मध्यप्रदेश में कांग्रेस ध्वस्त जिम्मेदार कौन ???

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इरफान मलिक की क़लम से :-

जनपद टुडे,तमाम आशंकाएं और कुशंकाएं अंततोगत्वा सही साबित हुई और उपचुनाव में भी कांग्रेस चारों खाने चित्त हो गई. कांग्रेस की इस करारी हार की समीक्षा अब दिल्ली से लेकर भोपाल और भोपाल से लेकर चौपाल तक शुरू हो जाएगी और एक दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप का खेल भी आरंभ होगा. लेकिन अब ज्यादातर कांग्रेसी गहरी निराशा में डूब चुके हैं और ऐसी स्थिति से इस हताशा से कांग्रेस का बाहर निकल पाना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा. लगातार टूटती और कमजोर होती कांग्रेस को लेकर राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि आलाकमान व नेतृत्व की अनिर्णय की स्थिति और लचर संगठन कांग्रेस को ले डूबे,15 साल बाद कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत से बनी सरकार नेताओं के अहं की भेंट चढ़ गई और कार्यकर्ता वहीं जमीन पर थका हुआ हताश खड़ा है. इस पूरे समर में एक बात तो तय हो गई है की कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का तिलिस्म पूरी तरह टूट चुका है और यह दोनों कथित तौर पर लोकप्रिय और बड़े नेता जमीन से पूरी तरह कट चुके हैं. मात्र संसाधन और लोकप्रियता के दम पर चुनाव अब नहीं जीते जा सकते ब्लाक स्तर से लेकर जिला संगठन की खुली उपेक्षा कर के और निर्वाचित विधायकों के भरोसे उप चुनाव लड़ रही कांग्रेस आज चारों खाने चित हो चुकी है और जनता ने कांग्रेस के इस फार्मूले को ठुकरा दिया है. अब कांग्रेसी इसके कारणों की खोज भी गंभीरता से करते है या महज़ रस्म अदायगी के नाम पर नेतृत्व परिवर्तन किया जाता है यह देखने वाली बात रहेगी.

जाहिर है अब तक कांग्रेसी आलाकमान कमलनाथ और दिग्विजय की जोड़ी पर पूरा भरोसा कर अपनी रणनीति और प्रत्याशी तय कर रही थी, ज्योतिरादित्य सिंधिया तक की बलि पार्टी ने ले ली थी और कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में उपचुनाव में दांव आजमाया भी जो पूरी तरह असफल साबित हुआ लगातार असफल हो रही कांग्रेस के सामने सबसे गंभीर सकंट आ गया है कि वह कौन सा रास्ता चुने और अपनी प्राथमिकताएं किस प्रकार तय करें क्योंकि कांग्रेस के अंदर बीमारियों का जमघट है एक ओर जहां स्लीपर सेल की समस्या है वहीं दूसरी तरफ बड़े नेताओं का अहंकार है और नीतियों और कार्यक्रमों पर दलालों और चापलूसों का कब्जा बना हुआ है। जो बस अपना पी आर बनाने में जुटे हुए हैं, इस चक्की में पिसते हुए कांग्रेस की हालत बहुत दयनीय हो गई है और इस स्थिति में कांग्रेस के आंतरिक दुश्मन बेहद ताकतवर है. जिससे उबरना बहुत मुश्किल है और बगैर इनकी गतिविधियों पर अंकुश लगाए रसातल में जा रही पार्टी को खत्म होने से नहीं बचाया जा सकता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी का छद्म तिलिस्म अब टूट चुका है और अब इस अंधेरे से निकलने के लिए पार्टी आलाकमान को युवा नेतृत्व का एक ऐसा नया सूरज तलाशना होगा जो अपने जमीनी और सच्चे कार्यकर्ताओं में उम्मीद भरोसा और संभावना की नई रोशनी भर सके और संगठन को फिर से खड़ा कर सके लेकिन पार्टी ऐसा कर पाएगी इस पर भी संशय बरकरार है. लेकिन इतना तो तय है कांग्रेस आलाकमान को अपने इस अनिर्णय की ऊहापोह से बाहर आना होगा. अप्रासंगिक हो चुके थके हुए नेताओं को घर बैठाना होगा. इस उपचुनाव में एक बात और गौर करने लायक है कि इसके परिणाम भाजपा के दोहरे जीत के परिचायक सिद्ध हुए हैं और अपने काडर को कांग्रेस से आये नेताओं के लिए सहमत करा कर जिता देना उनके संगठनात्मक ढांचा की मजबूती को साबित करता है

भाजपा में कांग्रेस से लोगों को उम्मीदवार बनाने से भितरघात की स्थिति थी किन्तु इस जटिल समस्या पर पार्टी संगठन ने नियंत्रण कायम किया और जीत दर्ज की वहीं कांग्रेस का संगठन कहीं दिखाई नहीं दिया लंबे समय तक प्रदेश की सत्ता में काबिज रही कांग्रेस उसके नेता और संगठन में सक्रिय रहे पुराने नेताओ सहित प्रदेश में जंबो संगठन कहीं दिखाई ही नहीं दिया. सर्वे और समीक्षा सब धरी रह जाती है जब पार्टी छोड़कर विधायक रोज भागते दिखाई देते है और वे विधायक बने रहने के बजाय पद छोड़कर चुनाव लड़ने तैयार होते है। आखिर इन स्थितियों के पीछे कांग्रेस से इन नेताओं का छूटना मोह कारण तलाशने होंगे सुधार की जरूरत पूरे सूबे में जरूर महसूस की जानी चाहिए जब जनता ने पार्टी की रीति और नितिकारो को दरकिनार कर दिया हो.

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