पंचायत चुनाव में तय नहीं खर्च की कोई सीमा, धनबल का जमकर होगा उपयोग

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जनपथ टुडे, 8 दिसंबर 2021,

त्रिस्तरीय पंचायत के चुनाव में मध्यप्रदेश निर्वाचन आयोग द्वारा प्रत्याशियों पर खर्च की कोई बंदिश नहीं लगाई गई है। जिसकी वजह से इन चुनावों में जमकर धनबल का उपयोग होना तय माना जा रहा है। पंचायत चुनाव क्षेत्र के विकास की सबसे निचली इकाई मानी जाती है इसके बाद भी इन्हें बेहद महत्वपूर्ण चुनाव माना जाता है। वहीं राजनीति में सक्रियजन इन चुनावों को क्षेत्र में अपने सम्मान के साथ साथ इन चुनावों को राजनीति में आगे बढ़ने का माध्यम मानते है।इन चुनाव में खर्च की बंदिश ना होना लोगों को समझ नहीं आ रहा है दरअसल लोकसभा विधानसभा और नगरी निकाय चुनाव में पैसों का दुरुपयोग रोकने के लिए चुनाव प्रचार में प्रत्याशियों के खर्च की सीमा तय कर रखी है। किंतु मध्य प्रदेश निर्वाचन आयोग ने आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में प्रत्याशियों के खर्च की कोई सीमा तय नहीं की है जिसके चलते इन चुनावों में जमकर धनबल का उपयोग होने के आसार हैं।

नगरीय निकाय में पार्षद से लेकर अध्यक्ष तक का क्षेत्र जनपद और जिला पंचायत सदस्य के क्षेत्र से बहुत कम होता है, लेकिन उनके लिए खर्च सीमा तय है। पर पंचायत चुनाव में कोई बंदिश नहीं रखी गई है। इसकी वजह से पंचायत चुनाव में प्रत्याशियों को मनचाही राशि खर्च करने की छूट होगी। आयोग द्वारा ना तो प्रत्याशियों के खर्च को लेकर कैफियत दी जाएगी और ना ही किसी तरह की पूछताछ की जाएगी। गौरतलब है कि पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य में पंचायत चुनाव में अधिकतम खर्च की सीमा तय है। उधर कांग्रेस पंचायत चुनाव में खर्च सीमा तय नहीं किए जाने पर आपत्ति कर रही है। कांग्रेस के प्रदेश लीगल सेल के प्रभारी जेपी धनोपिया ने कहा है कि आयोग द्वारा पंचायत चुनाव के लिए खर्च सीमा तय नहीं करने से प्रत्याशियों के खरीद फरोख्त की संभावना अधिक रहेगी। उधर चुनाव की घोषणा के बाद विभिन्न पदों के दावेदारों द्वारा मतदाताओं को लुभाने के लिए कई तरह के धार्मिक और सार्वजनिक आयोजन तक किए जाने लगे हैं। जिला पंचायत, जनपद पंचायत सदस्य के लिए कांग्रेस भाजपा समर्थक प्रत्याशी पद के दावेदार भी सक्रिय हो गए हैं। दोनों ही दलों में पार्टी स्तर पर अपने समर्थक प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारने को लेकर व उनकी जीत तय करने के लिए रणनीति बनाने का काम शुरू हो गया है।

भाजपा ने पिछली बार प्रदेश के 51 में से जिन तीन दर्जन जिलों में जिला पंचायत जीतने का दावा किया था अब उनको जीतने पूरी ताकत लगाई जाएगी और पार्टी के सत्ता होने के चलते इन जिलों में जीत के लिए धनबल का खुलकर उपयोग किए जाने की चर्चा है, क्योंकि जिला पंचायत के चुनाव परिणाम कहीं न कहीं सरकार के रिपोर्ट कार्ड के तौर पर देखे जायेगे।

आयोग की गाइडलाइन

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में उम्मीदवारों के लिए भले ही खर्च की कोई सीमा तय नहीं की गई है। लेकिन निर्वाचन आयोग ने कुछ गाइड लाइन तय की गई है जिसका पालन करना जरूरी किया गया है। जिसके तहत प्रत्याशियों की की अमानत राशि तय है जो कि नामांकन भरते समय प्रत्याशी को जमा करानी होगी। इसके अलावा इस चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल के चिन्ह व नाम का उपयोग नहीं किया जा सकेगा। पंचायत चुनाव को लेकर दोनों ही प्रमुख दल मैदानी जमावट में लग गए हैं।

ग्रामीण अंचल की राजनीति और चुनावी राजनीति का प्रवेशद्वार माने जाने वाले पंचायती चुनाव पार्टी आधार पर नहीं होने से यह प्रत्याशी की व्यक्तिगत शाख और कद का प्रतीक माने जाते है और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा दांव पर लगे होने और राजनैतिक दलों का समर्थन नहीं होने से इन चुनावों में गलाकाट प्रतिस्पर्धा दिखाई देती है साथ ही प्रत्याशी साम दाम दण्ड भेद की नीति अपनाते हुए जमकर शराब, धन और सामग्री मतदाताओं को बांटते है निर्वाचन आयोग द्वारा चुनावी खर्च की सीमा तय नहीं किए जाने और खर्च पर कोई बंदिश नहीं लगाए जाने से अब धनबल का और अधिक खुलकर उपयोग होगा। जिससे आर्थिक रूप से कमजोर प्रत्याशियों के सामने संकट खड़ा हो सकता है वहीं प्रत्याशियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगने से मजबूरन उम्मीदवार कर्ज आदि लेकर चुनावी मैदान मारने की कोशिश भी करेगे। कहां जा सकता है कि प्रत्याशी के खर्च की सीमा तय किया जाना जरूरी है।

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