झोला छाप डॉक्टरों से बिगड़ रही सेहत, जिम्मेदार विभाग मौन।

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मानव अधिकार आयोग ने भी लिखा था विभागीय अधिकारियों को कार्यवाही करने पत्र

जनपथ टुडे डिंडौरी 29 सितंबर।

जिले के मुख्यालय से लेकर दूरस्थ गांवों और ब्लॉकों तक झोला छाप डॉक्टरों का दबदबा लगातार बढ़ता जा रहा है। बिना किसी मेडिकल डिग्री और योग्यता के ये लोग गांव-गांव जाकर इलाज कर रहे हैं। कहीं किसी ने दवाखाना खोल रखा है, तो कोई बाइक से घर-घर जाकर मरीजों को दवाइयाँ और इंजेक्शन दे रहा है। अशिक्षित और गरीब ग्रामीण इनकी असलियत से अनजान होकर मजबूरन इन्हीं से इलाज करवा रहे हैं।

भारी डोज की दवाइयों से बढ़ रहा खतरा

झोला छाप डॉक्टर अक्सर मरीजों को जल्दी ठीक करने के लिए भारी डोज की दवाइयाँ और इंजेक्शन दे देते हैं। शुरुआत में मरीज को आराम महसूस होता है, लेकिन लंबे समय में यही दवाइयाँ गंभीर नुकसान पहुँचाती हैं। जिले में कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जहाँ झोलाछापों के इलाज से मरीज की किडनी और लिवर खराब हो गए। कई मामलों में तो मरीजों को नागपुर जैसे बड़े अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ा, वहीं कई लोगों की मौत भी हो चुकी है।

ग्राम खारीडीह के ग्रामीण ने बताया, “मेरे छोटे भाई को बुखार हुआ था। गांव के झोला छाप डॉक्टर ने दो इंजेक्शन लगाए और कुछ दवाई दी। तीन दिन बाद हालत बिगड़ गई, और उसे नागपुर रेफर करना पड़ा। इलाज में हजारों रुपये खर्च हुए।”

ग्राम पण्डरीपानी की महिला कमला बाई कहती हैं, “हम लोगों को समझ नहीं आता कि कौन डॉक्टर सही है और कौन झोला छाप। गांव में अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं है, इसलिए जो मिलता है उसी से इलाज करवा लेते हैं। बाद में जब तबीयत और बिगड़ जाती है, तो जिला अस्पताल या फिर किसी बड़े शहर ले जाना पड़ता है।

शिकायत करने में घबराते हैं ग्रामीण

ग्रामीण जन सरकारी अस्पतालों में समय पर इलाज न मिल पाने और जानकारी के अभाव के कारण ग्रामीण झोला छापों का सहारा लेते हैं। फिर इलाज बिगड़ने पर जब हालत गंभीर हो जाती है, तब परिजन मजबूर होकर मरीज को जिला अस्पताल या बड़े शहरों में ले जाते हैं। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। ग्रामीणों की सीधी-सादी सोच और जानकारी की कमी के चलते वे शिकायत करने से भी कतराते हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देशों की खुली अवहेलना

स्वास्थ्य संचालनालय ने अवैध रूप से संचालित क्लिनिकों के संबंध में स्पष्ट निर्देश दिए थे कि ग्रामीण क्षेत्रों में झोला छाप डॉक्टरों से इलाज कराने के दुष्परिणामों के बारे में लोगों को जागरूक किया जाए। प्रचार-प्रसार के माध्यम से ग्रामीणों को सचेत किया जाना था, ताकि वे ऐसे लोगों के चक्कर में न पड़ें। लेकिन डिंडौरी जिले में जिम्मेदार विभाग ने इस दिशा में कोई गंभीर कदम नहीं उठाया। न तो प्रचार अभियान चलाया गया और न ही लोगों को सही जानकारी दी गई। नतीजतन ग्रामीण अनजाने में अपनी सेहत बिगाड़ते जा रहे हैं।

नए CMHO से कार्यवाही की उम्मीद

कुछ दिनों पहले ही जिले में नए मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) ने पदभार ग्रहण किया है। आम जनता को उम्मीद है कि उनके कार्यकाल में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा और झोला छाप डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। अगर समय रहते इन पर कार्यवाही नहीं हुई, तो भोले भाले गरीब लोग ऐसे ही जान गँवाते रहेंगे।”

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