मेकलसुता कॉलेज में हुआ राष्ट्रीय गणित दिवस पर कार्यक्रम आयोजित 

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संपादक प्रकाश मिश्रा 8963976785

जनपथ टुडे डिण्डौरी 22 दिसंबर 2025 – मेकलसुता महाविद्यालय और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय गणित दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें प्राचार्य डॉ बिहारी लाल द्विवेदी, डॉ स्वर्ण तिवारी, प्रो. रजनी रैकवार, डॉ. संदीप नामदेव एवं प्रो. अंकित रघुवंशी उपस्थित रहे। कार्यक्रम जा शुभारंभ श्रीनिवास रामानुजन और माँ सरस्वती के चित्र के सामने दीपक प्रज्ज्वलित कर किया गया। अतिथि सत्कार के बाद रामानुजन जी के जीवन व कृतित्व पर प्रकाश डाला गया।

कार्यक्रम में उपस्थित वक्ताओं ने बताया कि रामानुजन का जन्म २२ दिसम्बर १८८७ को भारत के दक्षिणी भूभाग में स्थित कोयम्बटूर के ईरोड नाम के ग्राम में हुआ था। वह पारम्परिक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। इन की माता का नाम कोमलताम्मल और इन के पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था ।पारम्परिक शिक्षा में इन का कभी भी मन नहीं लगा। रामानुजन् ने दस वर्षों की आयु में प्राथमिक परीक्षा में पूरे ज़िले में सबसे अधिक अंक प्राप्त किये और आगे की शिक्षा के लिए टाउन हाईस्कूल पहुंचे। रामानुजन् को प्रश्न पूछना बहुत पसंद था। उन के प्रश्न अध्यापकों को कभी कभी बहुत अटपटे लगते थे। रामानुजन का व्यवहार बड़ा ही मधुर था। इन का सामान्य से कुछ अधिक स्थूल शरीर और जिज्ञासा से चमकती आंखें इन्हें एक अलग ही पहचान देती थीं।  नामगिरी देवी रामानुजन् के परिवार की ईष्ट देवी थीं। उन के प्रति अटूट विश्वास ने उन्हें कहीं रुकने नहीं दिया और वे इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी गणित के अपने शोध को चलाते रहे।

रामानुजन के जीवन में प्रोफेसर हार्डी की बहुत बड़ी भूमिका थी। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जिस तरह से एक जौहरी हीरे की पहचान करता है और उसे तराश कर चमका देता है, रामानुजन के जीवन में वैसा ही कुछ स्थान प्रोफेसर हार्डी का है। प्रोफेसर हार्डी आजीवन रामानुजन की प्रतिभा और जीवन दर्शन के प्रशंसक रहे। रामानुजन और प्रोफेसर हार्डी की यह मित्रता दोनो ही के लिए लाभप्रद सिद्ध हुई।

रामानुजन एक महान् भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। इन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्रों में गहन योगदान दिया। इन्होंने अपनी प्रतिभा और लगन से न केवल गणित के क्षेत्र में अद्भुत अविष्कार किए वरन् अतुलनीय गौरव भी प्रदान किया। रामानुजन ने 26 अप्रैल 1920 को महाप्रयाण किया।
कार्यक्रम में छात्र/छात्रों एवं अतिथियों ने अपने विचार रखे।

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