भाजपा से यारी अब किसकी बारी ??? जबलपुर सियासत

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जनपथ टुडे जबलपुर, इन दिनों जबलपुर सहित पूरे महाकौशल में यह चर्चा आग की तरह फैली हुई है कि एक कांग्रेसी विधायक भाजपा में जाने की तैयारी कर चुके है। सारी डीलिंग बंद कमरे में हो चुकी है बस अब डिक्लेरेशन बाकी है, जबलपुर शहर में इस बात को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं और लोग अपने अपने अनुमान लगा रहे हैं कि आखिर कौन सा विधायक भाजपा में जाने की तैयारी कर रहा है? जैसा की ज्ञात है शहर की तीन सीटों पर कांग्रेस के विधायक लखन घनघोरिया, तरुण भनोट और विनय सक्सेना कांग्रेस के  विधायक काबिज हैं। एक ग्रामीण सीट भी कांग्रेस के पास है जिससे संजय यादव विधायक है इन दिनों शहर में इस बात की चर्चा बड़े जोरों पर है कि कांग्रेस का एक विधायक फिर कम होने वाला है।

 

पिछले दिनों जब कांग्रेस के बहुत सारे विधायक भाजपा में जा चुके हैं, तब इन चर्चाओं को बल मिलता ही है ऐसी ही घटनाओं के चलते प्रदेश में कांग्रेस को अपनी सत्ता भी गंवानी पड़ी, एक मुश्त लगभग 20 विधायकों के कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने के कारण कांग्रेस की सत्ता खतरे में पड़ गई। सच्चाई यह है कि मध्य प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में कांग्रेस पार्टी अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है, पूरी पार्टी करीब करीब बिखरने की कगार पर हैं, चुनावी हार और जीत से अलग यह ऐसा संकट का समय है जब नेतृत्व की विश्वसनीयता खतरें में आ गई है जब कांग्रेस अपने ही विधायकों पर पूरी तरह भरोसा कर पाने की स्थिति में नहीं है और उससे भी अधिक सदमे की बात कांग्रेस के लिए यह है कि जिन विधायकों पर पार्टी के नेता एक दिन बुलाकर बात करते हैं, भरोसा करते है उनमें से ही कोई दूसरे दिन भाजपा का झंडा थामे दिखाई देता है। असमंजस के कठिन दौर से गुजरती प्रदेश की कांग्रेस के हालाकि हाल अब कुछ ऐसे है की उसे एक दो विधायकों के छोड़ कर चले जाने से कोई बड़ा नफा या नुकसान नहीं होने वाला है। क्योंकि कांग्रेस अब सत्ता वापसी की संभावना से बाहर हो गई है, पर इस तरह वर्षों पुराने नेताओं और विधायकों के पार्टी छोड़कर जाने से पार्टी की साख और नेताओं की विश्वसनीयता पर सवाल जरूर खड़े होते है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति है, सांगठनिक ढांचा चरमरा रहा है, गतिविधियां शून्य है, वह भी उस मध्य प्रदेश की सियासी जमीन पर जहां दलबदल का विशेष असर कभी भी नहीं था न ही खरीद फरोख्त जैसे मामले अन्य प्रदेशों की तरह कभी देखे गए और उसी जमीन पर अचानक लगभग दो दर्जन विधायकों का पार्टी से फिसल जाना प्रदेश की राजनीति में भूचाल से कम नहीं था। अचानक, कांग्रेस के स्थापित युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का पार्टी छोड़ कर जाना और अपने साथ उनके समर्थक विधायक और मंत्रीयो का पद से इस्तीफा देकर भाजपा में चले जाना प्रदेश में कांग्रेस की जमीन कमजोर करने वाली बड़ी सियासी घटना है।

 

 

जबलपुर में चल रही इस चर्चा का व्यापक प्रभाव है और विधायकों पर सबकी नजर जरूर है वहीं जहा कांग्रेस के विधायक शंका के दायरे में आ गए हैं और कई तरह के कयास लगाए जा रहे है, जबलपुर के चार में से दो कांग्रेस के विधायक कमलनाथ सरकार में मंत्री रह चुके है वहीं दो विधायक पहली बार चुनाव जीत कर कांग्रेस से विधायक है। अब ये तय कर पाना हालाकि कठिन है कि आखिर कौन सा विधायक कांग्रेस से भाजपा में जा सकता है।

 

यह चर्चा केवल जबलपुर की गलियों में ही नहीं है बल्कि अब मामले को लेकर कहने को तो भोपाल से लेकर दिल्ली तक कांग्रेस सतर्कता बरत रही है और अपने प्रयास तेज कर दिए गए है, डैमेज कंट्रोल की दिशा में। ये अलग बात है कि कांग्रेस के बड़े नेता इस पूरे मामले को कोरी अफवाह बता रहे है पर अंदर ही अंदर इस स्थिति को लेकर चिंतित जरूर है, पूरी कांग्रेस। जबलपुर के जिस युवा विधायक को लेकर संभावना अधिक व्यक्त की जा रही है, उनकी ट्रैवल हिस्ट्री से लेकर भाजपा से संक्रमित होने के और भी कारणों पर लोग नजर रखे हुए है वहीं बताया जाता है कि भाजपा नेताओ से कांग्रेसी विधायकों की करीबियों का भी लोग बारीकी से विश्लेषण कर रहे है। भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा किंतु फिलहाल महाकौशल में इस समय की बड़ी राजनीतिक चर्चा यही है और इस पूरे क्षेत्र में जहां आने वाले समय में अनूपपुर में उपचुनाव होने है वहां के घटनाक्रम से अधिक नज़र लोगो की जबलपुर पर टिकी है।

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