
दलबदलुओं के भरोसे राष्ट्रीय दलों की राजनीति…
नगर परिषद चुनाव : राजनैतिक दलदल में कूदे उम्मीदवार
बगावत के स्वर बुलंद, अध्यक्ष पद के दलबदलुओं का दावा चर्चाओं में
जनपथ टुडे, डिंडोरी, 11 सितंबर 2022, नगर परिषद चुनाव के करीब आते तमाम उम्मीदवारों में भगदड़ मच गई है। हालाकि अभी भाजपा और कांग्रेस ने अपने अधिकृत उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं की है। किन्तु संभावितों को संकेत दे दिए गए है, जिसके बाद टिकट मांगने वालों ने पार्टियों में बगावत शुरू कर दी और दूसरी पार्टी की सदस्यता लेने का सिलसिला तेज हो गया है।
भाजपा और कांग्रेस की नगर परिषद चुनावों को लेकर तैयारियों की कलई खुलने लगी है।दोनों राष्ट्रीय दलों में संगठनात्मक शून्यता उभरकर चर्चा में आ रही है की अध्यक्ष पद के लिए दोनों दल बागी/दलबदलू चेहरों पर निर्भर क्यों हो गए है।
अभी अभी मिल रही जानकारी के अनुसार श्रीमती सुनीता सारस ने कांग्रेस की सदस्यता ले ली है। सूत्रों की माने तो वे कांग्रेस की ओर से अध्यक्ष पद की दावेदार होगी। गौरतलब है कि सुनीता सारस अभी तक भाजपा से वार्ड क्रमांक 13 से पार्षद का टिकट मांग रही थी किन्तु ना उम्मीद होकर अंततः उन्होंने रविवार को कांग्रेस की सदस्यता ले ही ली। उनके पति प्रभारी सी.एम.ओ.भी है। सुनीता सारस पूर्व में नगर परिषद अध्यक्ष पद का चुनाव जनता दल यूनाइटेड से लड़ चुकी है और अब भाजपा से संभावनाएं तलाशते हुए अंततः कांग्रेस का दामन थाम लिया है। जिन्हे कांग्रेस से अध्यक्ष पद का चेहरा बताया जा रहा है। सूत्र बताते है कि सुनीता सारस अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाए जाने की शर्त पर ही कांग्रेस की सदस्यता के लिए राजी हुई है।
कुछ ऐसी ही स्थिति भाजपा में देखी जा रही है जहां अध्यक्ष पद के लिए प्रमुख रूप से श्रीमती देवश्री सिंह के नाम की चर्चा है। उनको लेकर चर्चा है कि छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ी रही, श्रीमती सिंह पिछले दिनों पार्षद पद के टिकट के लिए कांग्रेस में सक्रिय रहीं और बाकायदा उन्हें पार्टी की बैठकों में भी देखा गया। किन्तु फिर अब वे भाजपा का दामन थाम चुकी है और भाजपा की और से उन्हें अध्यक्ष पद का दावेदार बताया जा रहा है वहीं उनका पार्षद के लिए टिकट भी तय बताया जा रहा है।
भाजपा और कांग्रेस में निकाय चुनाव के टिकट वितरण को लेकर व्याप्त असंतोष के चलते अब असंतुष्ठ कार्यकर्ता सवाल उठा रहे है कि आखिर पार्टियां पुराने कार्यकर्ताओं की अपेक्षा कर, नए चेहरों पर क्यों अधिक निर्भर है। जबकि दोनों बड़ी पार्टियों के पास पार्षद और अध्यक्ष पद के लिए पर्याप्त दावेदार है तब भी सक्रिय कार्यकर्ता होने के बाद “पैराशूट जंपिंग” होने के चलते पार्टी कार्यकर्ताओं ने भारी असंतोष है। जिसके परिणाम निश्चित रूप से चुनाव में दिखाई देंगे।
इन बड़े राष्ट्रीय दलों को अपने पुराने कार्यकर्ताओं पर भरोसा इतना कम क्यों है। ये प्रश्न आम मतदाताओं के लिए बहुत अहम हो गया है। राजनैतिक दल भले ही इसे अपनी पार्टी का अंदरूनी मसला माने पर आखिर में उन्हें यह सब राम कहानी लेकर जाना तो जनता के बीच ही और मतदान के पहले आम मतदाता भी चेहरों को जमकर परखता भी है, पार्टियों का काम को शाम तक ख़तम होने के बाद इस पूरी कहानी का अंत मतदाताओं को ही करना है और जनता सब जानती है……।।।