रानी रामगढ़ की प्राचीन धरोहरों को जीर्णोद्वार का इंतजार

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देव सिंह भारती:-

 

जनपथ टुडे, डिण्डौरी, 29 सितम्बर 2020, विकासखंड मुख्यालय अमरपुर से महज 2 कि. मी. की दूरी पर स्थित ऐतिहासिक ग्राम रामगढ़ जहाॅ की प्राचीन धरोहरों में एक बावली हैं। जिससे पूरा गाॅव अपनी प्यास बुझाता था। मगर वर्तमान में नल जल योजना के संचालन के बाद से इस बावली की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा हैं और वह धीरे धीरे क्षतिग्रस्त होता जा रहा हैं। इसी प्रकार शांतिधाम में एक मंदिरनुमा निर्मित किसी राजा की समाधी हो सकती हैं, जिसे गाॅव में सुरही के नाम से जाना जाता हैं। जिसे अपने जीर्णोद्वार का इंतजार आज भी हैं। इसके साथ ही जंगल के ऊपर रानी अवंती बाई का आखेट स्थल हैं, जहाॅ एक तालाब निर्मित था जो आज पूर्ण रुप से ध्वस्त हो कर मिट्टी से भर चुका उसे रानी दादर के नाम से जाना जाता हैं। तालाब के साथ ही लगभग 500 एकड़ काली मिटृी की समतल भूमि जो वृक्ष रहित हैं। प्राप्त जानकारी अनुसार स्थानीय वीरांगना रानी अवंती बाई समिति द्वारा शासन और प्रशासन को इन पुराने धरोहरों को संरक्षित कर विकसित किए जाने के लिए अवगत कराते हुए तालाब का पुननिर्माण एंव समतल भूमि में औषधीय पौधे रोपड़ के लिए आग्रह किया जा चुका हैं।

रामगढ़ प्रशासनिक तौर पर उपेक्षित तो हैं ही जहाॅ वीरांगना रानी अवंती बाई की मूर्ती 1988 से अनावरण के इंतजार कई जगह से टुट गई थी। फिर एक वर्ष पूर्व पता नहीं किस विभाग द्वारा मूर्ती की मरम्मत कर दी गई हैं। जिसकी जानकारी किसी को भी नहीं हैं। समिति पदाधिकारियों के अनुसार धातु से निर्मित मूर्ति लगाने शासन स्तर से अनेकों बार माॅग की जा चुकी हैं ताकि वीरांगना रानी अवंती बाई और रामगढ़ का अस्तित्व बरकारार रह सकें।

स्थानीय लोगों की प्रशासन से मांग है कि रामगढ़ में शासन द्वारा बनाए गए उद्यान और स्मारक स्थल को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जावे। रानी अवंती बाई न सिर्फ क्षेत्र बल्कि देश का गौरव है और रानी रामगढ़ पूरी तरह से उपेक्षित पड़ा हुआ है। विरासत को सहेजने की दिशा में प्रयास किया जाना समय की जरूरत है।

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