नगर में आवारा कुत्तों का बढ़ता खौफ, आवारा पशु बेलगाम

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आपसी नूरा कुश्ती में उलझे पार्षद 

जनपथ टुडे, डिंडोरी, 3 मई 2025, जिला मुख्यालय की सड़कों और गलियों में आवारा कुत्तों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। पिछले दिनों नगर में आवारा कुत्तों द्वारा लोगों को काटने की कई जानकारियां सामने आई है कल शाम वार्ड नंबर 4 में कन्याशाला के पास रहने वाले बर्मन परिवार की 5 वर्षीय रूही बर्मन  पिता गणेश बर्मन को आवारा कुत्ते ने काट दिया, कुछ दिन पूर्व कृष्ण मंदिर के पास रहने वाले अधिवक्ता दीपू सोनी पर भी खुखार आवारा कुत्तों ने हमला कर दिया था। नगर के अलग अलग क्षेत्रों में कुत्तों के काटने की कई घटनाएं सामने आ रही है जिससे लोग बच्चों को लेकर खास तौर पर चिंतित है।

नगर की व्यवस्थाओं को लेकर नगर परिषद उदासीन है और उसे शहर में घट रही इस तरह की घटनाओं की जानकारी तक नहीं है। लंबे समय से परिषद द्वारा आवारा कुत्तों को शहर से बाहर करने और उन्हें नियंत्रित करने की कोई कार्यवाही नहीं की है जिससे अब शहर की हर गली और सड़कों पर बड़ी संख्या में आवारा कुत्ते दिखाई देते है इनकी रोकथाम जरूरी है।

इसी तरह शहर की सड़कों पर खुलेआम आवारा पशु घूमते फिर रहे है पर नगर परिषद किसी तरह की कार्यवाही नहीं कर रहा है। पूरे शहर में सड़कों पर आवारा पशुओं के घूमने से जहां यातायात प्रभावित होता है वही कई छोटी बड़ी दुर्घटनाएं भी इन आवारा पशुओं और कुत्तों के कारण हो रही है।

नगर परिषद के जिम्मेदार अधिकारी और जनप्रतिनिधियों को शहर और जनता की सुविधाओं से कोई लेना देना ही नहीं है। सूत्रों की माने तो परिषद के भीतर ही भारी उठापटक चल रही है। राजनैतिक खींचातानी और कर्मचारियों की उठापटक में उलझे परिषद से जनतहित में अनुरोध है कि कम से कम आवारा पशुओं, आवारा कुत्तों से तो नगर को निजाद दिलाए। नगर परिषद में बड़े बड़े राजनीतिक घाघ अपनी सीनियरिटी का दावा करते बताए जाते है पर उनकी इस विशेष योग्यता का लाभ जनहित के कार्यों में तो नजर नहीं आ रहा है। क्या “कथित सीनियरिटी” सिर्फ खास खास पद हथियाने भर के लिए है। बाकी सारी जिम्मेदारियों परिषद के अधिकारियों कर्मचारियों की है इनसे इन्हें कोई लेना देना नहीं है!!!!

“पार्षदों के बीच कोल्डवार”

सूत्रों की माने तो नगर परिषद के भीतर अलग अलग समितियों में मलाईदार माने जाने वाले पदों को लेकर इन दिनों पार्षदों में कोल्डवार चल रहा है। नगर परिषद में यू तो आधिकारिक तौर पर भाजपा का कब्जा है। पर इसने भी दो तरह के पार्षद शामिल है एक वो जो भाजपा के पुराने कार्यकर्ता है और पार्टी के साथ रहकर चुनाव लड़े और जीते थे दूसरे वो जो कांग्रेस में थे चुनाव जीतने के बाद भी कांग्रेस में थे किंतु अध्यक्ष के भाजपा में शामिल होने पर परिषद भाजपा की बन जाने के बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे। इस राजनीतिक उठापटक के बाद जहां पहले इन पदों पर भाजपा से जीतकर आए पार्षदों को बैठाया गया था वहीं अब इनमें से कई महत्वपूर्ण पदों पर कांग्रेस से भाजपा में आए पार्षदों की नजर है और अब पुराने पार्षदों को हटाकर समितियों के नए सिरे से गठन का दबाव अध्यक्ष पर है। इस सबके बीच पुरानी डिंडोरी के पार्षदों की उपेक्षा होने का मुद्दा भी गरमा रहा है जहां कुछ पार्षद तो “कुछ बड़ा होने” की बात भी कह रहे है। आगे क्या होता है यह तो समय ही बतायेगा पर फिलहाल सारे जिम्मेदार इसी बंदरबांट में उलझे दिखाई दे रहे है और लगातार नगर की जनता व्यवस्थाओं को लेकर उपेक्षित हो रही है।

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