तीसरे सावन सोमवार पर ऋणमुक्तेश्वर मंदिर में श्रद्धालुओं ने किया जलाभिषेक
कांवड़ यात्रा का हुआ आयोजन
शिवलिंग का किया विशेष पूजन
जनपथ टुडे, डिंडोरी, 1 अगस्त 2022, सावन के तीसरे सोमवार के पावन अवसर पर श्रद्धालुओं ने कांवड़ यात्रा का आयोजन किया और कुकर्रामठ स्थित कलचुरी काल के ऋणमुक्तेश्वर मंदिर में पहुंच शिवलिंग का नर्मदा जल से जलाअभिषेक किया।भक्तों ने दूध, घी, दहीं, गन्ने का रस, बेलपत्र, धतूरा, भांग और दूर्बा आदि चढ़ाकर पूजा की।
महादेव की उपासना कर श्रद्धालुओं ने कुकर्रामठ मंदिर में चढ़ाया नर्मदा जल
सावन के पावन अवसर पर तीसरे सोमवार को कुकर्रामठ मंदिर में श्रद्धालुओं और कावड़ यात्रा में शामिल भक्तों ने नर्मदा जल चढ़ाया और अभिषेक किया। इस दौरान मंदिर में स्थित शिवलिंग की विशेष पूजन कर आरती की गई। गौरतलब है कि जिला मुख्यालय से लगभग 14 KM की दूरी पर स्थित कुकर्रामठ मंदिर को श्री ऋणमुक्तेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग की पूजा और दर्शन करने से पितृ-ऋण, देव-ऋण और गुरु-ऋण से मुक्ति मिलती है। यहाँ महाशिवरात्रि, नागपंचमी समेत अन्य धार्मिक त्योहारों पर दूर-दूर से भक्तगण दर्शन करने आते हैं।
जानकारों के मुताबिक ऋणमुक्तेश्वर मंदिर का निर्माण 10 वी और 11 वी ईसवी के आस-पास माना जाता है। कुछ लोग इसे 8वीं सदी का मानते हैं। मान्यतानुसार यह मंदिर कल्चुरी कालीन है। मंदिर एक विशाल चबूतरे पर बना है। मंदिर के गर्भगृह में विशाल शिवलिंग विराजमान है। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने नंदी की प्रतिमा है। मंदिर में तीन ओर प्रकोष्ठ बने है, जिनमें संभवतः कभी मूर्तियां स्थापित रही होंगी। मंदिर की दीवारों पर मूर्तियां बनी साफ नजर आती हैं।विदित होवे कि यहां जिले की सबसे प्राचीन मड़ई भी लगती है।
पुरातत्व विभाग के अनुसार, पहले मंदिर परिसर में भगवान विष्णु, रामभक्त हनुमान, महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, शेर आदि की प्रतिमाएं थीं। इनमें से कुछ प्रतिमाएं वर्तमान में अमरकंटक संग्रहालय में हैं और कुछ प्रतिमाएं कुकर्रामठ मंदिर के पास ही सुरक्षित रख दी गई हैं। इन प्रतिमाओं को पुनः स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।कलचुरी काल की इस धार्मिक धरोहर का वर्तमान में रख-रखाव मप्र पुरातत्व विभाग करता है। पुरातत्व विभाग ने प्राचीन स्मारक पुरातत्वीय स्थल सुरक्षा अधिनियम 1958 के तहत मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया है। मंदिर के पास ही पुरातत्व विभाग का शिलालेख लगा है, जिसमें मंदिर के इतिहास ही जानकारी है। पुरातव विभाग की ओर मंदिर की सुरक्षा के लिए चारों ओर दीवार बनाई गई है। मंदिर के संरक्षण की दिशा में सबसे पहला प्रयास अंग्रेजी हुकूमत के वक्त 1904 में अंग्रेजों ने किया था। इसके बाद 1971 में भारत सरकार ने एक बार फिर इसकी मरम्मत करवाई। 2010 में भारतीय पुरातत्व विभाग ने मंदिर की सुरक्षा के लिए प्रयास किये हैं। मान्यतानुसार है कि कल्चुरी नरेश कौकल्यदेव के सहयोग से तात्कालीन शंकराचार्य ने गुरुऋण से मुक्त होने के लिए मंदिर का निर्माण कराया था। इसके साथ ही अन्य मतानुसार यह मंदिर स्वान अर्थात कुत्ते को समर्पित है। चूंकि कुत्ते को कूकुर भी कहा जाता है, इसलिए मंदिर को बाद में कुकर्रामठ मंदिर का नाम मिला। कहानी के अनुसार- किसी समय एक बंजारे को पैसे की आवश्यकता पड़ी। उसने पैसे के बदले किसी साहूकार के पास अपने कुत्ते को गिरवी रख दिया। एक दिन साहूकार के घर में कुछ चोर चोरी करने के लिए घुसे। कुत्ता सब चुपचाप देख रहा था। चोरी करने के बाद चोर बाहर निकले तो कुत्ता भी उनके पीछे-पीछे गया। चोरों ने चोरी का सारा धन एक तालाब के भीतर छिपा दिया। सुबह जब साहूकार की नींद खुली तब उसे पता चला कि उसके घर चोरी हो गई है। कुत्ता साहूकार के पास जाकर भोंकने लगा और उसकी धोती पकड़कर तालाब के पास ले गया और तालाब के भीतर छिपाए गए चोरी के धन को मुंह से निकालकर सामने रख दिया। इस पर साहूकार ने खुश होकर स्वान व उसके मालिक को ऋण-मुक्त कर दिया और ऋण-मुक्ति संबंधित एक पत्र लिखकर उसके गले में टांगकर मालिक के पास भेज दिया। संयोग से बंजारा भी कुत्ते को ऋण-मुक्त कराने आ ही रहा था और कुत्ता उसे रास्ते में मिल गया। बंजारे को यह लगा कि स्वान साहूकार के घर से भाग आया है। उसे क्रोध आ गया और उसने स्वान पर तेज वार किया, जिससे स्वान की मौत हो गई। फिर बंजारे की नजर कुत्ते के गले में बंधे ऋण-मुक्ति पत्र पर पड़ी तो वह पढ़कर रोने लगा। उसे बेहद अफसोस हुआ और उसने कूकुर की स्मृति में मठ का निर्माण कराया और साथ ही स्वान की मूर्ति भी बनवाई।
इस दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रमेेश राजपाल और जितेंद्र ब्योहार ने कोहका स्थित राइस मिल के सामने कावड़ यात्रियों और श्रद्धालुओं का स्वागत कर सकते उन्हें पेयजल और फलाहार भेट किया।