नगरीय निकाय चुनाव आरक्षण मामले का फैसला सुप्रीम कोर्ट में होगा
फिलहाल चुनाव होने की संभावना नहीं
जनपथ टुडे, जबलपुर, 31 अक्टूबर 2021, प्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव लगातार टलते जा रहे हैं। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट स्तर पर नगरीय निकाय चुनाव आरक्षण के विवाद का कोई निराकरण नहीं निकल पाया है। शिवराज सिंह सरकार अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। जिसके बाद त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के साथ नगरीय निकाय चुनाव नहीं हो पाएंगे, साथ ही प्रदेश में नगरीय निकायों के चुनाव फिलहाल हो पाने की संभावनाएं भी कम नजर आती हैं।
मध्यप्रदेश नगरीय निकाय चुनाव हाईकोर्ट में कार्यवाही
सितंबर 2021 में इस मामले में हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में सुनवाई हुई थी। तब प्रदेश सरकार ने 4 सप्ताह का समय मांगते हुए सुप्रीम कोर्ट जाने की मांग की थी। इसके बाद हाईकोर्ट ने उसको समय नहीं दिया इसी दौरान हाईकोर्ट जबलपुर ने चुनाव में रिजर्वेशन के सभी मामले अपने पास बुला लिए। यहां 28 अक्टूबर को सुनवाई हुई जिसमें स्टे को बरकरार रखा गया। फिलहाल प्रदेश के लोगों को नगरीय निकाय चुनाव के लिए इंतजार करना होगा। नगरीय निकाय चुनाव मामले में हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में अधिवक्ता मानवर्धन सिंह तोमर ने नगर निगम, नगर पालिका, नगर परिषद में अध्यक्ष और अन्य तरह से आरक्षण प्रक्रिया को चुनौती दी थी। जिसमें याचिकाकर्ता की तरफ से पैरवी अभिषेक सिंह भदोरिया ने की थी। चुनाव में आरक्षण को लेकर 10 मार्च 2021 से विवाद चल रहा है। पहली सुनवाई 10 मार्च 2021 को की गई थी इसके बाद प्रदेश सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए 2 दिन का समय दिया गया था। ग्वालियर हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद कहा था कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि 2020 को जारी आरक्षण आदेश में रोटेशन पद्धति का पालन नहीं किया गया है। हाईकोर्ट ने एक अन्य मामले में ऐसा मान्य किया है कि प्रथम दृष्टया आरक्षण रोटेशन पद्धति से ही लागू होना चाहिए। ऐसी स्थिति में इस पूरे प्रकरण में अंतिम निराकरण तक उक्त पूरे आरक्षण को स्थगित कर दिया गया था। इसके बाद यह मामला जबलपुर हाईकोर्ट चला गया था।
हाईकोर्ट ने आरक्षण प्रक्रिया पर रोक लगाई चुनाव पर नहीं
इस मामले में हाईकोर्ट में मार्च 2021 में 2 नगर निगम, 79 नगर पालिका और नगर पंचायत के आरक्षण की प्रक्रिया पर रोक लगाने के बाद मध्यप्रदेश शासन से जवाब मांगा था। हाईकोर्ट में जवाब पेश करते हुए शासन की तरफ से कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 243 और नगरपालिका अधिनियम की धारा 29 में नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत के जो अध्यक्ष चुने जाने हैं उनके पदों के आरक्षण का अधिकार शासन को दिया है।
अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए जो पद आरक्षित किए जाते हैं वह जनगणना के आधार पर तय किए जाते हैं। जनसंख्या के समान अनुपात के आधार पर आरक्षण किया जाता है। ऐसा नहीं है कि एक पद आरक्षित हो गया है उसे दोबारा आरक्षित नहीं किया जा सकता। महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष व नगर पंचायत अध्यक्षों के पद आरक्षित करने में कोई गलती नहीं की है। कानून का पालन करते हुए आरक्षण किया गया है। मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से पेश की गई दलील सुनने के बाद याचिकाकर्ता मान वर्धन सिंह तोमर ने कहा कि आरक्षण में रोस्टर का पालन नहीं किया गया था।
अब सुप्रीम कोर्ट में होगा नगरीय निकाय चुनाव का फैसला
नगरी निकाय चुनाव में नगर निगम, नगर पालिका व नगर पंचायत में आरक्षण की प्रक्रिया पर रोक लगाते हुए ग्वालियर हाई कोर्ट के स्टे को जबलपुर हाई कोर्ट की डबल बेंच में भी बरकरार रखा है। अब इस मामले में प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। अब सुप्रीम कोर्ट में इस पूरे मामले में फैसला होना है। इस स्थिति को देखते हुए माना जा सकता है कि फिलहाल प्रदेश में नगर निकाय चुनाव टल गए हैं। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही आगे चुनाव हो पाएंगे।