अड़ई में लोगों की बैठकों और आक्रोश का बढ़ता दौर

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डिंडोरी – जनपथ टुडे, 28.02.2020

खरमेंर बांध निर्माण मध्यन सिंचाई परियोजना के अंतर्गत अड़ई ग्राम में चल रहे धरना प्रदर्शन और निर्माण की डूब की जद में आने से विस्थापित होने से सहमे ग्रामीणों का विरोध प्रदर्शन और तेज होता जा रहा हैं।

26 और 27 फरवरी को जिला प्रशासन और जल संसाधन विभाग के अधिकारियों ने निर्माण स्थल पर कार्य प्रारंभ करने की दिशा में प्रयासों के तहत धरना प्रदर्शन में शामिल ग्रामीणों को समझाईस देने की काफी कोशिशे की किंतु फिलहाल लोगो पर इसका असर न के बराबर हुआ बल्कि प्रशासन के इस “एक्शन” का “रीएक्शन” लोगों में अधिक नजर आ रहा हैं।

27 फरवरी की शाम हुई बैठक

विगत दो दिनो से अधिकारियों के प्रयास घटना स्थल पर बैठको के बाद जहा कोई परिणाम निर्माण शुरू करने की दिशा में नहीं निकला वहीं ग्रामीणों के सवालों से निरुत्तर अधिकारियों और उनकी समस्याओं – कठिनाइयों का ठोस समाधान न बता पाने से जहां प्रशासनिक पक्ष कुछ कमजोर पड़ा हैं वहीं ग्रामीण अब इस विरोध की को लेकर कुछ और उत्साहित नजर आ रहे हैं, उनकी संख्या भी बढ़ रही हैं और विरोध भी। सभी एक सुर में खिलाफत के बोल – बोल रहे हैं।

जिला पंचायत अध्यक्ष एवं जल संसाधन विभाग के अधिकारियों की दिन भर चली माथा पच्ची के बाद जब ये लोग घटना स्थल से वापस हो गए और वहां जमा मीडिया के तमाम लोगों ने वहा से वापसी की, उसके बाद ग्रामीणों की आपसी चर्चा के साथ एक बैठक हुई जिसमें कुछ युवाओं ने लोगों को एकजुटता और विरोध पर डटे रहने का संकल्प दिलाया। असफल होते प्रशासन के सामने अब विरोध करते ग्रामीणों के बढ़ते होसलो से आक्रमकता और एकजुटता का बढ़ता असर नजर आ रहा हैं। इन लोगो के विरोध के स्वर धीरे – धीरे तेज होते जा रहे हैं वहीं धरना देने वाली महिलाओं की सक्रियता बढ़ रही हैं और उन्हें संरक्षण और सुरक्षा प्रदान करने पुरुष वर्ग का बढ़ता जमाबड़ा अब अपने परंपरागत हथियारों कुल्हाड़ी, भाला आदि का खुले आम प्रदर्शन करता नजर आ रहा हैं, देर शाम तक चली बैठक में लोगों ने अपने संकल्प को मजबूती देते हुए “जान देंगे पर जमीन नहीं” का नारा भी बुलंद किया गया।

निर्माण के प्रभाव और लाभ

348 करोड़ की लागत से बनने वाले बांध अड़ई, डूंगरिया,उमरिया, खम्ही, छतपरा, बरगांव, केवलारी छिनदगाव, बम्हनी साल्हेघोरी, मोहगांव समेत 22 गांव डूब क्षेत्र के दायरे में आने की बात लोग कह रहे हैं। बताया जाता है कि बांध निर्माण से 8 गांव की 780 भूमि किसानों की भूमि और 120 हेक्टेयर शासकीय भूमि डूब क्षेत्र में आना संभावित हैं। जबकि शासन ने विस्थापितों के पुनर्वास हेतु ग्राम झांकी के बैगा टोला में 30 हेक्टेयर भूमि की व्यवस्था की है जहां आवास बना कर देने की बात कही जा रही हैं। बताया जाता है कि इस बांध के निर्माण से 42 गांव के खेतों में 12000 हेक्टेयर सिंचाई होने का दावा हैं।

अब तक साफ-साफ गणित नहीं समझा पाए अधिकारी

विस्थापितों के लिए झांकी में आवास की व्यवस्था प्रशासन करेगा किंतु उन लोगों के लिए क्या किया जावेगा जिनकी इस डूब प्रभावित क्षेत्रों में अधिक संख्या हैं, जिनकी कृषि भूमि डूब में आ रही हैं और उनके भरण पोषण का एकमात्र जरिया खेती किसानी हैं, उन्हें मुआवजा की राशि दी जाएगी पर उनके जीवनयापन का जरिया क्या होगा ? यह सवाल बड़ा है। लगभग 400 करोड की निर्माण लागत संभवत इतनी ही मुआवजा राशि से पुनर्वास पर खर्च और इनके बाद 20 से 30 गांव की जमीन प्रभावित होने के बाद 42 गांवों के 12000 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई होने का दावा कितना दुरुस्त निकलता है, इस पर भी सवाल उठ सकते हैं। इस परियोजना की लागत में खरमेंर पर बनी उन छोटी परियोजना की भी लागत जोड़ी जाए जो इसके बनने के बाद डूब में आएगी और बेकाम हो जावेगी तो एक बड़ा आंकड़ा बनता हैं।

जिन्न जल संसाधन विभाग की फाइलों में कैद

परियोजना पर विस्तार से सभी पहलुओं की जानकारी और आंकड़े, दावे, आय व्यय केवल जल संसाधन विभाग की फाइलों में दबे हैं इनको सार्वजनिक तौर पर उजागर कर मुआवजा लेने वालों, सहमति देने वालों की सूची सब कुछ पारदर्शिता से लोगों को बताया जावे पुनर्वास नीति से हितग्राहियों को कितनी मदद मिलेगी बातों का खुलासा करने की बजाय जल संसाधनों विभाग इन सारे महत्वपूर्ण तत्वों को “जिन्न की तरह समेट कर” अपनी फाइलों में कैद किए रखा हैं और इसी के चलते लोगों में असंतोष और असमंजस इतना पनप चुका है कि अब इसे समेटना मुश्किल हो रहा है।

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