दिल्ली के चुनाव परिणाम देश के राजनीतिक चरित्र को सबक
डिन्डोरी – जनपथ टुडे, 12.02.2020
संपादकीय
11 फरवरी 2020 की राजधानी दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव के कल आये परिणाम राजनैतिक दलों के लिए अधिक चौकाने वाले हैं और यह देश के राजनैतिक दलों को एक तरह की प्रजातांत्रिक सुनामी का संकेत हैं।
दिल्ली में यह तीसरा चुनाव परिणाम है देश के राजनैतिक दलों को उनके परंपरागत चुनावी हथकंडों को बदलने का संकेत दे रहा है। दिल्ली में अचानक से हुए आंदोलन के बाद उसके व्यापक असर ने केवल उस वक्त की सरकार को कमजोर कर दिया बल्कि उस राजनीतिक दल की नीतियां और सोच पर भीतर ही भीतर लोगों के मन में इतना कठोर प्रहार किया कि दिल्ली की परिधि में पिछले 5 वर्षों से इस पार्टी की प्रगति 00 से आगे नहीं बढ़ पा रही है। 70 साल तक देश और अधिकांश प्रांतों पर अपने सत्ता का रसूख रखने वाली कांग्रेस दिल्ली में कुछ हासिल करने की उम्मीद ही नहीं रखती अब। वास्तव में तो वह लड़ने के लिए के पहले ही हार का मन बना लेती है वह भी उस दल की चुनौती के आगे जिससे वास्तव में एक राजनैतिक वेशभूषा, चाल, चरित्र और चेहरे वाली पार्टी के रूप में नहीं देखा जाता वही देश में जिस पार्टी का वर्चस्व दिनो दिन बढ़ता जा रहा था और व्यक्ति विशेष की अपराजय राजनीति को यही आम आदमी पार्टी 70/3 का तगड़ा ब्रेक देती है।
एक जनआंदोलन के बाद उसमें शामिल अधिकांश लोगों की असहमति और इस आंदोलन के केंद्र में रहे अन्ना जी के विरोध के बाद कुछ लोगों के द्वारा खड़ा किया गया एक राजनैतिक दल जो देश की राजनैतिक चकाचौंध के सामने आम लोगों से चंदा उगाह कर खड़ा किया गया था उस दौरे में उसकी गतिविधियों पर लोग हंसते थे और राजनैतिक न उम्मीदी से तैयार इस पार्टी भले ही लोगों और राजनैतिक दलों को चुनौती नहीं दिखाई दी पर उस कुछ लोगों के संगठन में तमाम ऐसे लोगों को अपनी नौकरियां छोड़कर शामिल होने मजबूर कर दिया जो सिस्टम में सुधार के लिए कुछ करना चाहते थे एक सरकारी सेवक के हाथ इस संगठन की लगाम थी और गौर से देखने पर लगता है कि इस पार्टी से अधिकतर वे लोग ही जुड़े हैं जो शासकीय, गैर शासकीय नौकरी करते थे या फिर सेवा व्यवसाय से जुड़े प्रोफेशनल। जाति से वैश्य इस नेता की अव्यवसायिक सोच के चलते व्यवसाय उद्योगपतियों और पूंजीवादी लोग आज भी इस पार्टी से दूर ही दिखाई देते हैं।
भले ही इस दल का उदय दिल्ली में हुआ और पहली बार इसमें अपना राजनीतिक वजूद बनाने दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रयास किया पर इसके साथ वैचारिक जुडाव देश भर के लोगों का रहा और दिल्ली चुनाव में बतौर कार्यकर्ता देशभर से लोग आज भी दिल्ली पहुंच जाते हैं और प्रचार करते है । पहली ही बार 70 में से 28 सीट जीतकर आम आदमी पार्टी ने देश के राजनैतिक रसूख वालों को हिला कर रख दिया और कुछ दिनों के सत्ता के बाद केजरीवाल को जमी दोज करने की देसी राजनीतिक परंपरा ने अपना रंग दिखाया तो अगले चुनाव में साल भर बाद कांग्रेस को जनता ने शून्य पर खड़ा कर दिया जो अब भी वहा उसी स्टेटस पर खड़ी है।
