रोजगार सहायक से जनता परेशान, प्रधानमंत्री आवास की मजदूरी भी हडप ली

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दो ग्राम पंचायतों का प्रभार, दोनों में गड़बड़झाला

बरगांव जीआरएस जांच में दोषी,आठ लाख रू की वसूली निकली थी

जिला पंचायत ने नहीं की अब तक कार्यवाही

जनपथ टुडे, डिंडोरी, 13 जनवरी 2022, जनपद पंचायत शहपुरा अतंर्गत ग्राम पंचातय बरगांव और ग्राम पंचायत ढोडा में पदस्थ रोजगार सहायक दिलीप कुशराम से जनता के साथ साथ अब अधिकारी भी परेशान है। पर यह बात समझ से परे है कि अधिकारी के द्वारा रोजगार सहायक के द्वारा किये गये भ्रष्टाचार की तीन बार जांच कर प्रतिवेदन, जिला पंचायत भेजा गया और तीन माह का समय बीत जाने के बाद भी कोई कार्यवाही दोषी रोजगार सहायक के विरूद्ध नहीं की गई। इसके पीछे क्या कारण है लोगो के समझ से तो परे है। इन्हीं कारणों से शासन की योजनाओ का ठीक से क्रियान्यवन नहीं हो रहा है और आम ग्रामीण परेशान है।

पहला मामला –
जानकारी अनुसार ग्रामीणों व्दारा की गई शिकायत के आधार पर तत्कालीन सीईओ व वर्तमान एसडीएम शहपुरा काजल जावला के द्वारा हुई जांच में ग्राम पंचायत के सरपंच और रोजगार सहायक व तत्कालीन सचिव दिलीप कुशराम को दोषी पाया गया है। उनके विरूद्ध क्रमश दो लाख चौरानवे हजार, तीन लाख चौसठ हजार सात सौ सतासी व दो लाख एक हजार पाच सौ, कुल आठ लाख इकसठ हजार दौ सौ पचपन रुपयों की अनिमियतताए किया जाना पाया गया, उनके विरूद्ध मप्र पचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 के प्रावधान अनुसार धारा 92के अन्तगर्त राशि वसूली किये जाने की कार्यवाही की जाकर अनुशासनात्मक कार्यवाही किया जाना प्रस्तावित है।

दूसरा मामला :-
ग्राम पंचायत बरगांव में कौशल साहू पिता अघनुआ साहू का वर्ष 2020 -21 में आवास स्वीकृत हुआ, जिसमें रोजगार सहायक दिलीप कुशराम के द्वारा आवास की मजदूरी बिना आवास हितग्राही की स्वीकृति के अन्य खातों में डालकर निकाल ली गई। जिसके बाद करीब छः माह तक हितग्राही रोजगार सहायक के चक्कर काटने मजबूर है।

तीसरा मामला :-
ग्राम पंचायत ढोडा में रमेंश सिंह का आवास स्वीकृत हुआ जिसमें 84 मानव दिवस मजदूरी के सृजन हुआ जिसके बाद रोजगार सहायक के द्वारा फर्जी खाते में राशि डालकर निकाल ली गई। जिसके बाद हितग्राही चक्कर काटने को मजबूर हो गया वहीं इस मामले में जब सीईओ राजीव तिवारी से बात की गई तो उन्होने बताया कि मामले की जानकारी के बाद जांच कराई गई। जिसमें यह पाया गया है कि रोजगार सहायक के द्वारा पैसा किसी अन्य के खाते में डालकर निकाला गया है। जिसके कारण हितग्राही परेशान है जांच के बाद जांच प्रतिवेदन जिला पंचायत भेजा गया है ।

भ्रष्टाचारी कर्मचारियों को किसका संरक्षण ??

हालाकि यह भ्रष्टाचार का अजूबा मामला नहीं है। जिले में ऐसे न जाने कितने मामले है जिनमें भ्रष्टाचार जांच में उजागर होने और जांच प्रतिवेदन के बाद भी दोषियों पर कार्यवाही लंबित है। इसके पीछे क्या वजह है किस आधार पर और किस कारण से भ्रष्टाचार प्रमाणित होने के बाद भी कार्यवाही प्रभावित होती है। सवाल अधिकारियों की कार्यप्रणाली, विभाग के भ्रष्ट सिस्टम और जिले भर के कार्यालयों में चल रही लूट खसोट पर जरूर खड़े होते है, स्पष्ट है कि शासन की बड़ी राशि विकास कार्यों की बजाय सबकी सहमति और मिलीभगत से एक अघोषित प्रक्रिया के तहत लूटी जा रही है जिसने नीचे से ऊपर तक सब शामिल है। इन सफेदपोश सरकारी माफियाओं के सामने जनता तो बेबस है ही लुटती हुई सरकार भी कुछ कर नहीं पा रही। साफ है जब भ्रष्टाचार के दोषियों पर कार्यवाही नहीं की जा रही है तो उन्हें संरक्षण तो अधिकारियों से ही मिल रहा है।

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