हंगामा है क्यो बरपा, थोड़ी सी जो खां ली है ……..

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जिले में आदिवासियों के हक को डकारना कोई नई बात तो है नहीं, वर्षों से यह क्षेत्र अफसरों का चारागाह बना रहा है और खामोशी से पिछड़े आदिवासी, बैगा जनजाति के विकास के नाम पर विशेष रूप से आने वाली बड़ी शासकीय राशि को इसी तरह से अफसरशाही डकारती रही है। कुछ टुकड़े कुछ खास लोगों को भी डाले जाते है ताकि भौंकने का अधिकार रखने वाले ये लोग भी शांति बनाए रखे। होता भी यही रहा तब भी सब कुछ “स्मुथली” चलता रहा है। अब तक और आगे भी चलता रहना चाहिए इसी में सबका भला भी है। फालतू हो हल्ला और हंगामे से भ्रष्टाचार के इस दौर में होने वाला क्या है? चाहे वो छात्रवृत्ति घोटाला हो, मरम्मत के नाम पर घोटाला हो, स्मार्ट क्लास, स्काउट गाइड की राशि हड़पने का मसला हो, सीएम राइज़ स्कूल शुरू होने के पहले उसमे कमाई की क्लास का मसला हो, या या… बस्ती विकास मद की राशि संस्थाओं को देने के नाम पर हिल्ले लगाने का मामला हो किसे नहीं मालूम? नेताओं को, मंत्रियों को, विधायकों को, प्रशासन को, मीडिया को, जिले भर के विभागीय अमले को? सबको सब कुछ मालूम है फिर भी कोई कुछ बोलने और करने तैयार नहीं है तो फिर जनता होती कौन है हल्ला मचाने वाली? प्रजातंत्र का मतलब जो अब तक समझ में आया वो ये है कि चुनाव में जनता ने वोट डाल दिया नेता चुन लिया उसके बाद चलेगी सिर्फ उसकी, वो जो चाहेगा वो होगा। और वो क्या चाहता है सालों से देख तो रही है जिले की जनता, फिर अब नया क्या हो गया? अफसरों पर आरोप सरकारी माल खाने का लग रहा है जिस पर सरकार को कोई फर्क नहीं है प्रशासन को भी कोई परवाह नहीं है तो फिर हंगामा क्यों? जांच और कार्यवाही के नाम से जिम्मेदार अधिकारी मुंह छुपा रहे है।

अब पिछले दो तीन साल में यदि कोई अधिकारी कुछ एक मद की कुछ राशि खा गया तो हंगामा क्यों है बरपा? और हंगामे से डरे वो जिसने पहली बार खाया हो, साहब तो पहले से विख्यात है बड़ी बड़ी एजेंसियों ने छापे मारे पकड़े गए, तो क्या बिगाड़ लिया किसी ने, आज भी नौकरी बरकरार है वो भी उसी तर्ज पे, कहते है न खुदा मेहरबान तो………, चल रही है गाड़ी सबका साथ सबका विकास सरकार का ही तो नारा है। आदिवासी विकास विभाग की कमान भी सरकार ने जिले के आदिवासी युवा नेता को दे दी उस दौर में भी जिले के आदिवासी छात्रों की छात्रवृति हड़प ली जाए तो बताए अब कौन सा इलाज बचा है! सरकार क्या करे, जब चौकीदार ही चोर निकल जाए! केवल सरकारी अधिकारी भर चोर नहीं है जनता के प्रतिनिधि भी वही कर रहे है तब मामला तो बराबर का है। इस नारे के साथ हम सब…। जनता को इस कदर बेकाबू नहीं होना चाहिए हमारे चुने हुए नेता है जागरूक है। सब कुछ जानते है समझते भी है फिर जब वो चुप है तो मतलब सब ठीक ही चल रहा होगा सिस्टम!

