मुमकिन नहीं सड़क का दिखना, तो इस पर कैसे चले लोग
गोपालपुर से रूपेश सारीवान की रिपोर्ट :-
जनपथ टुडे, डिंडोरी, 16 जून 2020, आदिवासी बहुल इस जिले पर जो पिछड़े होने की मुहर आजादी के बाद से लगी है वो अब तक इस क्षेत्र का पीछा नहीं छोड़ रही है।आजादी के बाद से इस दौर में जिले भी बहुत लोग शिक्षित हो चुके है, नौकरी पेशा और पढ़े लिखे लोगो की खासी तादाद है, शासन ने लगातार ऐसे पिछड़े क्षेत्रों पर ध्यान दिया है, विकास के लिए न सिर्फ बड़ी मात्रा में पैसा खर्च किया है बल्कि विकास में कोताही न हो इसके चलते बड़ा शासकीय अमला यहां पदस्त किया गया। यहां तक की डिंडोरी को जिला बना कर सभी शासकीय विभागों और एजेंसियों के कार्यालय भी प्रारंभ किए गए पर फिर भी क्षेत्र के विकास की कहानी वही रही और आज भी कहीं कहीं हाल जस के तस बने हुए है। वजह है, आदिवासी बहुल इस जिले के लोगो का भोला भाला और सीधा होना जिसके कारण आज भी क्षेत्र में भ्रष्टाचार चरम पर है और शासकीय एजेंसियां जमकर शोषण करने में लगी हुई है।
करंजिया विकासखंड के गोपालपुर कस्बे से 12 किमी की दूरी पर बिल्कुल छत्तीसगढ़ प्रदेश की सीमा से सट कर बसा ग्राम खारीडिह है। इस वनग्राम को जिले से जोड़ने के लिए मुख्य रास्ता गोपालपुर होकर ही गुजरता है। वर्षों से यहां के निवासी कीचड़ और पत्थरों से होकर पैदल यात्रा करते रहे है। यहां वर्ष 2012 में प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत गोपालपुर पहुंचने के लिए सड़क का निर्माण किया गया जो कि भ्रष्ट ठेकेदार और लापरवाह निर्माण एजेंसी के अधिकारियों के कारण कुछ ही दिनों में दम तोड चुका है।
अभी बरसात की शुरुआत ही हुई है और सड़क के गड्ढे नदी में इस कदर तब्दील हो चुके है कि सड़क को देखना मुमकिन नहीं लगता तब इस पर वाहन कैसे और कहां चलाया जाए ये समझना बहुत कठिन है।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 62 लाख 32 हजार रुपए की अनुमानित लागत से 6 किमी सड़क का निर्माण कार्य ठेकेदार हर्ष कस्ट्रशन जबलपुर के द्वारा 12/12/2012 में प्रारंभ किया गया जबकि कार्य पूर्णता की अवधि वर्ष 2011 थी। इस मार्ग का आगामी पांच साल तक रखरखाव ठेकेदार को करना था जिसके लिए 26 लाख 68 हजार रूपए की राशि का प्रावधान योजना में था। कार्य पूर्ण होने की सूचना में वर्ष 2017 का उल्लेख है। किन्तु इन पांच वर्षों में सड़क का न तो कोई रखरखाव हुआ न ही विभाग इसका अस्तित्व बचा पाया और ग्रामीण विकास विभाग की लगभग एक करोड़ रुपयों की राशि ग्रामीण सड़क योजना के माध्यम से खर्च कर के बनाई गई इस छ किमी सड़क पर इस आदिवासी अंचल के ग्रामीण रहवासी सड़क का अस्तित्व खोज रहे है। इस मार्ग निर्माण की गुणवत्ता में की गई गड़बड़ी और संबंधित एजेंसी की लापरवाही और भ्रष्टाचार का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि इस मार्ग पर जब बड़े वाहनों की बहुत कम आवाजाही है तब भी यह सड़क इतनी जर्जर हो गई कि लोगों का पैदल चलना भी मुनासिब नहीं है।
ग्रामवासी बताते है की इस मार्ग की यह दशा पिछले दो सालों से ऐसी ही है और इस बीच इस सड़क से न जाने कितने अधिकारी और विधायक मंत्री सब गुजर चुके है किन्तु किसी ने इस बात की सुध नहीं ली कि आखिर इस सड़क की ये दुर्दशा कैसे हुई, इसकी गुणवत्ता में क्यों कमी की गई और इसका जिम्मेदार कौन है? गौरतलब है कि बनने के कुछ ही समय बाद सड़क पूरी तरह से खराब होने लगी थी जिसको ढकने की कोशिश बतौर मरम्मत भी की गई किन्तु उसके बाद भी ये सड़क ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाई और अब तो इस पर पैदल निकलना भी मुश्किल है। रात में इस सड़क पर वाहन चलाना दुर्घटना को आमंत्रण देना है जबकि अभी बरसात की पूरी तरह शुरुआत भी नहीं हुई है।
जिला प्रशासन से क्षेत्रवासियों की अपेक्षा है कि संबंधित विभाग पर इस घटिया कार्य के लिए कार्यवाही की जावे और जल्दी से जल्दी इस सड़क की पूर्ण रूप से मरम्मत करवाने हेतु कठोर कार्यवाही की जावे।