
मंत्रिमंडल विस्तार के बीच भोपाल में छाया सिंधिया का जादू
पंकज शुक्ला, जनपथ टुडे
भोपाल में प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार के मंत्रिमंडल गठन की सरगर्मियों के साथ ही साथ जहा प्रदेश भर के दिग्गज नेताओ का जमावड़ा रहा वहीं विधायकों से लेकर जिलों के पदाधिकारी भी भोपाल में डेरा डाले रहे। बहुत दिन के बाद भाजपा में उत्साह का माहौल दिखा लगभग पंद्रह माह तक कांग्रेस सरकार और उसके बाद तीन माह लॉकडॉउन के और इसके कुछ पूर्व से ही भाजपाइयों का भोपाल में जमा होने का कोई अवसर नहीं रहा इस तरह लगभग दो वर्षो के बाद भोपाल में भाजपा फुल फॉर्म में दिखाई दी। मौका उत्साह का था मंत्री मंडल विस्तार भले ही कोरोना संकट के चलते भव्य आयोजन न रखा गया हो पर नेताओं की भीड़ तो पूरी रही इस मौके पर कार्यकर्ता भले कम पहुंचे हो पर नेताओं की कमी नहीं रही।
मंत्री मंडल में शायद पहली बार इतनी संख्या में विधायक न होते हुए भी मंत्री बनने का अवसर लोगो को मिला और वे सब ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक है, वे भले विधायक नहीं है पर प्रदेश में कांग्रेस को हटा कर सत्ता में आई भाजपा को इन्हीं बागियों ने सत्ता में लाया है इन्होंने यदि विधायक और मंत्री पद की परवाह की होती तो किसी भी समीकरण से कमलनाथ की सरकार नहीं गिराई जा सकती थी। भाजपा के बहुत से लोग और नेता आज इनको लेकर भले मुंह बनाते दिखे पर प्रदेश में आज की राजनीति में महाराज भरोसे ” ये लोग आंख मुद के भाजपा में आ गए, इस तरह के “भरोसे” विश्वनीयता, और समर्पण आज की राजनीति में लुप्त हो चुके है और यदि ऐसा होता है तो वो सिर्फ अब की परिस्थितियों में चमत्कार ही है, इसी के चलते सरकार गिरने तक कमलनाथ और दिग्विजय सिंह बहुत निश्चिंत थे उनको ऐसा कोई राजनीतिक समीकरण और गणित दूर दूर तक नहीं दिख रहा था जिसके बल पर सरकार गिर भी जाए और भाजपा की सरकार बन भी जाए। अब मंत्रिमंडल गठन और आगामी उप चुनाव में भाजपा में एक तबका जमीनी कार्यकर्ताओं का राग भले अलाप रहा हो और उस पन्द्रह माह पूर्व जब विधानसभा चुनाव के परिणाम आए थे तब की जमीनी हकीकत और भाजपा की जमीन को नहीं भूलना चाहिए, जब कमल कमजोर और कमलनाथ मजबूत थे। उलट फेर में माहिर भाजपा के बड़े बड़े चाणक्य भी इस तरह के राजनीतिक घटना क्रम की संभावनाएं शायद नहीं देख पा रहे थे जिसे ” महाराज भरोसे ” संभव किया गया। एसपी, बीएसपी और निर्दलीयों के भरोसे एमपी का सत्ता समर कतई संभव नहीं था। यही वजह है कि आज भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व सिंधिया को न तो नाराज करना चाहता है न उनकी मर्जी के खिलाफ कोई निर्णय लेना चाहता है न सिर्फ इस बाकी बचे तीन साल की सत्ता बल्कि आगामी चुनाव में जीत के लिए भी उन्हें सिंधिया के चेहरे में अपनों से कहीं अधिक उम्मीद नज़र आ रही है, रही बाकी की चमक और असर कुछ दिनों बाद होने वाले उप चुनाव के परिणामों से पूरी तरह साफ हो जायेगे। अभी भी यदि सिर्फ शिवराज सिंह को छोड़ कर देखा जाए तो भाजपा के किसी एक नेता में 16 से 20 विधायकों को जिताने और उनका भरोसा बनाए रखने का माद्दा शायद ही किसी और में हो। मालवा में विजयवर्गीय में कुछ ताकत देखी जा सकती है। चंबल में नरेंद्र सिंह और नरोत्तम के बाद भी अब तक आंकड़ा सिंधिया के ही पक्ष में रहा, सिंधिया के बाद भाजपा सबसे