नागपंचमी पर उतारते है जहर, पंडो को चढता है नाग का भाव

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करंजिया के  ग्राम तरेरा पीपल टोला और डोंगरी टोला से जनपथ टुडे के लिए अनिल पटेल की विशेष रिपोर्ट :-

नाग पंचमी पर करंजिया के तरेरा ग्राम और डोंगरीटोला में सर्फदंश पीड़ितों के लिए होते है विशेष धार्मिक आयोजन

दूर दूर से आयोजन में शामिल होने आते है लोग

 

जनपथ टुडे, डिंडोरी, 25 जुलाई 2020, करंजिया मुख्यालय और -आस पास के क्षेत्र में नागपंचमी का त्यौहार बडे ही घूम धाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है। पूजा अर्चना के साथ स्कूलों में मुख्यत कुश्ती जैसे परम्परागत भारतीय खेल का आयोजन होता है।

पर इससे हटकर करंजिया विकासखंड मुख्यालय से लगभग 2 किमी की दूरी पर स्थित ग्राम तरेरा के पीपरटोला मे नागपंचमी का कुछ अलग ही महत्व है और देश भर में नागपंचमी मनाए जाने से कुछ अलग तरह से इस ग्राम में नागपंचमी का स्वरूप देखा जाता है। इस गांव में इस त्यौहार पर कुछ अलग ढ़ंग की तैयारियां की जाती है जिसमें पूरा गांव सामूहिक रूप से जुटा देखा जाता है। और ये यहां वर्षों से होता चला आ रहा है। लोगअस्था लिए दूर दराज से इस दिन यहां होने वाले विशेष आयोजन और पूजा में शामिल होते है ।

ग्राम तरेरा का पीपरटोला सांप का जहर निकाले जाने के लिए मशहूर है। प्राप्त जानकारी के अनुसार जिस भी व्यक्ति को सांप डस लेता है वे लोग अस्पताल और डाक्टरी इलाज को छोड़ इस गांव के पंडा के पास आते है। पंडा द्वारा विशेष मंत्र शक्ति से ऐसे लोगो के शरीर से सांप का जहर उतारा जाता है। लोगो का कहना है कि वे इस विधि और मंत्र शक्ति के प्रयोग से पूरी तरह स्वस्थ हो जाते है। इस पूरे ग्राम में पंडा के पास दूरदराज के लोग बड़ी संख्या में सर्फदंश की समस्या लेकर आते है और स्वस्थ  होकर जाते है। इसी तरह दूसरा ग्राम डोगरीटोला भी इसी तरह से सांप के जहर को उतारे जाने के लिए दूर दूर तक जाना जाता है।

 

नागपंचमी को यहां क्या होता है 

-संतकुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि जो लोग यहां आकर सांप का जहर उतरवा कर स्वस्थ होकर जाते है। जिन्हे उस वर्ष सांप ने काटा है उन्हे गांव के पंडा/ हकीम नागपंचमी के दिन यहां बुलाकर कुछ विशेष क्रिया करते है, बारी बारी से हकीम उनकी झाड फूंक करते है जिससे सांप के काटने का जो भी प्रभाव इन लोगो के शरीर में बाकी रह जाता है, इस दिन पूरी तरह दूर हो जाता है और वह जीवन भर के लिए निर्भिक होकर जीवन यापन कर सकता है। नागपंचमी को होने वाली इस विशेष पूजा में शामिल होने के बाद सर्फदंश से पीड़ित व्यक्ति पूरी तरह से निश्चिंत ही जाते है।

 

ऐसा है इस दिन का आयोजन

नागपंचमी के अवसर पर गांव के सभी पंडा हकीम अखाड़े में एकत्र होते है और विशेष पूजा पाठ से कार्यक्रम की शुरुआत होती है, और फिर जस का आयोजन किया जाता है।

डोंगरीटोला के निवासी आनंद ने बताया की जो पंडा झाड फूंक करते है उन्हे नाग का भाव आता है और वह पूरी तरह से अपने वश से बाहर हो जाता है और भाव की स्थिति मे नाचते गाते मेढो स्थल जिसे ठाकुर देवता का स्थान कहते है पर पहुंचता है। उस स्थित मे उनसे भेट करने आते है, पीडित उनसे नारियल लेकर मिलने है नाग का भार लिए पंडा हकीम उनकी समस्या सुनते है और इसका निदान अथवा रास्ता बतलाते है। इस दौरान गांव और आसपास से आए सभी लोगो को प्रसाद का वितरण भी किया जाता है ।

” यहा आने वाले लोग जिन्हे सांप के काटने के बाद बचाया जाता है, उनका यहां पर इस दिन होने वाली झाड़ फूंक के बाद उनके शरीर से सांप का जहर निकाला जाता है। वे लोग साल मे दो बार यहां आयोजित होने वाली विशेष पूजा मे आकर अपने शरीर में शेष बचा जहर उतरवाते है।”

लामू सिंह ( पंडा )
पीपरटोला, तरेरा करंजिया

 

जानकारों की माने तो इस गांव में साल भर आसपास के ग्रामीण अंचलों के अलावा दूर दूर से लोग सांप काटने पर उसका विष उतरवाने आते है, जिनके शरीर से पंडा विशेष झाड़ फूंक के द्वारा सांप का जहर उतार कर उनको जिंदा बचाते है, और ऐसे पीड़ित जो उस समय स्वस्थ होकर वापस चले जाते है उन्हें इस विशेष पूजा में जो गाव में नागपंचमी को आयोजित होती है उसमे उपस्थिति देनी होती है। इस दिन पर इस गांव में होने वाली इस पूजा से सर्फदंश के शिकार हुए लोगों के शरीर में शेष बचे हुए विष अथवा विष से शरीर में उत्पन्न हुए विकार से भी मुक्ति मिल जाती है। इस ग्राम में नागपंचमी के दिन होने वाली इस खास पूजा और आयोजन को लेकर ये मान्यता बताई जाती है। इस दिन यहां प्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ के तक से बड़ी संख्या में लोग आते है। इस गांव में यह आयोजन वर्षों से होता आया है। गौरतलब है कि वर्षों पहले यहां क्षेत्र घने जंगलों से पूर्ण हुआ करता था और ग्रामीण अंचलों में जीव जंतुओं की बहुल्यता थी, जंगल और जंगल के बीच स्थित खेत खलिहानों में प्राय सर्फ दंश के मामले अक्सर हुआ करते थे और इस पिछड़े इलाके में उस दौर में स्वास्थ सुविधाएं और आवागमन के साधनों की अत्यधिक कमी थी तब से सर्फ के जहर को उतारने के लिए झाड़ फूंक ही एक मात्र जरिया था, जिससे लोगों को लाभ भी मिलता था और आज भी बड़ी संख्या में लोगों को पंडा पर भरोसा है और अब भी यहां बहुत सारे लोग विष उतरवाने आते है।

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