
कांग्रेस के तीन प्रत्याशी और घोषित, एक का टिकट बदला
जनपथ टुडे, डिंडोरी, 6 अक्टूबर 2020, मध्यप्रदेश में 3 नवंबर को होने वाले उपचुनावों के लिए आज कांग्रेस ने अपनी तीसरी लिस्ट जारी कर दी अब मात्र ब्यावरा सीट को छोड़कर सभी 27 सीटों पर कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। तीसरी सूची में अटेर के पूर्व विधायक हेमंत कटारे को मोहगांव से उम्मीदवार बनाया है वही मुरैना में चौकाने वाला निर्णय लेते हुए दिनेश गुर्जर के स्थान पर राकेश मावई पर अपना भरोसा पार्टी ने जताया है। तीसरी सूची में बदनावर से पूर्व घोषित प्रत्याशी के स्थान पर कमल पटेल को अधिकृत उम्मीदवार घोषित किया है। इस तरह देखें तो यह तीसरी बहुप्रतीक्षित सूची चौंकाने वाली साबित हुई है, यह माना जा रहा था इन दोनों सीटों पर मुरैना और मेहगांव से पार्टी ने पहले ही अपना मन बना लिया है और मुरैना से दिनेश गुर्जर और मोहगांव से चौधरी राकेश सिंह का नाम सुना जा रहा था। लेकिन आज ये बातें गलत साबित हुई और दिनेश गुर्जर, चौधरी राकेश सिंह की बजाए राकेश मावई और हेमंत कटारे को पार्टी ने अपना अधिकृत प्रत्याशी घोषित कर उन पर अपना विश्वास जताया है।
जमीनी सूत्रों की माने तो कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को ये निर्णय बहुत अच्छा नहीं लगा है। इन निर्णयों का अंजाम अन्य सीटों पर भी भुगतना पड़ सकता है। मुरैना से दावेदारी कर रहे दिनेश गुर्जर के पास कार्यकर्ताओं की फौज है, और वह लगातार जमीन पर किसानों के लिए और नागरिकों के लिए संघर्ष कर रहे थे और दिनेश गुर्जर ने हीं अपने शानदार नेतृत्व से किसान कांग्रेस को बुलंदियों पर पहुंचाया और उसे एक नई पहचान देकर अपनी जबरदस्त छवि बनाई, ऐसे में उनकी उपेक्षा पार्टी के लिए नकारात्मक साबित हो सकती है और कार्यकर्ताओं के उत्साह पर भी विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इसी तरह मेहगांव विधानसभा से चौधरी राकेश सिंह अपनी दावेदारी को लेकर आश्वस्त थे कि उन्हें ही प्रत्याशी बनाया जाएगा और कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं का समर्थन उन्हें प्राप्त है किंतु अंतिम समय पर उनका भी पत्ता कट गया और उनके विरोधी उन्हें रोकने में सफल हो गए हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा की इसका प्रतिकार किस तरह किया जाता है वही बदनावर विधानसभा में प्रत्याशी को बदलना पार्टी के लिए घातक हो सकता है और सामूहिक संघर्ष कमजोर पड़ सकता है। चौधरी राकेश सिंह विधानसभा में उप नेता होते हुए भी कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में चले गए थे और अब उनकी पुनः वापसी के बाद उन्हें शायद इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है,किन्तु यहां से प्रत्याशी बनाए गए हेमंत कटारे पर लगे गंभीर आरोपों के चलते पार्टी संकट पहले भी झेल चुकी है और फिर वे चुनाव हारने के बाद भी शायद पार्टी के बड़े नेता स्वर्गीय सत्यदेव कटारे के नाम का लाभ उन्हें जरूर मिला पर क्या ये निर्णय पार्टी को लाभ दिला पाएगा? चंबल में कांग्रेस के घोषित प्रत्याशियों के बाद भले ही चुनाव अभी दूर है पर यह साफ हो रहा है कि कांग्रेस मजबूत दाव नहीं लगा पाई है और यदि इसका लाभ भाजपा को मिले तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। हालाकि इस क्षेत्र में सपा और बसपा की स्थिति भी प्रदेश के अन्य हिस्सों से बेहतर है और मतदाताओं का बड़ा हिस्सा इन दोनों दलों के बीच भी बटता रहा है। ऐसे में अब तक कांग्रेस बहुत सधी हुई चुनावी चाले चलने में अब तक सफल होती नहीं दिखी है साथ ही भीतर ही भीतर कलह की शुरुआत होती भी दिख रही है और उसको रोकने पार्टी संगठन की स्थिति पूरे प्रदेश में जाहिर ही है।