नगर परिषद की दुकान आवंटन प्रक्रिया पर सवाल ? जांच टीम बनाई गई

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अशोक श्रीवास्तव की रिपोर्ट

अधिक प्रसार वाले अख़बारों के विज्ञापन आदेश दबा लिए गए, कम प्रसार वाले अखबार में लगा नीलामी का विज्ञापन

खुली प्रतिस्पर्धा नहीं होने पर परिषद को करोड़ों रुपए की होगी क्षति।

जांच टीम गठित, तीन दिनों में देगी रिपोर्ट

जनपथ टुडे, डिंडोरी, 12 जुलाई 2020, नगर परिषद के द्वारा गांधी चौक मार्केट के प्रथम तल व पूर्व नगर परिषद भवन स्थल पर प्रस्तावित दुर्गावती कंपलेक्स की दुकानों की नीलामी प्रक्रिया जनवरी में प्रारंभ की गई थी किंतु अब तक पूर्ण नहीं हो सकी है। जिसके पीछे कारण कोरोना संक्रमण और लगा लॉक डॉउन बताया जा रहा है। नगर में व्याप्त चर्चाएं और व्यापारियों से प्राप्त जानकारी और लगभग परिषद के सभी पार्षदों से चर्चा के बाद।इन दोनों स्थान पर नगर परिषद द्वारा निर्माणाधीन दुकानों की आवंटन प्रक्रिया में गड़बड़ी और लोगो को जानकारी न होने के आरोपों पर हमारे द्वारा “जनपद टुडे” ने 2 जुलाई को इस संदर्भ में खबर प्रसारित की गई थी। जिसके बाद मामला प्रकाश आने पर कई समाचार पत्रों में इसकी खबर लगाई गई और अब धीरे-धीरे इस मामले के कई तत्व उजागर हो रहे हैं, जो दुकान की नीलामी प्रक्रिया में अपनाई गई नगर की कार्यप्रणाली की पोल खोल रहे हैं।

 

विज्ञापन जारी करने में की गई गड़बड़ी

अब इस आवंटन प्रक्रिया में एक नई बात सामने आई है जिसके आधार पर नगर परिषद की राजस्व समिति ने विज्ञापन जारी करने के नाम पर एक अलग ही तरह का तरीका नगर परिषद के जिम्मेदारों द्वारा अपनाया गया जो कि पूरी तरह से गलत तो है ही साथ ही पूरी नीलामी प्रक्रिया को संधिग्ध बनाता है। दुकान नीलामी की सूचना को लेकर नगर परिषद 25 फरवरी 2020 को विज्ञापन जिन अधिक प्रसार संख्या वाले अख़बारों का आदेश दिया गया था अब उन ही अख़बारों ने उन्हें विज्ञापन आदेश ही नहीं दिए जाने की बात कही है और विज्ञापन जिस अख़बार को दिया गया उसकी नगर और जिले में बहुत ही कम प्रसार संख्या होने की जानकारी है। सूत्र बताते है कि विज्ञापन आदेश जारी तो किए गए पर न तो वे संबंधित अख़बारों की दिए गए न ही उनमें विज्ञापन का प्रकाशन हुआ। विज्ञापन आदेश पत्रो की पावती में भी हस्ताक्षर को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। आरोप लग रहे हैं कि नगर परिषद की कुछ शाखाओं के प्रमुख द्वारा इसी तरह और भी टेंडर प्रक्रिया गुपचुप तरीके से ऐसे ही अखबारों को विज्ञापन जारी कर किए जाते रहे हैं, जिनकी प्रसार संख्या बहुत कम है अथवा विज्ञापन प्रसारण के दिन का वितरण रोका जाना भी संभव है। सार्वजानिक विज्ञापन के आधार पर की जाने वाली प्रक्रिया में प्रकाशित विज्ञापन की प्रति उपलब्ध होने के बाद ही प्रक्रिया प्रारंभ की जाती है, जिसकी अनदेखी की गई। केवल विज्ञापन आदेश जारी हो जाने से ये नहीं माना जा सकता कि विज्ञापन प्रकाशित हो चुका है। संबंधित शाखा की गड़बड़ी भर यहां उजागर नहीं होती, बल्कि करोड़ों रुपए की दुकानों की नीलामी का मामला है जो मुख्य पालिका अधिकारी की देखरेख और हस्ताक्षर से ही सुनिश्चित होगा और यदि इस प्रक्रिया में खामी हुई है या जानकर गड़बड़ी की गई है तो जिम्मेदार हर व्यक्ति की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में है और इस पर बड़े सवाल खड़े होते है कि अधिकारी ने ऐसी अनदेखी क्यों की?

 

जांच हेतु टीम गठित की

प्राप्त जानकारी के अनुसार दुकान आवंटन की प्रक्रिया में जो आरोप लग रहे हैं उसकी जांच के लिए नगर परिषद द्वारा एक तीन सदस्यों की जांच टीम गठित की गई है।टीम में उपयंत्री आशुतोष सिंह, लेखापाल अशोक चौकसे, और पार्षद मोहन नरवरिया को रखा गया है। टीम द्वारा जांच कर आगामी 3 दिनों में रिपोर्ट दिए जाने की बात नगर परिषद के सीएमओ शशांक आर्मो ने कही है।

 

गौरतलब है कि नगर परिषद डिंडोरी की चार दर्जन से अधिक बेशकीमती दुकानो की आबंटन प्रक्रिया विवाद में आ गई है। इस पूरे मामले में बड़ा खेल होने की संभावना जाहिर की जा रही हैं, ओने पौने दाम पर बेशकीमती दुकान बेचने की तैयारी कर लिए जाने के आरोप चर्चा में है। वहीं राजस्व निरीक्षक चंद्रमोहन गर्मे द्वारा बताई गई जानकारी के अनुसार दुकान नीलामी की प्रक्रिया हेतु 57 अमनातदारो द्वारा राशि जमा किए जाने की बात कहीं गई थी और लगभग 50 दुकानों की नीलामी होने की बात बताई गई थी। जिससे जाहिर है कि 50 दुकानों के लिए केवल 57 दावेदारों का होना दुकानों की नीलामी में खुली प्रतिस्पर्धा को रोके जाने जैसा है। सूत्रों के हवाले से प्राप्त जानकारी में यह भी बताया गया है कि कुछ परिवारों द्वारा दर्जनों दुकानों की खरीद करने की कोशिश की जा रही है।

 

नगर परिषद के जबाबदारो की कार्यप्रणाली पर सवाल

नगर पंचायत के सीएमओ व अध्यक्ष नगर परिषद द्वारा जांच टीम बना कर उसकी रिपोर्ट के आधार पर आगे कार्यवाही किए जाने की बात कही जा रही है। इसके पूर्व परिषद के अध्यक्ष ने हमसे पूरी प्रक्रिया सही होने की बात कही थी। यहां एक विचारणीय प्रश्न यह भी है कि किसी संस्था के जिम्मेदार अधिकारी का यदि होने वाली प्रक्रिया पर नियंत्रण ही नहीं हैं तो ऐसे न जाने कितने मामले नगर परिषद की फाइलों में होंगे जिनमें इस तरह की गड़बड़ियां की गई होगी और अपने निजी लाभ के लिए विभिन्न शाखाओं द्वारा शासन को चूना लगाया जाता रहा होगा?

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