कुल मिलाकर शिक्षा विभाग ने लंबे समय से घोटाला और गड़बड़झाला चलता रहा है, अबकी बार बड़े समय से मीडिया इसको लेकर ख़बरें सार्वजनिक करता रहा, जिम्मेदार अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों के संज्ञान में मामले लाता रहा पर कहीं कोई टस से मस नहीं हुआ। पिछले दिनों जिला पंचायत अध्यक्ष ने जिला कलेक्टर से कार्यवाही की मांग की और आंदोलन की चेतावनी दी थी। पर उनकी चेतावनी से कोई फर्क किसी को नहीं पड़ा। प्रशासन को भी अनुमान नहीं था कि क्षेत्र में मामले को लेकर इतना जनाक्रोश है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग विरोध करने आयेगे। जिला पंचायत अध्यक्ष आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे पर इस बार उनकी ही पार्टी का बैनर उनके साथ नहीं दिखाई दिया, उनकी पार्टी के विधायकों ने भी छात्रों के हक में लड़ना जरूरी नहीं समझा। पर रुद्रेश परस्ते ने दो चार दिन में ही बड़ी तैयारी के साथ जिला मुख्यालय में आंदोलन की तैयारी कर ली और बहुत बड़ी संख्या में लोग जब जिला मुख्यालय की सड़कों पर दिखाई दिए तो कइयों के तो होश ही उड़ गए। कई तरह के आरोप जुटी भीड़ पर लग रहे है पर इतना तय है कि जो हुजूम उमड़ा वह जिले के ही लोग थे कहीं से इंपोर्ट नहीं किए गए थे और इनकी संख्या भी दस हजार के आस पास थी। कलेक्ट्रेट परिसर तक आंदोलनकारी न पहुंचे इसके लिए पुलिस बल तैनात किया गया, बेरीकेट्स लगाए गए, कलेक्ट्रेट के गेट पर ताला बंदी की गई, कलेक्ट्रेट के सभी दरवाजों पर पुलिस मुस्तैद रही पर भीड़ ने सारे अवरोध हटाकर कलेक्ट्रेट परिसर में घुसकर घेराव कर लिया और बहुत देर के बाद जिला कलेक्टर को जनता के सामने आना ही पड़ा, उन्होंने ज्ञापन लेकर आश्वासन भी दिया। वहीं जिला पंचायत अध्यक्ष ने कार्यवाही नहीं होने पर आगे और बड़े स्तर पर आंदोलन की चेतावनी एक बार फिर दी है। खैर आगे जो होगा वो देखा जाएगा पर फिलहाल प्रशासन आंदोलनकारियों के निशाने पर रहा।

      कैसा “राजहट“?

आमजन यह जानना चाहता है कि प्रशासन को शिक्षा विभाग पर घोटालों के लग रहे आरोपों की जांच कराने ने परेशानी क्या है? तमाम जनप्रतिनिधि, नेता, राजनैतिक दल के लोग जनता के हक की लड़ाई में आगे आने की बजाय चुप क्यों है? केंद्रीय मंत्री मामले पाए कार्यवाही के निर्देश देने से क्यों बच रहे है। यदि सभी को लगाए जा रहे आरोप गलत लग रहे है और शिक्षा विभाग में रामराज्य चल रहा है, यह पता है तो जनता को सार्वजनिक तौर पर ये भी बताना चाहिए। जिला कलेक्टर तो सबकी सुनते है, सुबह से गांव गांव जाकर गरीब जनता के हाथ पर अपना नम्बर लिख आते है और जब पूरे जिले में कोहराम मचा है घोटालों पर जांच की मांग कर रही जनता हजारों की संख्या में कलेक्ट्रेट पहुंचती है। तब साहब गेट पर ताले जड़वा देते है, परिसर को छावनी बना दिया जाता है। ऐसा हट क्यों जनता तो जनता है, जनता को इस आधार पर नहीं बाटा जाना चाहिए कि वो अमुक पार्टी और नेता की समर्थक है। आमतौर पर जिले में आंदोलन होते है ज्ञापन देने लोग आते है प्रशासन उनकी बात सुनता है वे चले जाते है। तो अब क्या हुआ जो परिसर में लोगों को घुसने से रोकना पड़ा? पुलिस ने समझदारी का निर्णय लिया, सख्ती का प्रयोग गलत हो सकता था भीड़ बहुत ज्यादा थी, आक्रोश में थी और अपने नेता के पुख्ता समर्थक थे। अब आगे प्रशासन को जनता की आवाज सुनना चाहिए इस घोटालों की परते खोलने की शुरुआत करना चाहिए मामला उजागर होने पर किसको राजनैतिक नफा होगा और किसको नुकसान यह आगे जनता तय करेगी।

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