
नगर परिषद अध्यक्ष चुनाव, ऊंट किस करवट बैठेगा?
जनपथ टुडे, डिंडोरी
नगर परिषद चुनाव के परिणाम आ चुके हैं। लेकिन नगर का राजनैतिक तापमान अभी थमा नहीं है और अध्यक्ष पद को लेकर गहमागहमी जोरों पर है। संभावना कुशंकाओ और अटकलों का बाजार बेहद गर्म है उल्लेखनीय की 15 सदस्यी परिषद में 6 पार्षद कांग्रेस और 6 भाजपा की निर्वाचित हुए और तीन निर्दलीयों ने बाजीमार कर पूरे खेल को रोचक बनाते हुए सारे पांसे अपने पास जुटा लिए हैं। अब उनके फैसले पर भाजपा और कांग्रेस की जान अटकी हुई है। दोनों ही राष्ट्रीय दल येन केन प्रकरण अपनी प्रतिष्ठा बचाने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। लेकिन अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार किसी भी दल का दावा विश्वास से भरा दिखाई नहीं दे रहा है।
निर्दलीयों की अभी किसी के साथ संवाद में होने की कोई खबर नहीं है। यद्यपि अपने अपने तर्कों पर दोनों राष्ट्रीय दल भाजपा और कांग्रेस अपने दावे को सच्चा बता कर अपनी जीत की ताल ठोक रहे हैं। दोनों ही दल कीमती ऑफरों के साथ निर्दलीयों तक अपने संदेश पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
रमेश राजपाल V/s
बीजेपीजिले में लंबे समय से बंद दुकान की तरह चल रही कांग्रेस जिला पंचायत चुनाव के बाद नगर परिषद डिंडोरी चुनाव में भी सफल रही और आगे अध्यक्ष बनाने की कोशिश में है। इस बदलती स्थिति का श्रेय कांग्रेस के प्रदेश प्रतिनिधि रमेश राजपाल की संगठनात्मक क्षमता व रणनीतिक कौशल से संभव हुआ है। जहां वार्ड नम्बर 6 में भाजपा के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी माने जाने वाली देव श्री सिंह को बीजेपी के कद्दावर नेताओ और संगठन की पुरजोर कोशिश के बाद भी हार मिली वहीं वार्ड नम्बर 13 से कांग्रेस से अध्यक्ष पद की दावेदार सुनीता सारस को हराने के तमाम प्रयासों के बाद भी भाजपा असफल रही। इन दोनों वार्डो में रमेश राजपाल के साथ नव निर्वाचित जिला पंचायत अध्यक्ष रुदेश परस्ते ने जोरदार प्रयास किए। नगर परिषद डिंडोरी के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के लिए जोड़तोड़ ने लगे रमेश राजपाल को भाजपा भी हल्के ने नहीं ले सकती। हर स्तर से चुनावी समीकरण साधने को लेकर रमेश राजपाल जिले की राजनीति में चर्चा में है। ये अलग बात है कि कुछ छुटभैया टाईप लोगों के पेट में इस बात का दर्द जरूर बना रहता है कि रमेश राजपाल के इशारे पर पार्टी का हर निर्णय लिया जा रहा है।
गौरतलब है कि निर्दलीय चुनाव जीते तीनों ही प्रत्याशी चुनाव पूर्व तक भारतीय जनता पार्टी के कट्टर सक्रिय सदस्य थे और बाकायदा उन्होंने अपने वार्ड से उम्मीदवारी का दावा भी प्रस्तुत किया था। लेकिन आंतरिक कलह और गुटबाजी से जूझ रही भाजपा ने यथार्थ को नजरअंदाज करते हुए टिकट नहीं दी थी। तब इन विजेता निर्दलीयों ने अपनी क्षमता जनसंपर्क और आत्मविश्वास के भरोसे निर्दलीय के रूप में जनता की अदालत में गए और भरपूर आशीर्वाद पाकर विजेता होकर उभरे है। देखने वाली बात यह है भले ही यह तीनों निर्दलीय मूलतः भाजपा की पृष्ठभूमि के हैं और वर्षों तक एक समर्पित कार्यकर्ता के रूप में अपना योगदान देकर पार्टी को मजबूत कर रहे थे ऐसी स्थिति में भी उनके टिकट काटकर उन्हें जिस तरीके से अपमानित किया गया और चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह की टिप्पणियां की गई उसकी जबरदस्त पीड़ा निश्चित रूप से निर्दलीयों के मन में होगी और जिस अपमान और गुस्से के चलते बगावत हुई थी उसे कब तक कायम रख पाते हैं। यह भविष्य के गर्भ में है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी विजेता निर्दलीयों के साथ किए गए इसी अपमानजनक व्यवहार को भुनाने का पूरा प्रयास कर रही है। उनके समर्थन के लिए कुछ भी करने को किसी भी समझौते के लिए तैयार है। वही भाजपा को अब तक समझ नहीं आ रहा है की इस भयंकर आत्मघाती भूल का पश्चाताप वह कैसे करें। किस तरह संवाद स्थापित हो और नाराज साथियों को घर वापसी के लिए राजी किया जा सके। हालांकि बहुत से वरिष्ठ भाजपाई और राजनीतिक विश्लेषक यह मान रहे हैं अंत में भाजपा तीनों बागी निर्दलीयों का समर्थन पाने में सफल रहेगी और अपने नाराज साथियों को यह समझाने में की गुस्सा पार्टी के विचार सिद्धांत संस्कार से बढ़कर नहीं है, समझा पाने में सफल रहेगी। दूसरी ओर कांग्रेस भाजपा की इस भूल को अपनी सफलता का मंत्र साबित करने के लिए भाजपा द्वारा निर्दलीयों के साथ किए गए अपमान और तिरस्कार को हवा देकर धनबल के सहारे समर्थन हथियाने का प्रयास कर सकती है।
इन सबके बीच कुछ दलालों को भी इस घटनाक्रम से पौ बारह होती दिख रही है चौराहों और नुक्कड़ों पर देर रात तक बेगानी शादी में अब्दुल्ला बनें लोग अपनी गोटी फिट करने की फिराक में लगे हुए है ऐसे कुछ लोग मरे शेर पर टांग रखे फोटो खिंचवाने का शौक पूरा करना चाहते हैं। अब देखना यह है कि असमंजस में पड़े निर्दलीय किसे चुनते हैं, क्या फैसला लेते हैं और जब तक अध्यक्ष के लिए मतदान का परिणाम नहीं आ जाता तब तक यह कहना मुश्किल है कि ऊंट किस करवट बैठेगा ………
इरफान मलिक की कलम से