जिले में फिर शुरू उप स्वास्थ्य केंद्रों की मरम्मत का खेल
करोड़ों रुपए की बर्बादी के बाद भी नहीं मिल रही स्वास्थ्य सुविधाएं
जनपथ टुडे, डिंडोरी, 9 मार्च 2022, जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीण अंचल तक स्वास्थ सुविधाओं का आभाव हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। विभाग की मनमानी कार्यप्रणाली और निष्क्रियता के चलते शासन के करोड़ों रुपयों की बर्बादी जिले में देखी जा सकती है। पिछले कई वर्षो से उप स्वास्थ्य केंद्रों के उन्ययन और मरम्मत कार्य पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके है और भवनों का रंग रोगन कराकर स्वास्थ विभाग के दस्तावेज भले सक्षम हो गए हो किन्तु ठेकेदारों को मनमानी और इन भवनों में आवश्यक व्यवस्थाएं नहीं किए जाने से आज भी इन भवनों में आमजन को स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही है।
गत वर्ष लगभग चार करोड़ की लागत से जिले में 64 भवनों का मरम्मत कार्य अब तक अधूरा पड़ा हुआ है। विभाग द्वारा ठेकेदारों को कमीशन खोरी के चलते भुगतान किए जा चुके है और समयावधि गुजरने के साल भर बाद भी कार्य अधूरे पड़े है। जिसकी परवाह स्वास्थ विभाग को नहीं है। वहीं अगले दौर में पुनः उप स्वास्थ्य केंद्रों की मरम्मत के नाम पर एनआरएचएम का खेल शुरू हो गया है, और इन कार्यों को देखने और कार्यों का मूल्यांकन करने वाला कोई नहीं है।
इसी क्रम में करंजिया क्षेत्र अन्तर्गत गोपालपुर ग्राम पंचायत का सामुदायिक स्वास्थ्य परिसर जब से बना है अमले और सुविधाओं के आभाव में खाली पड़े पड़े जर्जर हो गया है और अब फिर इस भवन में मरम्मत
का काम शुरू कर दिया गया है। उक्त भवन बहुत पहले का बना हुआ है जो पूर्ण रूप से जर्जर हो चुका है जिसे टेंडर करवा करके लीपापोती का काम यहां पर किया जा रहा है। जबकि यहां स्वास्थ्य संबंधी कोई सुविधा और व्यवस्था नहीं है। न बैठक हाल की व्यवस्था है ना मरीज भर्ती करने की व्यवस्था है।
ठेकेदारों द्वारा मनमाना कार्य करवाया जा रहा है। भवन की छत पूरी तरह से जर्जर है, पानी की व्यवस्था है न शौचालय व्यवस्थित है। ठेकेदार भवन की जरूरी व्यवस्थाओं को करने का बजाय इसे केवल सुंदर बनाने के कार्य कर रहा है। वास्तव में जरूरी व्यवस्थाओं को देखने सुनने कोई की जिम्मेदार अधिकारी ने कोई सुध ली न ही चल रहे कार्यों की गुणवत्ता का निरीक्षण करने की किसी को फुर्सत है।
बताया जाता है कि जिला मुख्यालय से बैठे बैठे ही एनआरएचएम की उपयंत्री कार्यों का मूल्यांकन कर देती है जिसका जबलपुर में बैठे एसडीओ बिना देखे सत्यापन कर देते है और भोपाल से ठेकेदार को भुगतान कर दिया जाता है। गत वर्ष हुए कार्यों की वास्तविकता और किए गए भुगतान की जांच की जावे तो करोड़ों रुपयों की गड़बड़ी उजागर हो सकती है। जहां बिना काम किए ही ठेकेदार को भुगतान किया जा चुका है भवन अब भी जर्जर स्थिति में ही पड़े है।