चरमराती कांग्रेस में G -23 की चरचराहट

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रंग बदलती राजनीति

(इरफान मालिक की कलम से)

जम्मू में हुई G-23 की सियासी हरक़त ने कांग्रेस के अंदर – खाने के तमाम राज को बेपर्दा कर दिया है सब कुछ ठीक है का राग अलापने वाले भी अब कह रहे हैं नहीं सब कुछ गडबड है सच्चाई खुल कर सामने आ रही हैं,अब समय आ गया है जब कांग्रेस को अपने अस्तित्व को बचाने के लिए गंभीर और दूरगामी फैसले लेने होंगे,अब संकेतों से स्थति में काबू नहीं पाया जा सकता सकारात्मक परिवर्तन ही एक मात्र उपाय बचा है
,बिना कहे ही बात कह जाना, सियासत की एक यह भी अदा है। सियासतदां कई बार प्रतीकों के जरिए बिना कुछ कहे ही अपनी बात कह जाते हैं। दिल्ली से दूर जम्मू में शनिवार को जब कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के समूह ‘G-23’ ने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ एक तरह से हुंकार भरी तब उनके शब्दों से कहीं ज्यादा गहरे और मायने वाले उनके प्रतीक थे। सब कुछ जैसे संकेतों में था। गांधी ग्लोबल का मंच, नेहरू-गांधी परिवार वाले गांधी नहीं, महात्मा गांधी। बैनर से सोनिया या राहुल गांधी की तस्वीरें नदारद। एक और खास बात यह रही कि सभी के सिर पर भगवा पगड़ी बंधी हुई थी। यह महज संयोग है या फिर प्रतीक? कांग्रेस के बागी नेताओं के भगवा पगड़ी पहनने से सवाल उठना लाजिमी है।
यह भी सच है की कांग्रेस ने पिछले 30 सालों में कभी वैचारिक स्तर पर संगठनात्मक ढांचा खड़ा करने की कोशिश नहीं की और गांधी परिवार की लोकप्रियता के आधार पर पार्टी चलती रही उसका ही दुष्परिणाम था की ऐसे लोग भी पार्टी के महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले स्थान पर पहुंच गए जो वैचारिक रूप से विपन्न थे दलाल और चापलूस ज्यादा थे गांधी वादी तो बिल्कुल नहीं थे ना ही कांग्रेसी सिद्धांत मूल्यों के प्रति गहरी आस्था थी बस सत्ता का जुड़ाव और उससे मिलने वाले लाभ ने उन्हें पार्टी में जोड़ें रखा और सत्ता से दूर होने के बाद हर उस व्यक्ति की कलई खुल रही है जो सत्ता और अपनी संपन्नता के लिए पार्टी का इस्तेमाल करते रहे, और आम कार्यकर्ता की राष्ट्रीय नेतृत्व तक की पहुंच से दूर करने में लगे रहते थे ताकि सच्चाई सामने ना आएं



सोनिया, राहुल की तस्वीर नदारद, ‘असली कांग्रेस’ होने का दावा

G-23 के नेताओं के इस कार्यक्रम में कहीं भी सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी वाड्रा की कोई तस्वीर नहीं दिखी। नेताओं के तेवर का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि आनंद शर्मा ने कहा कि हम कांग्रेसी हैं कि नहीं, यह तय करने का हक किसी को नहीं है। सवाल यह भी उठ रहा है कि अनुभवी नेताओं ने अनुभव की बात छेड़ कहीं ‘परिवारवाद’ के खिलाफ लड़ाई तो नहीं छेड़ने जा रहे? पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने अपने संबोधन में कहा, ‘हममें से कोई ऊपर से नहीं आया। खिड़की, रोशनदान से नहीं आया। दरवाजे से आए हैं। चलकर आए हैं। छात्र आंदोलन से आए हैं। युवक आंदोलन से आए हैं। यह अधिकार मैंने किसी को नहीं दिया कि मेरे जीवन में कोई बताए कि हम कांग्रेसी हैं कि नहीं हैं। यह हक किसी का नहीं है। हम बता सकते हैं कांग्रेस क्या है। हम बनाएंगे कांग्रेस को।’ पर यह कहना भूल गए पिछले तीस चालीस साल से ये महारथी कभी वातानुकूलित कमरों से बाहर निकल कर कभी सड़क पर संघर्ष करते नहीं दिखें आनंद शर्मा ने इतना जरूर कहा, ‘पिछले सालों में कांग्रेस कमजोर हो गई है, मगर यह भी नहीं बताया कि भगवा पगड़ी पहनने से मजबूत कैसे होगी।



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