जिले में वापस लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए बनानी होगी ठोस नीति

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सुप्रीम कोर्ट ने भी दिए है सरकारों को आदेश

जिले में जनप्रतिनिधि और प्रशासन को बनानी होगी व्यवस्थाएं

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सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों के हितों को लेकर दिए आदेश

प्रवासी मजदूरों के संदर्भ में केंद्र व राज्य सरकारों को सुप्रीम कोर्ट का आदेश, देश में लॉक डॉउन के 77 दिन बीतने के बाद भी अलग अलग राज्य में फंसे प्रवासी मजदूरों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों से कहा है कि वह 15 दिन के भीतर सभी प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाये, इसके साथ ही लॉक डॉ उन का उल्लंघन करने पर राज्यों में उन पर दर्ज मुकदमे सरकारे वापस लें। जस्टिस अशोक भूषण के नेतृत्व वाली पीठ ने मंगलवार को यह भी निर्देश दिया है कि पलायन करने वाले सभी मजदूरों की पहचान का डाटा तैयार करें उनकी मैपिंग कराई जाए ताकि उन्हें योग्यता अनुसार रोजगार मिल सके। कोर्ट ने यह भी कहा है कि मजदूरों के लिए काउंसलिंग सेंटर खोले जाएं जहां उन्हें रोजगार संबंधी जानकारी दी जाए, इसके अलावा घर लौटे मजदूरों के लिए रोजगार की योजनाएं बनाएं जिनका गांव-गांव तक प्रचार करें। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि पूरी प्रक्रिया के बारे में केंद्र व राज्य 2 सप्ताह में कोर्ट में पेश करें। कोर्ट में सुनवाई में यह भी निर्देश दिया कि राज्य की 24 घंटे में प्रवासियों को उनके घर पहुंचाने के लिए अतिरिक्त ट्रेनें भी उपलब्ध कराई जाए। इस मामले में अगली सुनवाई जुलाई में होगी। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 5 जून को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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जनपथ टुडे, डिंडोरी, 7 जून 2020, कोरोना पर नियंत्रण के विश्वव्यापी प्रयासों के साथ देश प्रदेश के द्वारा निर्धारित नीति निर्देशों के आधार पर उठाए गए कदमों और प्रयासों के बाद अब स्थितियां बहुत कुछ नियंत्रण में है। संक्रमण के प्रकरणों की संख्या बढ़ रही है, पर हाल इतने भी नहीं बिगड़े जितनी दहशत थी मोटे तौर पर देखें तो कोरोना से निपटने में सक्षमता का परिचय दिया है, हमारी सरकारों ने। ढेरों शिकायतें, समस्याएं और कठिनाइयों का बखान भी सच है और तमाम आरोप झूठे नहीं है। किंतु एक कठिन दौर में प्रभावो रोकने की कोशिश की जा सकती हैं। प्रभाव व्यवस्था और जनजीवन पर होना ही था उनको कम किए जाने सरकार लगी हुई है, परिणाम समीक्षा का विषय हो सकता है।

संक्रमण के दौरान लगे लॉक डॉउन का सर्वाधिक प्रभाव उन मजदूरों पर पड़ा जो काम की तलाश में अपने गांव से बाहर दूसरे स्थानों पर जाते हैं। कल- कारखानों के बंद होने से रोज कमाने खाने वाले हर मजदूर को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। परंतु जो लोग अपने घर से बाहर गए थे उन मजदूरो को सबसे अधिक संकट का सामना करना पड़ा। अपने घर से जो मजदूर जितनी दूर गया वह उतना अधिक परेशान हुआ। आज की स्थिति में कोरोना का संक्रमण भी इन वापस लौट कर आने वाले लोगों में ही अधिक पाया जा रहा है। पॉजिटिव केसो में सबसे अधिक संख्या इन्हीं अपने घर लौट कर आने वाले श्रमिकों की है।

इस संकट के दौर में बहुत से ऐसे तत्व उजागर हुए है जिनका इसका पहले कभी खुलासा नहीं हो पाया था। डिंडोरी जिले जैसे पिछड़े, आदिवासी अंचल में पलायन करने वाले मजदूरों की वापसी हुई है। प्रशासनिक जानकारी उनकी संख्या 35 हजार के आसपास बता रही है पर वास्तव में इनकी संख्या 50 हजार के करीब हो सकती है। शासन के निर्देशों पर जिला प्रशासन इनका सर्वे करवाकर सूची बनवा रहा है ताकि उनको काम दिया जा सके, राशन मिल सके इनकी कुछ वैकल्पिक व्यवस्थाएं की जा सके, प्रयास हो रहे है प्रदेश की सरकार अपने स्तर पर नीति बना रही है, कोर्ट का भी कल ही आदेश आया है प्रवासी मजदूरों के हितों पर सरकार से जानकारी भी मांगी है और कुछ आदेश भी दिए है।

