
गणवेश सिलाई केंद्र से रेडीमेड यूनिफॉर्म वितरण की शिकायत, प्रशासन ने SDM को सौंपा जांच का जिम्मा
जिला प्रशासन ने यूनिफार्म घोटाले की जांच हेतु टीम गठित की
एसडीएम ने शुरू की विकासखंडों में जांच
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जनपथ टुडे, डिंडोरी, 12 मार्च 2021, जिले के शासकीय स्कूलों में कक्षा 5 से 8 तक के बच्चों की यूनिफार्म वितरण के मामले में अनियमितताओं का मामला पिछले दिनों उजागर हुआ इसके बाद जिला मुख्यालय स्थित कलेक्ट्रेट के सामने NRLM के संकुल स्तरीय महिला आजीविका बहु प्रयोजन सहकारी संघ के द्वारा संचालित सिलाई केंद्र को एनआरएलएम के अधिकारियों और डीपीएम द्वारा सील कर दिया गया। बताया जाता है कि इस केंद्र में यूनिफार्म की सिलाई का दिखाया किया जाता है, जबकि बड़ी मात्रा में केंद्र पर बाजार से क्रय की गई रेडीमेड गणवेश होने की शिकायत प्राप्त हुई थी। यहां कार्यरत समूह द्वारा केंद्र को सील किए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई गई। जिसके बाद उक्त मामले हेतु जिला प्रशासन द्वारा 5 सदस्य टीम का गठन किया गया और सिलाई केंद्र को खोल दिया गया।
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उक्त केंद्र को सील किए जाने के बाद समूह की अध्यक्ष बिंदु बाई विश्वकर्मा ने नियम विरुद्ध केंद्र को सील किए जाने और सक्षम अधिकारी के आदेश के बिना गैरकानूनी तरीके से एक सरकारी भवन पर कार्यवाही किए जाने का आरोप लगाते हुए मामले में एफ आई आर दर्ज करवाने तक की बात कही थी। वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा केंद्र को सील किए जाने के आदेश से नकारने और गड़बड़ी की शिकायत मिलने के बाद केंद्र को खोलते हुए जिला कलेक्टर द्वारा मामले की जांच हेतु 5 सदस्य दल गठित किया गया था। जिसने मौके पर पड़ताल बुधवार को तहसीलदार की मौजूदगी में केंद्र को खोला गया और तहसीलदार बीएस ठाकुर, जिला प्रबंधक लघु उधमिता धर्मेंद्र भदोरिया सहित जिला कलेक्टर द्वारा गठित 5 सदस्य समिति द्वारा जांच की गई। केंद्र में स्कूली बच्चों को रेडीमेड यूनिफॉर्म वितरित किए जाने के आरोप लगे हैं जांच में महिलाओं ने कहा कि हमने यूनिफॉर्म सिलाई कर पैक करके रखी है वहीं जांचकर्ता इतनी बेहतर पैकिंग पर सवाल उठा रहे हैं। जांच अधिकारियों के सामने सदस्यों के बयान दर्ज किए जाने की जानकारी प्राप्त हुई है
बताया जाता है कि समूह की महिलाओं का आरोप है कि एनआरएलएम जिला प्रबंधक लघु उधमिता के पद पर पदस्थ धर्मेंद्र भदोरिया द्वारा कपड़े की खरीदी जबलपुर की एक फर्म से करने कहा जा रहा था किंतु समूह ने कपड़ा कम दर पर इंदौर की फर्म से खरीदा है। इसलिए समूह के ऊपर आरोप लगा झूठी शिकायत कर रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि डिंडोरी मैं जहां केंद्र सील करने की कार्रवाई की गई है इसके अलावा छह विकास खंडों में जबलपुर की एक ही फर्म से सभी ने कपड़ा खरीदा है। इस पर अधिकारियों द्वारा कमीशनखोरी के आरोप भी समूहों के सदस्य लगा रहे हैं।
जिले के सभी विकास खंडों में होगी जांच
