
रिपोर्ट नहीं देने पर आयोग नाराज़, डिंडोरी कलेक्टर सहित शीर्ष अधिकारियों को अंतिम नोटिस
संपादक प्रकाश मिश्रा 8963976785
जनपथ टुडे डिण्डोरी 25 दिसम्बर 2025 – केंद्र और राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी नल से जल योजना, जिसका उद्देश्य हर घर तक स्वच्छ पेयजल पहुंचाना था, डिंडोरी जिले में कागज़ों तक सिमटती नजर आ रही है। इस योजना में करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद जमीनी हकीकत यह है कि कई गांवों में न तो नियमित जलापूर्ति है और न ही कार्यशील नल। परिणामस्वरूप ग्रामीण, विशेषकर महिलाएं और बच्चियां, आज भी पीने के पानी के लिए लंबी दूरी तय करने को मजबूर हैं।
इस गंभीर स्थिति को संज्ञान में लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने डिंडोरी जिला प्रशासन एवं राज्य शासन पर सख्त रुख अपनाया है। आयोग ने जिला कलेक्टर डिंडोरी, मुख्य सचिव मध्यप्रदेश तथा जल संसाधन विभाग के सचिव को अंतिम स्मरण पत्र जारी करते हुए स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वे दो सप्ताह के भीतर विस्तृत और तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
*शिकायत में क्या हैं आरोप?*
डिंडोरी निवासी अधिवक्ता सम्यक जैन और मनन अग्रवाल द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि: नल से जल योजना के तहत किए गए कार्य अधूरे और घटिया गुणवत्ता के हैं कई स्थानों पर पाइपलाइन बिछाने के बाद रख-रखाव पूरी तरह से बंद है, जिम्मेदार अधिकारी और ठेकेदार आपसी मिलीभगत से योजना को कागजों में सफल दिखा रहे हैं
जल संकट का सबसे बड़ा भार महिलाओं पर पड़ रहा है, जो रोज़ाना कई किलोमीटर दूर से पानी लाने को विवश हैंl याचिका में इसे मानव गरिमा, स्वास्थ्य और जीवन के मौलिक अधिकार का सीधा उल्लंघन बताया गया है।
*आयोग की सख्त टिप्पणी* 17 जनवरी तक प्रस्तुत करें रिपोर्ट
मानवाधिकार आयोग ने 24 दिसंबर 2025 को मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि पहले ही जिला प्रशासन और राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी जा चुकी थी, लेकिन निर्धारित समय-सीमा में कोई जवाब प्रस्तुत नहीं किया गया। इसे आयोग ने गंभीर प्रशासनिक उदासीनता माना। आयोग के उप-पंजीयक (कानून) इंद्रजीत कुमार द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि यदि 17 जनवरी 2026 तक रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई, तो मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 13 के तहत दमनात्मक और बाध्यकारी कार्रवाई की जाएगीl यह मामला केवल जल संकट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शासन-प्रशासन की जवाबदेही, पारदर्शिता और निगरानी व्यवस्था पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है। सवाल यह है कि जब मानवाधिकार आयोग जैसे संवैधानिक संस्थान के निर्देशों की अनदेखी हो रही है, तो आम ग्रामीण की आवाज़ कितनी सुनी जा रही होगी? मानवाधिकार आयोग ने स्पष्ट किया है कि मामला दो सप्ताह बाद पुनः सूचीबद्ध किया जाएगा। यदि तब भी संतोषजनक जवाब नहीं मिलता है, तो अधिकारियों के विरुद्ध व्यक्तिगत रूप से जवाबदेही तय की जा सकती है।
डिंडोरी के ग्रामीणों को अब उम्मीद है कि यह मामला केवल फाइलों में न सिमटे, बल्कि उन्हें वास्तव में वह पानी मिले, जिसका वादा सरकार ने किया था।