अधिक मजबूत चंबल में ही होगी जाहिर तौर पर उप चुनाव में यदि 10 विधायक भी चंबल क्षेत्र में बीजेपी के पास चले जाते है तो कांग्रेस की जमीन ही नहीं बचेगी, चंबल क्षेत्र में कोई सर्वमान्य नेता फिलहाल कांग्रेस के पास अब नहीं बचा है वहीं कांग्रेस आलाकमान भी प्रादेशिक नेतृत्व को लेकर करीब दो साल से असमंजस में हैं वहीं यहां चुनाव की एक मुश्त जवाबदारी तक उठा पाने में सक्षम कोई कांग्रेस का चेहरा नहीं है, स्वीकार्य नेतृत्व का अभाव कांग्रेस का असली संकट है ।
इस सबके चलते ही बड़े विरोध के बाद भी भाजपा के केंद्रीय रणनीतिकारो ने सिंधिया की हैसियत से जरा सी भी छेड़छाड़ नहीं की बल्कि उनकी छवि को पुश ही किया गया। भोपाल में उन्हें ही बोलने का एक अवसर और कमलनाथ – दिग्गी पर जवाबी हमला करवा कर कहीं न कहीं भाजपा में सिंधिया के चेहरे को कार्यकर्ताओं के बीच सेट करने के प्रयास जैसा है, भोपाल में तमाम भाजपा दिग्गजों के बीच भी सिंधिया का ही जादू चला भले ही भाजपा के कई दिग्गज नेता भोपाल आए थे पर ” महाराज भरोसे ” भाजपा को भी आगे कुछ और उम्मीद और संभावनाएं है वहीं कुछ क्षेत्रीय चंबल की क्षेत्रीय राजनीति के भी फलसफे है जिसके चलते भाजपा प्रदेशाध्यक्ष का झुकाव भी सिंधिया की तरफ कुछ अधिक हो सकता है, जाहिर है शर्मा की भूमिका सत्ता से संगठन में अधिक है और सिंधिया सत्ता के खिलाड़ी है ऐसे में तालमेल बैठने के कुछ और कारण भी है जो सिंधिया को भाजपा में अधिक मौके दे सकते है, भाजपा में आने के बाद नरोत्तम मिश्रा और नरेंद्र सिंह की बजाय सिंधिया – शर्मा के बीच अधिक सामंजस्य के आसार है और सिंधिया के भाजपा में आने के बाद प्रथम भोपाल दौरा रहा हो या फिर अभी मंत्रिमंडल विस्तार पर सिंधिया का भोपाल प्रवास बी डी शर्मा की आंखो में भी सिंधिया के लिए उम्मीद दिखाई दी स्वीकार्यता नज़र आईं। जब पार्टी के भीतर कम ही दिनों में सिंधिया का असर प्रत्यक्ष और परोक्ष कुछ कुछ दिख रहा हो अकेले सिंधिया के बाद भी उनकी हैसियत से गुस्ताखी न की जा रही हो तब इतना तो समझ ही लेना चाहिए कि आज प्रदेश में जो सत्ता की कुंजी भाजपा के पास है उसमे 50 – 50 तो बनता है और ये भले भाजपा के तमाम लोगों को न भा रहा हो पर शीर्ष नेतृत्व को इसका अहसास है।
सिंधिया ने प्रदेश के राजनीतिक उलटफेर के बीच अब तक पूरी परिपक्वता का परिचय दिया और जनवरी माह में जब कांग्रेस की जड़े हिलती दिखी जब से कांग्रेस के नेता कमलनाथ और दिग्गी के अलावा हर तरफ से बौखलाहट भरे और खिसियाए से बयान लगातार आते रहे है पर सब बातों पर चुप्पी साधे रहे सिंधिया के सारे विधायकों की ताजपोशी के बाद उन्होंने अपना मौन तोड़ा और कुछ ही शब्दों में सारे सवालों के जवाब विरोधियों को दे दिए है, आगे भी सिंधिया से नुकसान के लिए कांग्रेस को तैयार रहना होगा। सिंधिया के नफा और नुकसान का आंकलन करने में जुटे कांग्रेसियों को ये पता है कि सिंधिया के जाने से नुकसान कांग्रेस को हुआ है और खासा हुआ है, डैमेज कंट्रोल सिर्फ बयानों से तो संभव नहीं है। भाजपा के गलियारों में पिछले दिनों दिखा सिंधिया का जादू इतने संकेत जरूर है कि सूबे की राजनीति में आगे भी सिंधिया के आसार कम से कम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से बहुत अधिक है। ये कांग्रेस भले न समझना चाहती रही हो पर भाजपा की इन उम्मीदों पर नज़र जरूर है।