
सत्य का बोध तब होगा जब ज्ञान होगा – मंगल मूर्ति
जनपथ टुडे, 11 फरवरी 23, डिण्डोरी के सुबखार में राजपूत परिवार के यहां चल रहे “श्री नर्मदा पुराण कथा” के चौथे दिन नर्मदा के किनारे लुमकेश्वर तीर्थ की कथा बताते हुए पंडित मंगल मूर्ति शास्त्री ने कहा कि –
एक कालकृष्ट राक्षस था तपस्या कर रहा था, पार्वती जी शंकर जी के साथ घूम कर गए और पार्वती जी ने उसको तपस्या करते हुए देखा तो भगवान शंकर से कहा प्रभु आपने उसको वरदान नहीं दिया। भगवान शंकर ने कहा कि जो तपस्या है सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के लिए है। इसलिए इसको वरदान देना ठीक नहीं है। शंकर जी ने पार्वती जी को बहुत समझाया पर पार्वती जी नहीं मानी और बोली यदि आप इसको वरदान नहीं दोगे तो मैं प्राण त्याग दूंगी, तो भगवान शंकर जी ने पार्वती जी के हठ को देखकर कहा कि मैं उसको वरदान दे देता हूं। उससे पूछे जाने पर उसने कहा कि मै जिसके ऊपर हाथ रखू वह जलकर राख हो जाए तब शंकर जी ने कहा तथास्तु। राक्षस ने शंकर जी की तरफ हाथ बढ़ाया सोचा कि पहले इनको ही भष्म करता हूँ। भगवान फिर दक्षिण दिशा की तरफ पार्वती जी के साथ भागे और रास्ते मे नारद जी मिल गए और बोले आप विष्णु जी से बताना कि हम विपत्ति में पड़ गए नारद जी बोले कि मैं नहीं जाऊंगा वह छीर सागर में सो रहे हैं। शंकर जी के बार बार कहने पर नारद जी गए और लक्ष्मी जी के पास पहुंचे और बताया कि भगवान शंकर के पास ऐसी-ऐसी विपत्ति पड़ गई है। लक्ष्मी जी विष्णु जी का दाहिने हाथ का अंगूठा दबाने लगी और भगवान जग गए। नारदजी ने पूरी कथा बताई और बोले कि कालकृष्ठ नामक राक्षस को शंकर जी ने वरदान दिए और वो उन्ही को भष्म करने उन्हें दौड़ा रहा है और प्रभु अपने प्राण बचा कर भाग रहे है। भगवान विष्णु ने कहा कि आप पीछे जाकर के छुप जाए। भगवान विष्णु ने बसंत ऋतु की रचना कर दी और कोयल जागने लगी और मादक वातावरण हो गया। कालकृष्ठ माया की तरफ दौड़ पड़ा और भगवान शंकर लुमकेश्वर तीर्थ में जाकर के छुपे थे। कालकृष्ठ राक्षस के सामने भगवान विष्णु ने एक सुंदर कन्या रूप बना लिया और कालकृष्ठ जैसे देखा और पूछा कि कहां रहती हो। तुम मुझे भी अच्छी लग रही हो, तुम मेरे से विवाह कर लो राक्षस बोला शादी नहीं करोगे तो मैं प्राण त्याग दूंगा। कन्या बोली ठीक है तेरी इच्छा है तो मैं विवाह कर लूंगी लेकिन हमारे यहां एक नियम है विवाह के समय लड़की के साथ लड़के को नाचना पड़ता है, जैसे मैं नाचूंगी वैसा तुम भी नाचना। दोनों नाचने लगे और उसने अपने हाथ खुद सिर के ऊपर रखा और भस्म हो गया। विष्णु जी बोले दुष्टों को अब ऐसा वरदान मत दीजिए।
शास्त्री जी ने आगे ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक बातें बताते हुए कहा कि भोजन बिना प्रकृति से नही बना सकते है। प्रकृति का संतुलन बना रहना चाहिए। भूख मौत से बड़ी है, रात को मिटाओ सुबह फिर खड़ी है। आपके अंदर ईर्ष्या रखेंगे तो प्रहार, लौटकर आएगी। आपके अंदर घृणा, प्रेम, साधुता, समरसता आदि भाव है तो वैसे ही वापस मिलेंगे। बाल हठ, राज हठ में सबसे ज्यादा त्रिया हठ होता है। साधु चलते-फिरते तीरथ हैं इनके दर्शन से ही जीवन कृतार्थ हो जाता है। सूचना और ज्ञान में अंतर है। ज्ञान वो है जो मुक्त करे, जानकारी व्यक्ति को बांधती है अहंकारी बनाती है। सत्य का बोध तब होगा जब आपको ज्ञान होगा। यस और रस दोनों जगह नहीं रहते। ईर्ष्या करने वाले लोग प्रसन्न नहीं रहते और ईर्ष्या आदमी की शत्रु है। धन किसी को विश्राम नहीं दे सकता इसलिए धन के पीछे ज्यादा नहीं भागना चाहिए। व्यक्ति को समुद्र जैसा गंभीर रहना चाहिए। राम हमारी आत्मा है। उन्होंने कहा कि हर आदमी के अंदर भगवान है तो क्यो जघन्य और घृणित अपराध कर रहा है।
गौरतलब है कि राजपूत परिवार द्वारा संपन्न करवाई जा रही कथा विद्वान पंडित मंगल मूर्ति जी महाराज द्वारा कही जा रही है जिसका अमृतपान करने बड़ी संख्या में लोग श्रद्धापूर्वक पहुंच रहे है और धर्मलाभ प्राप्त कर रहे है। जिनकी व्यवस्थाओं और सेवा का संपूर्ण राजपूत परिवार विशेष रूप से ध्यान रख रहा है जिससे कथा का श्रवण करने वालों, बुजुर्गो आदि को तकलीफ़ न हो और सभी धर्मकथा का सपूर्ण लाभ और आंनद ले सके। कथा का समय दोपहर 2:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक निर्धारित है, साथ ही साथ 13 फरवरी को भंडारा का आयोजन किया जाएगा। राजपूत परिवार द्वारा सभी धर्मावलंबियों से कथा में पहुंच कर धर्म लाभ लेने का अनुरोध किया जा रहा है।
आज की कथा ..
आज की कथा में नर्मदा जी के घाटों की कथा एवं शिवजी के विवाह का वर्णन होगा एवं शिवजी की बारात निकाली जाएगी।