
प्राथमिक शाला भवन जर्जर, सामुदायिक भवन में लग रही कक्षाएं
गोपालपुर प्राथमिक शाला, करंजिया
जनपथ टुडे, डिंडोरी, 10 अक्टूबर 2021, करजियां ब्लॉक के अन्तर्गत गोपालपुर पंचायत में प्राथमिक शाला का भवन जर्जर हो चुका है। इस भवन की स्थिति इतनी खराब है कि बच्चों को यहां बैठने की व्यवस्था तक संभव नहीं है। जिसके चलते ग्राम पंचायत द्वारा सामुदयिक भवन में बच्चों के पढ़ने के लिए हाल उपलब्ध करवाया है जहां स्कूल लगता है।
प्राथमिक शाला भवन की स्थिति इतनी अधिक जर्जर है जिसे देख कर नहीं लगता कि कभी इसकी मरम्मत कराई गई हो। वहीं अचरज की बात यह है कि गिरने की कगार पर है स्कूल और विकासखंड स्तर के शिक्षा अधिकारियों, जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी सुध तक नहीं है। वहीं स्थानीय जनप्रतिनिधियों के द्वारा स्थिति की जानकारी होने के बाद भी अब तक कोई कदम नहीं उठाए गए जो आदिवासी क्षेत्र में शिक्षा की घोर उपेक्षा का नमूना है।
शाला में पदस्थ सहायक शिक्षक की माने तो भवन की मरम्मत हेतु विभाग से कोई राशि प्राप्त नहीं हो रही है जबकि भवन में बड़ी मरम्मत की जरूरत है। उन्होंने यह भी बताया कि कई बार भवन की स्थिति और नए भवन की जरूरत से विभाग के अधिकारियों को अवगत करवाया जा चुका है फिर भी अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। बच्चों को खतरे से बचा कर सामुदायिक भवन में शाला का संचालन किया जा रहा है।
एक ओर शासन और प्रशासन के द्वारा शिक्षा और आदिवासियों के हित में बड़ी बड़ी बाते और वायदे किए जाते है, दूसरी ओर आदिवासी अंचल में प्राथमिक शिक्षा के लिए बच्चों को भटकना पड़ रहा है। स्कूल भवन को लेकर जहां शिक्षक और बच्चे परेशान है वहीं अभिभावक प्रशासन की इस उपेक्षा से निराश है। जबकि गोपालपुर आस पास के लगभग आधा सैकड़ा गांवों का केंद्र है। इन गांवों का प्रमुख मुख्यालय है यहां आसपास के गांवों के लोगों की जरूरतों की पूर्ति हेतु छोटा सा बाजार है वहीं आसपास के क्षेत्र का हॉट भी गोपालपुर मुख्यालय में लगता है। जब यहां स्कूल भवन का हाल यह है तब आसपास के दूरस्थ वनग्रामों में शिक्षा की क्या व्यवस्था होगी और विभाग के आला अफसर उनकी कितनी सुध लेते होंगे इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
शिक्षा विभाग के अफसरों की आंखे बन्द
गोपालपुर प्राथमिक विद्यालय की ही तरह जिले के कई दर्जन ग्रामों में शाला भवनों की स्थिति जर्जर है। किन्तु जिले और विकासखंड स्तर पर पदस्थ अधिकारी सिर्फ कुर्सी तोड़ने पर आमादा है उनकी आंखे बन्द है। समय समय पर यदि अधिकारी भ्रमण करते होते, शिक्षकों और ग्रामीणजन की शिकायते सुनते होते, समय पर भवनों की मरम्मत करवाई जाती तो इस भवन की स्थिति इतनी जर्जर नहीं होती। जबकि शाला भवनों की मरम्मत हेतु प्रतिवर्ष शासन द्वारा राशि भी आवंटित की जाती है। जिला और विकासखंड स्तर पर शिक्षा विभाग का खासा अमला है ब्लॉक शिक्षा अधिकारी और बीआरसी पदस्थ है जिनके कार्यालयों की गतिविधियों पर शासन मोटी रकम खर्च करता है। पर ये सिर्फ कागजी खानापूर्ति और बैठकों में मस्त है। मैदानी स्थिति देखी जाए तो पूरी तरह निष्क्रियता और शून्यता ही नज़र आती है। शिक्षा विभाग, बेसुध आंखे बंद किए समझ में आता है। जिन पर जिले के वरिष्ठ अधिकारी और शासन जब तक कठोर कार्यवाही नहीं करेगे स्थितियों में सुधार नहीं आने वाला।