
बैगाओं के लुप्त हो रहे बेवर बीजों की प्रदर्शनी “बैगा मांदी” का हुआ आयोजन
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ऑर्गेनिक खेती बैगा जनजाति आज भी जीवित रखे हुए है
जनपथ टुडे, डिंडोरी, 3 मार्च 2021, मंगलवार को बैगाचक के ग्राम ठाडपथरा में विराट बैगा मांदी का आयोजन किया गया। आम जीवन में बैगा आदिवासी जंगल और कृषि आधारित जैव विविधता का खाने के लिए इस्तेमाल करते है उनका संरक्षण करने उद्देश्य से किया गया था। बैगा मांदी का आयोजन निर्माण संस्था और यूजिंग डायबर्सिटी नेटवर्क के सहयोग से बैगा महापंचायत डिंडोरी के द्वारा किया गया था।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के कुछ आदिवासी जिलों में बैगा जनजाति के लोग जंगली क्षेत्रों और वन ग्रामों में निवास करते है। इनकी जीवन शैली, रहन सहन, संस्कृति सभी कुछ वन पर आधारित है। खास तौर पर “बैगा मांदी” इस जनजाति की उन खाद्य पदार्थो की प्रदर्शनी कही जा सकती है जो कंद, मूल, फल और जंगलों में प्राकृतिक व परम्परागत तरीके से खेती कर यह जनजाति पैदा करती है जो इनकी मुख्य खाद्य सामग्री है। बताया जाता है कि उनके द्वारा उपयोग की जाने वाली खाद्य सामग्री न सिर्फ उदर पोषण बल्कि औषधि गुणों से भी भरपूर होती है जो जंगल के जीवन में इनकी मौसम और बीमारियों की मार से रक्षा करने में पूरी तरह सहायक होती है। देखा जावे तो बदलते हुए समाज और बाजार में यह सबसे बड़ी ऑर्गेनिक खेती की व्यवस्था है जिसे बैगा जनजाति आज भी जीवित रखे हुए है। किन्तु इस ओर अब तक शासन और प्रशासन ने गौर नहीं किया है न ही इसे किसी स्तर पर प्रोत्साहित किया जा रहा है।
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बैगा मांदी के मौके पर बैगाओं अपने रोज के खाने के लिए जो जंगल से उपयोग करते हैं और बैगाओं के बेवर खेती में होने वाले पारंपरिक बीजों की प्रदर्शनी लगाई गई। इस प्रदर्शनी में जंगल से मिलने वाले बैगाओं के सबसे पसंदीदा कनिहाकांदा सहित विभिन्न प्रकार के कांदा और बेवर खेती के लुप्त हो रहे बीज बैगानी राहर, सिकिया, सांवा, सलहार और मंडिया सहित पचासों प्रकार के बीज थे।
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इस बैगा मांदी में स्थानीय विधायक, जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय के रजिस्टार देव सिंह सिसोदिया, कुमार सिंह नेताम संयुक्त संचालक कृषि जबलपुर, राजेन्द्र कुमार गणेशे प्राचार्य कृषि प्रशिक्षण केंद्र वारासिवनी और आजीविका परियोजना का स्टाफ मौजूद था।
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प्रदर्शनी में अचंभित करने वाली बात यह थी कि जब जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय जबलपुर के रजिस्टार देव सिंह सिसोदिया ने बैगाओं के सलहार देख कर उसे बाजरा का प्रजाति बताया लेकिन जब उन्हे सलहार का दाना याने बीज दिखाया गया तब उन्होने बोला कि यह बाजरा तो बिलकुल नहीं है। उनके साथ कृषि विभाग के संयुक्त संचालक और अन्य कृषि अधिकारी थे जो उनके लिए बैगाओं का सलहार एक अजूबा से कम नहीं था।
दशकों से बैगाओं के लुप्त हो रहे बेवर के बीजों को बचाने का काम कर रहे नरेश बिश्वास ने बताया कि सलहार डिंडोरी जिला के बैगाचक के बैगाओं का धरोहर है। यह सिर्फ बैगाओं के बेवर में ही होता है। देश के किसी भी हिस्से में इस किस्म का बाजरा जिसे बैगा लोग सलहार कहते है, नहीं होता है। सरकार या जिला के कृषि विभाग को बैगाओं के सलहार का डिंडोरी के नाम पर जी.आई. टेग के लिए प्रयास करना चाहिए। उन्होने बताया कि बेवर के पारंपरिक बीज और जंगल के जैव विविधता को बचाना है तो बैगाओं को वन अधिकार कानून के तहत पूरे बैगाचक का हैबिटेट राइट्स (पर्यावास अधिकार) की मांग करना जरूरी है। तभी जंगल बचेगा और बैगाओं की आजीविका भी मजबूत हो सकेगी।
बैगा मांदी के अवसर पर बेवर खेती के लुप्त हो रहे बीजों का बैगाओं को वितरण किया गया। सांवा, सलहार, मंडिया, सिकिया, कांग, कोदो, कुटकी आदि बीजों का पैकेट बोगाओं को वितरित किया गया।
बैगा मांदी में गौरा, ढाबा, शैलाटोला, अजगर, तांतर, सिलपिडी, जिलंग, ठारपथरा, लदरादादर, बिरहा, दोमोहानी, पाण्डपुर, आदि बैगाचक के लगभग 500 बैगा महिला-पुरुष शामिल थे।
पालतू मवेशियों की मौत मामला उठा
लदरादादर के मुकददम ने बताया कि बीते कुवांर-कातिक महिना में दोमोहानी गाँव के बैगाओं को जंगल जमीन से बेदखल करने के लिए वन विभाग के द्वार लदरादादर के बैलों और मवेशियों से दोमोहानी गाँव के कोदो-कुटकी की खड़ी फसल को चरा दिया। और फसल चरने के बाद लदरादादर के 20 लोंगों के लगभग 50-60 मवेशी मर गए। दोमोहानी गाँव ले लोगों का कहना है कि फसल चराने से पहले वन विभाग ने फसल पर केमिकल अथवा जहरीला पदार्थ डाल दिया था। इस मुद्दे को विधायक जी ने विधान सभा में उठाने और आवश्यक कार्यवाही करने की बात कही।
बैगा मांदी के आयोजन में बैगा महापंचायत के मुखियों सहित हीरा लाल सरोते, मायाराम मांडले, हरीलाल, राम सिंह समरदइहा, भददु सिंह और ठारपथरा के सरपंच और उपसरपंच की सक्रिय भागीदारी रहा है।