“महिला सशक्तिकरण” का सरकारी दावा कागजों पर, जिला मुख्यालय में नहीं कारोबारी महिलाओं को प्रसाधन तक नहीं मुहैया

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आधा सैकड़ा महिलाएं सड़क किनारे करती है कारोबार

प्रशासन और पीने के पानी तक की नहीं व्यवस्थाएं

जनपथ टुडे, डिंडोरी, 11 जनवरी 2021, जिला मुख्यालय के बाजार में ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में महिलाएं अपने परिवार के भरन पोषण की मजबूरी के चलते सब्जी भाजी की दुकाने लगाती है। ये महिलाए प्राय दूर गांवों से जिला मुख्यालय आती है और सड़क किनारे दुकानें लगा कर दिन भर कारोबार करने के बाद देर शाम वापस अपने घर लौटती है। इन महिलाओं में नवविवाहिता, अविवाहित लड़कियों से लेकर वृद्ध महिलाए तक शामिल है। ये यहां वर्षों से कारोबार करती आ रही है किन्तु इनके लिए न तो नगर परिषद ने कोई पीने के पानी का इंतजाम किया है न ही समुचित प्रसाधन की व्यवस्थाएं की है। भूख लगने पर ये सड़क किनारे ही पीछे की तरफ मुंह मोड़ कर अपना खाना खा लेती है। सब्जी मण्डी में दिखावे के लिए रखा एक प्रसाधन अपनी कहानी साफ कह रहा है कि यह कम से कम महिलाओं के उपयोग के काबिल तो नहीं है।उल्लेखनीय है कि इन महिला कारोबारियों द्वारा हर रोज बाजार टैक्स के नाम पर नगर परिषद को राशि भी दी जाती है इस बाजार टैक्स का इनको क्या लाभ दे रही है नगर परिषद यह सवाल है?

 

महिला सशक्तिकरण के कागजी दावे

शासन स्तर पर महिला सशक्तिकरण के नाम पर जो ढोल पीटे जा रहे हैं उनकी जमीनी हकीकत जिला मुख्यालय की सड़क किनारे बैठी ये महिला कारोबारी खोल रही हैं। गौरतलब है कि जिले में महिला सशक्तिकरण के लिए विशेष रूप से विभाग संचालित है जिले भर में लंबा चौड़ा अमला पदस्थ है जो ” महिला सशक्तिकरण” के लिए आने वाले लंबे चौड़े बजट से साल भर बड़ी बड़ी गाड़ियों से गांव गांव में घूम घूम कर महिलाओं और बच्चो को सशक्त करने का दावा जरूर करता है पर अपने बूते अपनी मजबूरियों के चलते सशक्त बनने सड़क किनारे आकर रोज बैठने वाली महिलाओं की समस्याओं से शायद इस विभाग को कोई सरोकार ही नहीं है।

इस विभाग के महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए लंबे चौड़े अमले और मोटे आवंटन के बाद भी उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों के प्रतिफल दिखाई नहीं देते। वहीं ये आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाएं अपने बूते बिना किसी सरकारी सहायता के अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए अपनी छोटी मोटी   जमा  पूंजी से बाजार में बैठकर छोटा मोटा कारोबार करती हैं और अपने परिवार को बिना किसी की मदद के चला रही है।

किंतु इनके लिए सुविधा के नाम पर प्रसाधन और पीने के पानी की व्यवस्था तक की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। जबकि महिला सशक्तिकरण की दिशा में इन महिलाओं के द्वारा ही वास्तविक कदम उठाए जा रहे हैं खुली धूप, बरसात ठंड के मौसम का सामना करते हुए दूर गावों से आने जाने की तमाम कठिनाइयों का सामना अपने बल पर रोज करने वाली ये महिलाएं यहां से घर लौटकर अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां भी निभा रही और किसी से उम्मीद किए बिना सड़क किनारे हर तरह की चुनौतियों का सामना कर रही है। शिक्षा, साधन, आर्थिक आभाव के बाद भी हौसला न हारने वाली इन महीलाओ के लिए इनसे राजस्व वसूलने वाली नगर परिषद ही इनको कुछ आवश्यक  सुुविधाएंये उपलब्ध करवा दे बस इतनी ही दरकार है बड़ी बड़ी सरकारी विभागों से इन महिलाओं की।

आर्थिक मदद कर इनकी स्थिति बेहतर की जा सकती है

 

नगर परिषद के नुमाइंदे इनसे रोज  टैक्स वसूलते हैं  पर क्या  परिषद द्वारा फुटकर फुटपाथी कारोबारियों को लोन की सुविधा के लिए इन्हें चिन्हित किया ?  इसकी जानकारी इन महिलाओं को नहीं है जिसके चलते यह आगे और कुछ नहीं कर पा रहे हैं अगर प्रशासन चाहे तो इनकी आर्थिक मदद कर इनके जीवन और उनके बच्चों की भविष्य को सुधारने कुछ अच्छे कदम उठाए जा सकते है। करोड़ों रुपयों की आवश्यकता नहीं है इनको आर्थिक रूप से मजबूती प्रदान करने दो तीन लाख रुपयों से ही इनकी बड़ी सहायता हो सकती है।



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