दूसरी बड़ी राजनैतिक पार्टी जिसकी केंद्र में सत्ता है उन्होंने आम आदमी पार्टी के वादों और काम करने के तरीकों को हमेशा चुनौती देने का काम किया पर काम होते रहे और जनता राजनैतिक झासों का समझती रही इन सब के बीच आम आदमी पार्टी के उदय के बाद से दिल्ली का तीसरा विधानसभा चुनाव भी आ गया और यह खास अहम था।
इस चुनाव में देश के राजनैतिक रसूख, चाल, चरित्र और चेहरों ने आर्टिफिशियल मुद्दों, सेल्फमेड राष्ट्रवाद और हरामखोरी जैसे तमाम विषयों और धार्मिक मुद्दों पर मत विभाजन के प्रयास किए जनमन अपने पर अडिग रहा आमलोग अपने प्रदेश की सरकार के कामकाज से खासे से संतुष्ट थे ऐसा कम ही दिखाई देता है देश की राजनैतिक व्यवस्थाओं में ।
फरवरी को दिल्ली ने पुन:जो जनादेश दिया वह जरूर देश की राजनीति और प्रदेशों की सत्ता में हिस्सेदारी करने वाले रसूखदार राजनैतिक लंबरदारो के लिए बड़ा सबक है क्योंकि दिल्ली न तो देश का पिछड़ा इलाका है न गरीबी बहुल है न किसी धर्म, जाति की बहुलता का यहा समीकरण बन सकता है। देश की राजधानी में हर प्रदेश, हर जाति, हर सोच, विचारधारा का व्यक्ति बसता है, बस एक खास बात है कि यहां कामकाजी,दिन रात जागता और भागता, व्यवसायिक सचेत लोगों की ही संख्या सर्वाधिक है फिर भी ऐसे मतदाताओं पर हरामखोरी का बिल्ला लगाने के प्रयास किए जाना और उन्हें देश के प्रति असमर्पित बताने की चेष्टा की जरूर गई पर लोगों ने इसे कतई गंभीरता से नहीं लिया बल्कि अपने मिजाज से मेल खाती एक कामकाजी व्यवस्था वाली सरकार को फिर खड़ा कर दिया वह भी तीसरी बार जो यह साबित करता है कि आम लोगों को राजनैतिक दल जो चेतावनी देते हैं उस का दौरा लदने लगा है, अब इन परंपरागत राजनीतिक दलों को अपने राजनैतिक हथकंडो को छोड़कर खुद सचेत होने की जरूरत है। आम जनता अब इन पार्टियों की चाल चरित्र और तौर-तरीकों को बदलने का संदेश दे रही हैं।
मुफ्त में खड़ा हुआ एक दल, मुफ्त में तीसरी बार सत्ता में सफल होता है तब उसका दायित्व है कि जो प्राथमिक सुविधाएं लोगों को बिना भेदभाव के मुफ्त में दिए जाने की सरकारी खजाने की हैसियत हो वो लोगों को दी जावे । इसमें कम से कम उन लोगों को परहेज नहीं होना चाहिए जो सत्ता सुख में सब कुछ मुफ्त का पाना अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते हैं। आजादी के बाद से राजनैतिक प्रयोगों में चूहे और मेंढ़क की तरह इस्तेमाल होता रहा देश का मतदाता अब सब कुछ न सही कुछ कुछ तो समझने लगा है तब जरूरी हो जाता है कि सिर्फ सत्ता के लिए राजनीति करने वाले दलों के नेता अब अपने राजनीतिक चरित्र में थोड़ा बदलाव लाए नहीं तो ये आमलोग भी अब शियासत बदल देने का हुनर जान गए है।