जहां डिडोरी केंद्र की जांच के लिए जिला प्रशासन ने 5 सदस्यों का दल बना दिया है और जांच रिपोर्ट 1 सप्ताह में प्रस्तुत करने के निर्देश जारी किए गए हैं। वहीं अन्य सभी विकास खंडों में जांच हेतु एसडीएम को जांच का जिम्मा सौंपा गया है। बुधवार को SDM द्वारा विकासखंड करंजिया के केंद्र में जांच किए जाने की जानकारी प्राप्त हुई है। अभी जांच से प्राप्त जानकारी और गड़बड़ियां सामने नहीं आई है। जांच पूर्ण होने पर जिला प्रशासन दोषियों के विरूद्ध कार्रवाई करेगा।
समूहों के नाम पर कमीशनखोरी का सालों से जारी है खेल
लोगों को आजीविका देने और महिला समूहों को रोजगार प्रदान करने के नाम पर जिले में अब तक करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। वही इन समूहों और इकाइयों के गठन से लेकर कारोबार की मॉनिटरिंग के लिए लंबा चौड़ा अमला भी पदस्थ है। किंतु इन प्रयासों से लोगों को बेहतर रोजगार और अच्छा कारोबार मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। अधिकांश इकाईया ठप्प दिखाई देती है। शासकीय दस्तावेजों और शासकीय आयोजनों, मेलो, प्रदर्शनी में ही इनका अस्तित्व दिखाई देता है। इन इकाइयों के उत्पादन स्थानीय बाजार में तक उपलब्ध नहीं है तब महानगरों और देश में यह मल्टीनेशनल कंपनियों से कैसे प्रतिस्पर्धा कर रहे होंगे बड़ा सवाल है? लाखों रुपए की मशीने, कच्चा माल, इकाइयों की स्थापना का और खरीदने का निर्णय पदस्थ शासकीय अमला करता है और उनके ही द्वारा सारा प्रोजेक्ट तैयार किया जाता है। इनमें मोटे कमीशनखोरी की चर्चा हमेशा होती रही है किन्तु प्रशासन ने न तो इसे कभी गंभीरता से लिया और न कभी कोई जांच और कार्यवाही ही की गई। भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के चलते लागत के अनुपात में लाभ होने से ये इकाइयां शुरुआती दौर में ही घाटे में चली जाती हैं और फिर ये कभी उभर नहीं पाती और अधिकांश इकाइयां जिले में इसी वजह से ठप्प पड़ी है।
जिले में तेजस्विनी के द्वारा गठित समूह में काम और बेहतर रोजगार के दावे के बीच काम करने वालों को 100 से ₹120 प्रतिदिन मजदूरी दी जा रही है। जो शासन के नियमों के मुताबिक निर्धारित अकुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी से बहुत कम है। इन इकाइयों के लाभ से लाभांश की प्राप्ति तो तब मजदूरों को हो जब कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार से उत्पादन इकाइयों को मुक्ति मिल पाए और ये लाभ कमाने की स्थिति ने हो।
जिले में विस्तृत जांच की जरूरत
जिले में चल रहे गड़बड़झाले भ्रष्टाचार और घोटालों की चर्चा के बीच इन इकाइयों पर अब तक शासन द्वारा खर्च की गई राशि आदिवासी जिले में अब तक कितने लोगों को रोजगार मिला कितनी मजदूरी इनके द्वारा कमाई गई? जिले में अब तक स्थापित की गई कुल इकाइयों में कितनी वर्तमान में चल रही हैं और कितनी ठप्प हो गए? चल रही इकाइयां कितने प्रतिशत लाभ कमा रही हैं इसकी जांच राज्य स्तरीय टीम से करवा कर पता लगाया जाना चाहिए। सफेद हाथी साबित हो रही इन योजनाओं से जिले के स्थानीय लोगों को रोजगार मिल रहा है या फिर अब तक ये केवल शासकीय अमले की जेब भरने में ही इकाइयां सफल हुई हैं?