मजदूरों को घर पहुंचाने वाली सरकारे और सुविधाओं का नहीं पता??

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सड़को पर भूख प्यास से परेशान मजदूरों को कोई राहत देने वाला नहीं

जनपथ टुडे, डिंडोरी, मई 16,2020, लखनऊ से कवर्धा दूरी लगभग 700 किमी, पैदल चलते मजदूर, कुछ साईकिलों पर लदी हुई गृहस्थी महिलाओं की गोदी में छोटे छोटे बिलखते रोते बच्चे, ये नज़ारा है बजाग से पंडरिया जाने वाली सड़क का। किसी की गोद में पांच माह का बच्चा तो किसी का दो साल का बच्चा। सायकिल के चके में पैर फसने से जख्मी बच्चे के लिए न कोई दवा न मलहम ऊपर से भूख और प्यास, पर न कहीं बाजार खुले है न कोई समाजसेवी संस्थाएं जो इन गरीबों का दर्द समझे और सहायता करे।

टेलीविजन चैनलों में पूरा दिन गरीब, मजदूरों की हर हाल में व्यवस्थाओं का दावा करते दिखने वाले मुख्यमंत्रियों का यहां कोई पता है न किसी तरह की कोई सुविधाएं, लंबी दूरी नाप चुके इन लोगो को कहीं मिली, न किसी ने इनकी तकलीफ जानने की कोशिश की बस अपने बूते पर अपने हाल पर खाली जेबे परेशानियों और संकट से भरी ये यात्रा, ये लोग पिछले एक सप्ताह से कर रहे है अभी कम से कम चार दिन का समय और लगेगा इन्हे अपने ठिकाने तक पहुंचने में, भूख और प्यास से जूझते इन लोगो को ये भी नहीं पता अपने इस हाल की शिकायत किससे करें।

सड़को पर इस तरह के बेबस और परेशान लोगो का तांता लगा है पर कहीं कोई व्यवस्था और सरकारी दावे नहीं दिखाई दे रहे है

 

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