 

जिले के प्रवासी मजदूरों के लिए ठोस नीति की आवश्यकता

प्रशासनिक प्रयास, शासकीय निर्देश, कोरोना का असर इनके चलते वापस आए श्रमिक अभी अपने गांव में अपने भरण-पोषण की समस्या में उलझे है। इसके बाद स्थितियां सामान्य हो जाने पर ये काम के अवसर खोजेगे जो इनके अनुरूप हो और अधिक कमाई वाले हो, जो हमारे यहां उपलब्ध है ही नहीं। प्रवासी श्रमिको की आवश्यकताएं स्थानीय ग्रामीणों से कई गुना अधिक है। फिलहाल संकट में भले ही इन्होंने अपनी महत्वकांक्षाओं को लॉक डॉउन कर रखा हो पर ये भी सच है कि लॉक डॉउन एक अस्थाई व्यवस्था मात्र है ये कही भी स्थाई नहीं की जा सकती। तो बहुत दिनों तक इनको भी नहीं रोका जा सकेगा, जाहिर सी बात है। इनकी जरुरते अधिक है, इनके पास कुछ कौशल भी है और इन्होंने अधिक पैसे कमाने के अवसरों को खोजा भी था, इनकी जरुरते भी अधिक है और इनको उस तरह के काम के अवसर अपने जिले में उपलब्ध हो ये कठिन है। जिले में काम की कमी है इसके लिए कोई तर्क दिया जाना फिजूल है, 50 हजार लोग पलायन करते हैं तब प्रमाणित है कि उनकी काम की मांग की पूर्ति नहीं हो पा रही है। अब जब यहां काम नहीं है और जहां से ये प्रवासी मजदूर वापस आए हैं वहां कामगारों की जरूरत है। तब आज नहीं तो कल इन्हें वापस बुलाने के लिए प्रलोभन भी दिए जाएंगे और प्रवासी मजदूर वापस भी जाएंगे, ऐसा कोई प्रतिबंधात्मक कानून भी नहीं है जो किसी व्यक्ति को कहीं काम करने जाने से रोक सकें। आने वाले समय में पुनः स्थितियां वैसी ही होगी जैसी वर्षों से थी। सार्वजानिक यातायात प्रारंभ होते ही जिले में मजदूरों को ले जाने दलालों और एजेंट जिले के होटलो में डेरा डाल कर इन मजदूरों को ले जाने के प्रयास करेंगे।

स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को कोई ठोस नीति बनानी चाहिए जिससे जिले में सक्रिय होने वाले मजदूरों के दलालों और एजेंटों की बजाएं बाहर काम करने वाले श्रमिकों को ऐसी एजेंसियों के माध्यम से ही जाने देना चाहिए जो श्रम कानूनों के निर्धारित नियमों, श्रमिक कल्याण की नीतियों का पालन करते हैं। इनके माध्यम से श्रमिकों के हितों, बीमा, फंड, आदि की स्थिति पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके। जिला स्तर पर शासकीय विभाग या फिर किसी संस्था अथवा एजेंसी को इनकी आवाजाही की जानकारी रखे जाने की व्यवस्था की दिशा में कोई नीति बनाई जाए। प्रवासी मजदूरों की सूची उपलब्ध है, तब इनमें से जो भी अब बाहर काम करने जाना चाहें उन्हें स्थानीय प्रशासन की मदद से पंजीकृत करके ही बाहर जाने देने की व्यवस्था बनाई जानी चाहिए। ताकि ऐसी विषम परिस्थितियों में या फिर इन मजदूरों के साथ होने वाले अत्याचार का कोई मौका हो तो स्थितियों पर नियंत्रण बनाया जा सके।

यदि इन श्रमिको को जबरन जिले में रोका भी जाता है तो इनको हर दिन काम मुहैया कराने के लिए एक बड़ी राशि की आवश्यकता होगी जो भार सरकार पर अतिरिक्त पड़ेगा साथ ही ये श्रमिक जो बाहर के प्रदेशों और जिलों से कमा कर वापस आते है वह जिले की अर्थव्यवस्था में अपना कुछ योगदान जरूर देता है। तमाम स्थितियों की समीक्षा होनी चाहिए और प्रवासी मजदूरों के अधिकार और सुरक्षा की दृष्टि से प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को आगे आ कर कुछ न कुछ ठोस कदम जरूर उठाना चाहिए। जो भविष्य में किसी भी बड़े संकट से हमारी इस श्रमशक्ति को सुरक्षित कर सके दोबारा उन्हें ऐसा संकट न झेलना पड़े जैसा कोरोना संक्रमण के दौर में इन्होंने झेला है।

– पंकज शुक्ला –

                          

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