लॉक डॉउन/ठाड़पथरा के बैगा परिवार बेहाल, नमक चावल खाने मजबूर

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  • मजदूरी न मिलने से परेशान बैगा परिवार चावल नमक खाने मजबूर

    पंचायत द्वारा मनरेगा के काम नहीं किए गए शुरू

    बैगा महिलाओं को नहीं मिली पोषण आहार की राशि

  • जनपथ टुडे, डिंडोरी, 14 मई 2020, करंजिया विकासखंड की ग्राम पंचायत ठाडपथरा के ग्रामीण आर्थिक समस्या से जूझ रहे, कोरोना संक्रमण के चलते विगत एक माह से भी अधिक समय से किसी तरह का काम और मजदूरी उन्हें नहीं मिल पा रही, जंगल में मिलने वाली उपज और लकड़ी बेचना भी इन दिनों संभव नहीं रहा जिससे इन परिवारों की आर्थिक स्थिति और भी खराब होती जा रही है। सब्जी भाजी, नमक, मसाला,मिर्च तक को लेकर बहुत परेशान नजर आ रहे हैं।

ग्रामीणों का कहना है जब से कोरोना वायरस का असर पड़ा है तब से न ही हम घर से निकल पा रहे हैं न ही हमें तेल, मसाला, मिर्ची, नमक जैसी वस्तुएं मिल पा रही है, सिर्फ हमें चावल मिला है ग्राम के मजदूर, मजदूरी करके अपने घर की सामग्री खरीद कर अपने घर चलाते हैं वे लोग काम न मिलने से और बाजार हाट न भरने से संकट का सामना कर रहे है।

शासन द्वारा शासकीय दुकानों से चावल उपलब्ध भर कराया गया है उसे ही पका के नमक से खाने ये लोग मजबूर है। ठाड़पथरा ग्राम पंचायत के इस ग्राम में वन विभाग का लकड़ी डिपो है जहा ये बैगा परिवार मजदूरी करके अपना काम चलाते थे किन्तु इस वर्ष जब लकड़ी ढुलाई का समय था तब ही लॉक डॉउन लग जाने से जंगल की निकासी और डिपो से उठाव नहीं हो सका जिससे इस वनग्राम के लोग आर्थिक संकट का सामना करने को मजबूर है और पंचायत द्वारा इस गांव में मनरेगा का कोई काम भी शुरू नहीं किया गया है और लोग काम के लिए भटक रहे है, वहीं वन विभाग के हवाले से बताया गया कि अभी भी बाहर लकड़ी का परिवहन न होने से उतना अधिक काम फिलहाल डिपो में भी नहीं है। जनजाति परिवार की महिलाओं को मिलने वाली राशि भी इन लोगो के खाते में नहीं आई है।

पंचायत सचिव के अनुसार इस गांव के लोग पंचायत में मजदूरी नहीं करते इसलिए काम नहीं करवाया जाता है यहां। गांव में रहने वाले उप सरपंच का कहना है गाव के लोग खुद अपनी मेढ़ बना रहे है लोगो के पास काम नहीं है पर सचिव से कहने के बाद भी वे काम शुरू नहीं करवा रहा है जबकि डिपो में काम नहीं है। सचिव द्वारा जनजाति महिलाओं के नामों की फीडिंग ही नहीं करवाई गई है जबकि मैंने सबके फार्म उनके पास जमा करवा दिया गया है पर इन महिलाओं के खाते में राशि अब तक नहीं डली है। बैगा बहुल गांव के लोग सालो से परेशान है सरपंच और सचिव पंचायत में तक नहीं आते और आज हम लोग पेज या फिर सरकारी दुकान से मिला चावल नमक से खाने मजबुर है, लॉक डॉउन के कारण सब्जी बहुत महगी है और ग्रामीणों के पास साग सब्जी खरीदने तक को पैसा नहीं है।

ग्राम पंचायत द्वारा उन्हें रोजगार भी नहीं दिया जा रहा है जिससे ये लोग बहुत मजबूर हैं और पंचायत के अलावा भी ठेकेदारों, निजी निर्माण कार्यों, वन विभाग में भी कहीं कार्य शुरू न रहने से ये लोग ठीक से भोजन तक को मजबूत है सरकार भले ही सरकारी दुकानों के माध्यम से दाल, नमक, तेल और आटे आदि की आपूर्ति किए जाने की बात कर रही है पर फिलहाल जिले के ऐसे पिछड़े इलाकों की वास्तविक हालत यही है लोगो के पास पेट भरने के लिए अत्यंत सीमित सामग्री उपलब्ध है।

ठाढ़पथरा ग्राम की कुछ बैगा महिलाओं ने अपने खत्म हो चुके मिर्च, मसाले के डिब्बे तक दिखा के बताया कि उन्हें नमक तक मुश्किलों से मिल पाता है और महगी सब्जी मिल भी रही है तो वह उनकी सामर्थ में नहीं है सरकारी दुकानों से मिलने वाले चावल को वो लोग नमक के साथ खा कर ही पेट भरने मजबुर है। गांव के बुजुर्ग ने जानकारी दी कि इस संकट में उनका रोजगार पूरी तरह से छीन गया है और पंचायत से कोई सहयोग नहीं मिल पा रहा है जिससे गांव के गरीब परिवार बहुत बेबस है।

सरकार की घोषणाओं और प्रशासन के क्रियान्वयन की कागजी खानापूर्ति कितनी भी ठोस हो पर आज भी जमीनी हकीकत यही है कि लोग चावल नमक खाने को मजबूर है और इनकी कमजोर आवाज ग्राम पंचायत और जनपद से अधिक दूर नहीं पहुंच पाती जिससे इनकी स्थिति और भी खराब होती जा रही है और दिनों दिन इनके हको को हथियाने वालों के हौसले बुलंद होते जा रहे है। गौरतलब है कि लॉक डॉउन के चलते देश के कोने कोने में काम करने गए जिले के कई हजार मजदूरों की वापसी हुई है और अभी भी हजारों मजदूर जिले में अपने घरों तक आने का प्रयास कर रहे है पहली बार एक मोटा मोटा आंकड़ा लोगो के संज्ञान में आया कि जिले के प्रवासी मजदूरों की संख्या 50 हजार के आसपास हो सकती है, ये इसी तरह की गरीबी और मजबूरी के चलते पेट भरने केरल, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र सहित अन्य प्रदेशों तक काम करने जाते है अपना पेट भरने और जिले के ग्रामीण अंचलों में व्याप्त इस तरह के हालात से मुक्ति पाने।

 

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