“सफेद हाथी” साबित हो रही जिले में सिंचाई परियोजनाएं, भाखा बांध से जुड़े किसानों को नहीं मिल रहा पानी
जनपथ टुडे, अमरपुर, 23 नवम्बर 2020, शासन द्वारा कृषि को लाभ का व्यवसाय बनाने के निरतंर प्रयास किए जा रहे हैं। परन्तु यह प्रयास अमरपुर ब्लाक में पूरी तरह से असफल होता दिखाई दे रहा हैं। सिंचाई के लिए करोड़ो रुपये पानी की तरह बहाकर बाॅध और नहरो का निर्माण कार्य तो करा दिया गया। परन्तु क्षेत्रीय किसानों को इन नहरों और बांधों सिंचाई के लिए पानी ही नहीं मिल पा रहा हैं।
अमरपुर ब्लाक मुख्यालय के करीब खरमेर नदी में बने भाखा बाॅध जिससे ग्राम बरसिंघा, बिजौरी, रामगढ़ आदि के किसानों को सिंचाई की सुविधा देने हेतु बाॅध निर्माण वर्षों पूर्व किया जा चुका है और बांध में भरपूर पानी का भण्डारण होने के बावजूद भी किसानों को सिंचाई हेतु पानी नहीं मिल पाता हैं। कारण कि नहर जर्जर स्थिति में है, अनेकों जगहों पर नहर ध्वस्त हो चुकी हैं। किसान अपने खेतों की जुताई कर पूरी तैयारी कर चुके हैं, किन्तु पानी के आभाव में बीज बोनी का कार्य प्रारम्भ नहीं कर पा रहे हैं। जिससे किसानों की फसल बोनी में विलम्ब के कारण फसल प्रभावित होने की पूर्ण सम्भावना व्यक्त की जा रही हैं। वैसे भी विभाग द्वारा नहर पक्कीकरण का कार्य विगत 2 वर्षो में भी पूर्ण नहीं हो सका हैं। जिसमें अनेकों जगह से नहर टूट फूती होने की वजह से बाॅध का पानी नहीं खोला जा रहा हैं।
क्षेत्रीय किसानों की माॅग हैं कि अतिशीघ्र नहर सुधार का कार्य किया जावे ताकि सिंचाई सुविधा का लाभ सभी किसानों को मिले। नहर में पानी न आने के कारण किसानों में आक्रोश देखा जा रहा हैं। पानी न मिलने की स्थिति में नुकसानी का दावा करने की बात भी क्षेत्रीय किसानों के द्वारा की जा रही हैं।
सिंचाई परियोजना की उपलब्धियों और विभाग के व्यय की समीक्षा की जावे
जिले में बांध और नहरों के निर्माण पर शासन की मोटी रकम खर्च होने के बाद गुणवत्ताहीन नहरे जल संसाधन विभाग द्वारा मात्र दिखावे के लिए बनाई जाती है और जिले भर के बांधों में निर्माण पूर्ण होने के बाद भी उतने रकवे को सिंचाई की सुविधा नहीं मिल पा रही है जितना अनुमान परियोजना निर्माण के समय बांधों की लागत को न्यायसंगत बताने हेतु दिखाया और बताया जाता है, ये जांच का विषय है। क्योंकि जल संसाधन विभाग की दस्तावेजी उपलब्धियां कुछ और बताती है जिस पर वास्तविक सिंचाई की सुविधाओं की उपलब्धियां न के बराबर है। वहीं जिले भर के सभी बांधों की निर्मित नहरे कुछ ही वर्षों में दम तोड़ चुकी है जो विभाग के निर्माण कार्यों की गुणवत्ता की जांच के लिए संकेत करता है।
सफेद हाथी साबित हो रहे है जिले के बांध
जिला प्रशासन इसकी समीक्षा जरूर कर सकता है जिले की सिंचाई परियोजना जो पूर्ण है उनसे कितने रकबे को आज की स्थिति में सिंचाई सुविधा उपलब्ध है और विगत वर्षों में जल संसाधन विभाग ने इन नहरों की मरम्मत और रख रखाव पर कितनी राशि खर्च की है व इस राशि का वास्तव में कितना उपयोग हुआ है कितना दुरुपयोग? जिले के किसानों को लाभ मिला या नहीं ? साफ तौर पर जिले में जल संसाधन विभाग को जिले का सबसे मलाईदार विभाग माना जाता रहा है इसकी वजह यही है कि इसकी ओर स्थानीय जिला प्रशासन ने कभी ध्यान ही नहीं दिया, इसकी उपलब्धियों की वास्तविक जांच ही नहीं की गई जबकि जिले भर के किसान इन सफेद हाथी साबित हो रही सिंचाई परियोजनाओं से बड़ी उम्मीद बांधे रहे और खस्ताहाल नहरों और सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध न होने की शिकायते विभाग में करते रहे पर उनकी कभी जल संसाधन विभाग द्वारा सुनवाई की गई न ही उनके खेतों तक पानी पहुंचाने को गंभीरता से लिया गया। यही वजह है कि शासन की मंशा भले खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने की रही ही पर इसके उलट जल संसाधन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए करोड़ों रुपए लागत की ये परियोजनाएं जरूर लाभ का जरिया बन चुकी है।