
कद्दावर नेताओं की कमजोर जमीन, इनके वार्ड से नहीं जीत पाए पार्टी के प्रत्याशी
कांग्रेस जिला अध्यक्ष और विधायक के वार्ड में हार गए कांग्रेस प्रत्याशी
जनपथ टुडे, डिंडोरी, 1 अक्टूबर 2022, नगर परिषद डिंडोरी के वार्ड पार्षद चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी बराबरी पर रही। हर मायने में दोनों ही दल के 6 – 6 पार्षद जीते पर डिंडोरी के सभी वार्डो में पार्षद प्रत्याशी अपनी दम पर चुनाव जीते, वहीं भाजपा इस बात को खुलकर स्वीकार कर रही है कि उसके परिवार के तीन पार्षद बाहर जाकर निर्दलीय पार्षद का चुनाव जीते है, जाहिर तौर पर भाजपा प्रत्याशियों को इनके कारण तीन वार्डो में हार का मुंह देखना पड़ा पर समय की नजाकत यही है कि भाजपा के नेता इन्हे बधाई देने से नहीं चूक रहे है।
भाजपा को खोनी पड़ी 5 सीटें
भाजपा संगठन और पार्टी के निर्णय में कुछ चूक हुई जिसके चलते भाजपा से टिकट मांग रहे ऐसे पांच लोग पार्षद का चुनाव जीत गए जो भाजपा के बैनर तले लड़ने की कोशिश में थे। यदि ये भाजपा के साथ होते तो जीत का आंकड़ा वैसे ही 11 होता और इसके चलते एक दो सीट का और भी लाभ हो सकता था। किन्तु संगठन का निर्णय इनके पक्ष में नहीं रहा।
कुछ यही हाल कांग्रेस के है जहां इस बार परिषद के चुनाव परिणामों से फूल कर कुप्पा पार्टी नेताओं की इस बार मात्र दो सीटें बढ़ी है, व्यापक प्रयासों के बाद। इस उपलब्धि के साथ कि कांग्रेस जिला अध्यक्ष के वार्ड क्रमांक 5 से कांग्रेस के अनुभवी पूर्व पार्षद एक नए उम्मीदवार से बुरी तरह चुनाव हार गए है। वहीं कांग्रेस विधायक के वार्ड क्रमांक 3 से विधायक के बेहद करीबी माने जाने वाले प्रत्याशी लगातार शानदार तीसरी बार चुनाव हार गए। यह जिले के कद्दावर नेताओं के निवास वाले वार्डो की स्थिति है, यदि इनकी जमीन की थोड़ी सी भी उपजाऊ होती तो दो और पार्षद पार्टी के खाते में आ सकते थे। इसी तरह की स्थिति अन्य कई बड़े नेताओं के गली मोहल्ले की भी रही, जिनकी लोकप्रियता का अनुमान लगाया जा सकता है। इस कड़ी में भाजपा जिला अध्यक्ष के साथ, जिला महामंत्री के वार्ड में भी भाजपा पार्षद को हार का मुंह देखना पड़ा। ये कद्दावर पार्टी को दो पार्षद दिला सकते थे यदि अपने वार्ड में पैठ मजबूत होती।
कुल मिलाकर जो पार्षद चुनाव जीते है वे अपने बूते। पार्टी और पार्टी के नेताओं का कोई असर इस चुनाव पर नहीं पड़ा बल्कि कद्दावर नेताओ और पार्टी पदाधिकारियों के वार्डो में प्रत्याशियों को इनके खिलाफ नाराजगी का भी नुकसान उठाना पड़ा ऐसा माना जा रहा है। जबकि पार्टियों ने उन्हें कम से कम जिले भर में तो पार्टी का झंडा गाड़ने की जिम्मेदारी दे ही रखी है।
पूर्व पार्षदों की छवि ने डुबोई पार्टी की नैया
डिंडोरी नगर परिषद के पूर्व पार्षद या उनके बदले उनकी पत्नियां मैदान में थी जिसमें से अधिकतर को हार का सामना करना पड़ा। केवल वार्ड क्रमांक 8 से कांग्रेस के रीतेश जैन और वार्ड क्रमांक 10 से पूर्व पार्षद से सारिका नायक की पुनः परिषद ने वापसी संभव हो पाई है। 1 नम्बर से कांग्रेस की पूर्व पार्षद कुंजलता संडिया चुनाव हार गई। दो नम्बर से भाजपा पार्षद कुवरिया मरावी हार गई। वार्ड 5 से कांग्रेस के पूर्व पार्षद आबिद रजा को हार का सामना करना पड़ा। वार्ड 7 से कांग्रेस की पूर्व पार्षद जानकी बर्मन चुनाव हार गई। वार्ड 11 से पूर्व पार्षद व परिषद के उपाध्यक्ष महेश पाराशर की पत्नी को निर्दलीय प्रत्याशी ने शिकस्त दे दी। वार्ड 13 से पूर्व पार्षद की पत्नी भी चुनाव नहीं जीत पाई। इसी तरह वार्ड 15 से पार्षद मोहन नरबरिया की पत्नी भाजपा उम्मीदवार कल्यांवती को निर्दलीय प्रत्याशी सरस्वती पाराशर ने हराया। इस तरह से राजनीति में सक्रिय तमाम लोग अपना अस्तित्व साबित करने में सफल नहीं हो पाए। इसके अलावा पूर्व पार्षद वार्ड 3 आशीष वैश्य भाजपा, वार्ड 5 की कांग्रेस पार्षद श्रीमती शिवानी शर्मा, वार्ड 6 के भाजपा पार्षद पुरुषोत्तम विश्वकर्मा, वार्ड 7 की भाजपा पार्षद श्रद्धा सोनी, को इनकी पार्टी ने जीत की कम उम्मीद के चलते चुनाव की जमीन से ही दूर रखा। वार्ड 3 को छोड़कर इन सभी वार्डो में इन पार्षदों की पार्टी के प्रत्याशियों को हार का मुंह देखना पड़ा। तब कद्दावर नेताओं की जमीन कितनी मजबूत है समझा जा सकता है।