पाटनगढ़ में “बाना वाद्य यंत्र” का आयोजन हुआ संपन्न

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जनपथ टुडे, डिंडोरी, करंजिया विकासखंड के करीब स्थित ग्राम पाटनगढ़ में आज बाना वाद्य और संगीत का कार्यक्रम पदम श्री भज्जू श्याम द्वारा आयोजित किया गया । श्री श्याम ने बताया कि बाना वाद्य के माध्यम से लोक कलाकार सृष्टि की उत्पत्ति, जीव जंतु, प्रकृति और जीवन के साथ साथ गोंड राजा, महाराजाओं के बारे में वर्णन करते हैं। संगीत की यह विद्या आदिवासी क्षेत्रों में पुरातन काल से प्रचलित रही है।

अब यह प्राचीन आदिवासी संस्कृति और उसके कलाकार विलुप्त होते जा रहे हैं श्री भज्जू श्याम द्वारा इस कला में महारत प्राप्त कलाकारों को अमरपुर विकासखंड के ग्राम सक्का से आमंत्रित कर ग्राम में स्थित देवराज, ठाकुर देव मंच पर बाना संगीत कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें लोक कलाकार प्रेम सिंह धुर्वे, रूप सिंह धुर्वे, धर्म सिंह धुर्वे, बाबूराम वरकड़े, कुवर सिंह ने पाटन में अपनी कला लोगों के सामने प्रस्तुत की। श्री श्याम के अनुसार इस आयोजन के पीछे मूल कारण अपने गृह गांव के लोगों को इस लुप्त होती आदिवासी संस्कृति से परिचित करवाना और इसके संरक्षण की दिशा में एक छोटा सा प्रयास किया जाना है। जब लोग सुनेंगे समझेंगे तभी इसका संरक्षण संभव होगा। उन्होंने बताया किल हमारा गांव मूलतः कलाकारों की भूमि है जहां चित्रकारों की बड़ी संख्या है मेरा उद्देश्य कला की समझ रखने वाले इन लोगों को बाना वाद्य यंत्र और संगीत की बारीकियों से अवगत कराना है। आयोजन में आज लोगों ने रुचि के साथ संगीत और आदिवासी संस्कृति से सतत जुड़े संगीत का आनंद उठाया।

पदम श्री भज्जू सिंह श्याम

 

40 वर्षीय श्री भज्जू सिंह श्याम आदिवासी संस्कृति की पहचान है आदिवासी चित्र कला में पारंगत भाइयों से अनुरोध है डिंडोरी जिले की करंजे जनपद मुख्यालय करीब स्थित पाटन गढ़ गांव के रहने वाले हैं लोग चित्रकार घनश्याम के चित्र किताब का रूप ले चुके हैं टंडन जंगल बुक की 3000 से भी अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं यह किताब पांच विदेशी भाषाओं प्रकाशित हो चुकी है इन दिनों श्री भज्जू सिंह श्याम अपने ग्राम पाटन में हैं और उनके द्वारा लोक संस्कृति के प्रचार-प्रसार तथा स्थानी कलाकारों को आदिवासी कला तिवारी क्यों और जानकारी से अवगत कराए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

“बाना वाद्य” क्या है

“नीति में प्रचलित परधान लोक गाथा” से प्राप्त विवरण के अनुसार परधान जाति के लोग मूलतः कवि और गायक, पुरोहित जाति होती है जिनके द्वारा बाना नामक वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है। इनके द्वारा गोंड राजा, महाराजाओं के जीवन और गौरव गाथाओं तथा अतीत की यादों का वर्णन बाना के माध्यम से किया जाता रहा है। बताते हैं कि बाना वाद्य यंत्र को देव वाद्य माना जाता है और इसे आदिवासी समाज के परिवारों में दुख के अवसर पर भी परधान लोगों के द्वारा बजाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि बाना के संगीत का देवी देवताओं से सीधा संपर्क होता है।

बाना साजा वृक्ष की लकड़ी के खोखले भाग से बनाया जाता है जिसे पुर कहते हैं बांस की बनी डांढ़, लकड़ी से बनी खूटिया और हथवा का इसमें उपयोग किया जाता है। वाद्य यंत्र का मध्य भाग बकरे के पेट के नीचे की झिल्ली सा मढ़ा जाता है, घोड़े के बालों का उपयोग तांत के रूप में किया जाता है। इस वाद्य को धनुषकार लकड़ी पर तांत बांधकर बनाया जाता है। बाना वादक डंडी के सिरे को अपनी गर्दन व कंधे में फंसाकर हथौड़े से गायन के अनुसार स्वर निकालता है।

पद्म श्री भज्जू श्याम

“पदम श्री” पुरस्कार से नवाजे जा चुके 46 वर्षीय श्री भज्जू श्याम आदिवासी संस्कृति की एक अमिट पहचान है। जिले की आदिवासी चित्र कला में पारंगत श्री श्याम मूलतः जिले की करंजिया जनपद मुख्यालय के करीब ग्राम पाटनगढ़ के रहने वाले हैं। लोक चित्रकार भज्जू श्याम के चित्र किताब का स्वरूप ले चुके हैं। “द लंडन जंगल बुक” की 30,000 से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं यह किताब पांच विदेशी भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है। इन दिनों श्री भजजू श्याम अपने गृह ग्राम और डिंडोरी जिले में ही कुछ दिनों से है।

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