
अनुसूचित जाति सघन बस्ती विकास योजना में खुल्लाखेल, बिलों के नाम पर किया जा रहा फर्जीवाड़ा
500 की बजाय 1600 बोरी सीमेंट के बिल लगाकर हड़पी गई राशि
मामला ग्राम पंचायत ‘ काटीगहन रैयत’ जनपद पंचायत करंजिया का
(ग्राम पंचायत द्वारा निर्मित कलवर्ट निर्माण की संलग्न फोटो)
जनपथ टुडे, डिण्डौरी, 11 नवम्बर 2020, जिले में अनुसूचित जाति सघन बस्ती विकास योजना के तहत आम लोगों और अनुसूचित जाति बाहुल्य बस्तियों के विकास हेतु आवंटित मोटी रकम के मनमाने बंदरबाट की चर्चाएं आम रही है। जहां कार्यों को मनमाने ढंग से स्वीकृत किए जाने के आरोप लगते रहे हैं वही पसंदीदा पंचायतों को राशि आबंटित करवाकर फर्जी बिलों के माध्यम से भुगतान के कई मामले चर्चा में है। जिसमे तकनीकी रूप से तैयार किए गये प्राक्कलनों और सामग्री के मनमाने भुगतान पर सवाल खड़े होते हैं।
रेत, सीमेंट और गिट्टी के बिलों से हुआ खेल
अनुसूचित जाति सघन बस्ती विकास योजना अंतर्गत पुलिया निर्माण कार्य तलबानर नाला काटिगहन, स्वीकृति दिनांक 02/02/2019 लागत 10,00 लाख रूपये इस निर्माण कार्य में पंचायत द्वारा खर्च की गई राशि का पंचायत दर्पण में दर्शाया गया योग 16 लाख रुपयों के लगभग है। जबकि कार्य की स्वीकृति केवल 10 लाख रुपये की हैं। डेढ़ गुना से अधिक राशि का भुगतान ग्राम पंचायत कैसे करेगी किस मद से करेगी? भुगतान किया गया या नहीं इसका जवाब किसी के पास नहीं है। पर पंचायत द्वारा पोर्टल में दर्ज साफ बताते है कि बिलो में दर्शाई है निर्माण सामग्री की मात्रा वास्तविक खपत से कई गुना अधिक है और इसी के चलते व्यय की राशि भी दस के बजाय सोलह लाख रुपए हो रही है।
1442 बोरी सीमेंट की खपत?
उक्त निर्माण कार्य में जहां जानकार बताते हैं कि अधिकतम 500 बोरी सीमेंट लगनी चाहिए वहां ग्राम पंचायत के दर्ज बिलों से उजागर होता है कि 1442 बोरी सीमेंट के बिल सप्लायरों के लगे हैं। उक्त कार्य में संलग्न बिलों से साफ जाहिर है कि कैसे भी सप्लायरों को पंचायत की राशी बांटने का प्रयास किया गया है। कार्य में तकनीकी रूप से सामग्री की खपत और सामग्री के किए गये भुगतानों के बीच कहीं कोई संतुलन नहीं दिखाई देता है। उक्त पुलिया के निर्माण कार्य में संलग्न बिलों में दर्शाई गई सामग्री और कार्य में वास्तविक खपत की तकनीकी आधार जांच की जरूरत है। इतनी मात्रा में सामग्री खपत होने को लेकर पंचायत के सचिव भी अचरज में हैं। पर इस तरह के मनमाने बिल के भुगतान आंखें मूंदकर किए गए।
यहां निर्माण कार्य के मूल्यांकन और भौतिक सत्यापन पर भी सवाल उठते हैं। तकनीकी अमला, उपयंत्री और एस सी ओ को यदि पंचायत में हो रहे निर्माण कार्यों से कोई वास्ता ही नहीं है तो शासन ने इनको नियुक्त ही क्यों कर रखा है? प्रत्येक पंचायत का उपयंत्रीयों को प्रभार क्यों दिया जाता है?
मनमाने भुगतानो का दोषी कौन ?
कुल 10 लाख की स्वीकृति होने के बाद पंचायत में रोशन तिवारी मैटेरियल सप्लायर परसेल के पांच बिल कुल राशि 12,53, 420 रुपये,अभय मैटेरियल सप्लायर रूसा का एक बिल राशि 1,28000 रुपये, वीरेंद्र कुमार परस्ते बुंदेला का एक बिल 23,1000 कुल राशि 16,12420 रुपये। इस तरह के मनमाने भुगतान के पीछे क्या कारण है और कैसे किए गए स्वीकृत राशि से अधिक के भुगतान, दोषी कौन है? इसकी जांच क्या कभी हो पाएगी, दोषियों को कभी दंडित किया जा सकेगा या फिर इनको अभयदान देने के चलते जिले में इस तरह के और भी कारनामों को पोषित और प्रोत्साहित किया जाता रहेगा। ऐसे मामलों में सवाल इन बिलो पर भी खड़े होते हैं जहां निर्माण कार्य में आवश्यकता से कई गुनी अधिक सामग्री का बिल सप्लायरो द्वारा दिया गया है।
मजदूरों के बिना बन गई पुलिया?
10 लाख की लागत से स्वीकृत इस निर्माण कार्य में 1600000 रुपए का भुगतान वेंडरों को सामग्री का दिया गया, निर्माण कार्य में मजदूरी भुगतान की कोई जानकारी नहीं है तब सवाल उठता है कि बिना मजदूरों के ही कन्वर्ट का निर्माण हो गया या फिर कार्य की निर्माण एजेंसी ग्राम पंचायत दिखावे मात्र को है पूरी स्वीकृत राशि का भुगतान सप्लायरो को किया गया है। इस कार्य को लेकर ग्राम पंचायत के सचिव से कई बार हमारे प्रतिनिधि ने जानकारी लेने का प्रयास किया पर वह पूरे गड़बड़ झाले पर संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। बस्ती विकास योजना के तहत जिले में निर्माण कार्यों पर घोटालों के आरोप लगते रहे हैं जिनकी जांच हेतु प्रशासन द्वारा पूर्व में आश्वासन दिया गया था किंतु अब तक इन कार्यों की जांच का कोई खुलासा नहीं हो पाया वहीं पंचायतों में इस योजना की राशि डकारने का खुला खेल जारी रहा।
सघन बस्ती विकास योजना में हुए घोटालों का यह एक नमूना मात्र है इसी तर्ज पर पूरे जिले में करोड़ों रुपए के निर्माण कार्य करवाए गए है जिनसे अनुसूचित जाति की बस्तियों को कम माफियाओं और भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को अधिक लाभ हुआ है वहीं ग्राम पंचायतों के निर्माण कार्यों की सतत निगरानी हेतु जनपद पंचायत और जिला पंचायत के अधिकारियों को व्याप्त घोटालेबाजी की परवाह ही नहीं है।