बच्चो की खेल सामग्री के पैसों का खेल कर गए अधिकारी

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डिंडोरी – जनपथ टुडे, 08.02.2020

शिक्षा में गुणवत्ता लाने एवं खेल गतिविधियों को बढ़ावा दिए जाने के उद्देश्य से भारत सरकार मानव संसाधन विभाग द्वारा मध्यप्रदेश सरकार को 70 करोड़ 19 लाख 40 हजार रुपयों का बजट दिया गया ताकि हर स्कूल में बच्चों को खेलने हेतु खेल सामग्री उपलब्ध हो सके । प्रदेश शासन ने यह राशि प्राथमिक शालाओं को पाच हजार रूपए और मिडिल स्कूलों को दस हजार रुपए प्रतिशाला के मान से दे दी, इस राशि को शालाओं के बैंक खातों में जारी किया गया ताकि पालक शिक्षक संघ और साला प्रमुख की देखरेख में आवश्यकता के अनुरूप खेल सामग्री के क्रय की जावे।
इस आवंटित राशि पर शिक्षा विभाग के कुछ अफसरों और माफियाओ की नजर पड़ते ही माफिया कारोबारी सक्रिय हो गया और उन्होंने अधिकारियों को मोटे कमीशन के लालच में फंसा कर थोक बंद तरीके से खेल सामग्री स्कूल केंद्रों में पहुंचा दी, अधिकारियों ने दबाव देकर खेल सामग्री ले जाने एवं इस हेतु आवंटित राशि का चेक फर्म के नाम देने का फरमान जारी कर दिया विभागीय दबाव के चलते साला प्रमुखों ने तो उनके निर्देशों का पालन करना शुरू कर दिया किंतु पालक संघ के अध्यक्षों द्वारा कई शालाओं में न नुकर करने और खेल सामग्री की गुणवत्ता को लेकर मुखर होने से अधिकारियों के इस खेल का रायता बगर गया ऊपर से मीडिया ने सक्रियता दिखाते हुए मेहदवानी, शहपुरा विकासखंड के तमाम स्कूलों में दी गई घटिया सामग्री तथा भुगतान की जानकारी के साथ माफिया कारोबारी व अधिकारियों की पोल खोल दी।

पूरे मामले पर पर्दा डालने की कोशिश होने लगी हैं और फिलहाल बाकी भुगतान की प्रक्रिया बंद करा कर मामले को शांत करने की कोशिशें की जा रही हैं वहीं जिले में खबर को प्रमुखता से प्रसारित करने के बाद जिन शालाओं में अब तक खेल सामग्री नहीं खरीदी गई थी वहां साला प्रमुखों को बाजार से अपने स्तर पर खेल सामग्री क्रय करने निर्देश दिए जा रहे हैं।

मामले पर जहां कैबिनेट मंत्री ओमकार मरकाम ने जांच का आश्वासन दिया है वहीं जिला अध्यक्ष कांग्रेस कमेटी डिंडोरी ने भी मामले की जांच की मांग करते हुए जिला कलेक्टर को पत्र लिखा है ।

जिले में यह इस तरह का पहला मामला नहीं है।ग्राम पंचायत, महिला बाल विकास, स्वास्थ्य विभाग द्वारा इस तरह के कई कारनामे पहले भी किए जा चुके हैं जहां निविदा प्रक्रिया से बचने के लिए संस्थाओं को राशि तो जारी कर दी जाती है पर बाद में अधिकारियों के दबाव और माफियाओं की मिलीभगत से अघोषित तौर पर सेंट्रलाइज खरीदी कर ली जाती हैं, इसके चलते निविदा न होने से बाजार की प्रचलित दर पर घटिया से घटिया सामान खरीदने के बदले अधिकारियों को मोटा कमीशन मिल जाता है। जिले के स्कूल और छात्रवास में इस तरह का एक माफिया सालों से सक्रिय है जिसके बारे में सबको पता है पर कहीं जेब भर के तो कहीं मुंह बंद करके कथित कारोबारी सालो से जिले में सामग्री की आपूर्ति कर रहा है जो जग जाहिर है। इस खुलासे और जांच के बाद देखना है कितना सुधार होता है।

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