
मंत्रिमंडल का गठन / सिंधिया समर्थकों और भाजपा विधायकों के बीच मंत्रिमंडल में समन्वय, शिवराज के सामने चुनौती
मुख्यमंत्री ने 14 अप्रैल को लाॅकडाउन खत्म होने के बाद मंत्रिमंडल गठन के संकेत दिए हैं
जनपथ टुडे, भोपाल 07, 2020, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 14 अप्रैल को लाॅकडाउन खत्म होने के बाद मंत्रिमंडल गठन के संकेत दिए हैं। ऐसे में भाजपा के सामने चुनौती ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक मंत्रियों के साथ अपनों को एडजस्ट करने की है। इसे लेकर चौहान और संगठन के बीच चर्चा का दौर जारी है।
सूत्रों के अनुसार मंत्रिमंडल में 24 से 26 मंत्री बनाए जा सकते हैं। इसके लिए दिल्ली से सहमति लेना होगी, जिनमें सिंधिया समर्थक 8 से 10 लोगों की दावेदारी पक्की बताई जा रही है, इस स्थिति में भाजपा को मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए अपने विधायकों का चयन करना मुश्किल होगा। सिंधिया समर्थक पूर्व कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री थे, इसलिए शिवराज मंत्रिमंडल में भी उनका ओहदा वही होगा। कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए कद्दावरों में तुलसी सिलावट इंदौर जिले की सांवेर सीट से आते हैं, लेकिन इंदौर जिले से ही ऊषा ठाकुर, महेंद्र हार्डिया एवं रमेश मेंदोला के नाम प्रस्तावित है, जबकि मंत्री सिर्फ दो ही बनाए जाना है। इसी तरह से गोविंद सिंह राजपूत का नाम कैबिनेट मंत्री के लिए प्रस्तावित है, लेकिन सागर जिले से भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव का मंत्री बनाया जाना है। ऐसे में दावेदार तीन और मंत्री सिर्फ दो बनना है।
दिग्गजों के बीच टकराव से बचने, चुनौती
ग्वालियर से प्रद्युम्न सिंह तोमर का नाम कैबिनेट मंत्री के लिए प्रस्तावित है और इसी अंचल से शिवपुरी से यशोधरा राजे सिंधिया और अटेर से अरविंद सिंह भदौरिया का नाम भाजपा की ओर से है।
ग्वालियर जिले की भांडेर से इमरती देवी का नाम मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने के लिए प्रस्तावित है जबकि इसी अंचल की दतिया विधानसभा से विधायक डाॅ. नरोत्तम मिश्रा न केवल मंत्री पद के दावेदार है बल्कि भाजपा की इस सरकार को खड़ा करने में महती भूमिका सर्वविदित है।
महेंद्र सिंह सिसोदिया गुना संसदीय क्षेत्र से आते हैं, यहां से भाजपा ने गोपीलाल जाटव का नाम भी है।
प्रभुराम चौधरी सांची विधानसभा सीट से आते हैं, लेकिन यहां से भाजपा के रामपाल सिंह का कद नकारा नहीं जा सकता भी है।
मुरैना से एंदल सिंह कंसाना का नाम कैबिनेट मंत्री के लिए है। यहां से बागी रघुराज सिंह कंसाना भी दावेदारी ठोक रहे हैं।
इन परिस्थितियों में सामंजस्य बनाना और भाजपा के सीनियर नेताओं के साथ ही साथ कांग्रेस को छोड़ कर महाराज के साथ बीजेपी को समर्थन दे रहे नेताओं के अहम न टकराए इसको रोकना बहुत आसान नहीं है। बीजेपी की बेशक सरकार नहीं थी और महाराज के कांग्रेस छोड़ने से प्रदेश में शिवराज की सरकार खड़ी हो सकी है वहीं जो विधायक अपनी सालो पुरानी पार्टी को छोड़कर आए है उनका राजनीतिक त्याग नकारा नहीं जा सकता है पर उनके सहयोग से बन रही सरकार को ही सबकुछ मानकर भाजपा के सीनियर नेता चुप बैठे रहेंगे ये संभव नहीं है ऐसे भी शिवराज सिंह के सामने भी बड़ी चुनौती है और न सिंधिया को नाराज किया जा सकता है न ही अपनों को नाराज कर भविष्य में भाजपा में भी कांग्रेस जैसे बगावत की स्थिति बनने के मौके बने ये किया जा सकता है।