, निजी कंपनियों के साथ अनुबंध की अवधि 30 साल होगी। निजी निवेशक से अनुबंध के तहत प्राप्त होने वाला 50 फीसदी हिस्सा राज्य शासन द्वारा ग्राम वन समिति या ग्राम सभा को दिया जाएगा।

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