विधानसभा चुनाव 2023, में गायब रहा “विकास”

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जनपथ टुडे, (पंकज शुक्ला)

प्रदेश की सरकार और राज्य की सत्ता के पीछे का मूल कहीं न कहीं आमजन का हित और कल्याण है। जिसके लिए ऐसी योजनाओं को लागू किया जाना सरकार का कार्य होता है जिससे समाज और क्षेत्र का संपूर्ण विकास संभव हो। मध्यप्रदेश में पिछले अठारह वर्ष की भाजपा सरकार हो या फिर इसके पहले लगभग 40 साल प्रदेश की सरकार चलाने वाली कांग्रेस सरकार इसी विकास के लिए सत्ता में रही पर आजादी के 75 साल बाद प्रदेश के अलग अलग क्षेत्रों में जिंतना विकास होना था उससे प्रदेश शायद कहीं बहुत पीछे छूट चुका है। फिर भी ये पार्टियां अब भी चुनाव इसी विकास के मुद्दे पर ही लड़ती है।

इस चुनाव में तमाम योजनाओं के आधार पर प्रदेश के विकास मॉडल को लेकर दोनों प्रमुख दलों ने अपना अपना घोषणा पत्र भी जारी किया। पर यह घोषणा पत्र न तो आम मतदाताओं के पास तक पहुंचा और न मतदाताओं की इसमें कोई रुचि रही। फिर चुनाव के बाद दो खास मुद्दे सामने आ रहे है और जो चुनाव का रुझान दिखाई दे रहा है उसमें उभर कर दो बातें सामने आईं। जिसके आधार पर इन पार्टियों के पक्ष में बड़ा वोट पड़ने के अनुमान लगाए जा रहे है।

पहला विषय है पुरानी पेंशन स्कीम जिसको लेकर कांग्रेस के पक्ष में सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों के वोट पड़ने की बात कही जा रही है। और यह इकलौता मुद्दा है जिसके बल पर कांग्रेस की सत्ता में वापसी का अनुमान बताया जा रहा है। ओपीएस को लेकर सरकारी कर्मचारी संघ लंबे समय से सरकार को घेर रहे थे और उन्हें चुनावी साल में सरकार से मांग माने जाने की उम्मीद थी पर सरकार ने बात नहीं सुनी। 2023 के चुनाव में मध्यप्रदेश में कांग्रेस के 18 साल के वनवास के बाद जिन सरकारी कर्मचारियों के बल पर कांग्रेस की वापसी के आसार देखे जा रहे है ये वही सरकारी अमला है जिसकी नाराजगी के चलते 2003 के चुनाव में दिग्विजय सिंह की सरकार को जाना पड़ा था और अब यही वर्ग कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो सकता है।

दूसरी बड़ी बात है ” लाड़ली बहना” योजना बीजेपी का मानना है कि 2023 के चुनाव में लाड़ली बहना का कमाल होगा। यदि यह बात 50% भी संभव हुई तो बीजेपी की बंफर जीत संभव होगी। क्योंकि कुल मतदाताओं के 50 फीसदी के लगभग महिला मतदाता प्रदेश में है और लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में महिलाओं का औसत करीब करीब इतना ही है। इसके अलावा पार्टी का परमपरागत मतदाता, समर्थक भी 30 से 35 फीसदी तक है। इनको मिलाकर वोटो का जो आंकड़ा पहुंचता है वह ऐतिहासिक जीत की तरफ होगा। पर यह अनुमान है सच मतगणना के बाद सामने आएगा। 18 साल में शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने योजनाओं के नाम पर न जाने कितनी योजनाएं लागू की और करीबन हर वर्ग को साधने, खुश करने की कोशिश की, बड़े समय से प्रदेश में मामा बनकर चर्चित रहे शिवराज ने सबसे आखिरी में जिन बहनों को याद किया शायद वे ही 2023 में उन्हें उबार सकती है। आखिर इस योजना में ऐसा क्या खास है! हालाकि यह उपाय शिवराज की निजी खोज नहीं है इस तरह की योजना पिछले विधानसभा चुनाव में केजरीवाल के दिमाग की उपज रही, जिसको भाजपा मुफ्तखोरी के नाम पर सत्ता हथियाने वाली पार्टी कहती है। खैर इस योजना का इतना व्यापक असर होता क्यों दिखाई दे रहा जबकि शिवराज की प्रयोगशाला से पिछले 18 सालों में सैकड़ों योजनाएं लाई गई। काफी मंथन के बाद मैंने जो निष्कर्ष पाया उसकी दो वजह है पहली महिला मतदाताओं की संख्या जो आबादी की आधी है और यह हर घर में है। दूसरी वजह है योजना का “भ्रष्टाचार प्रूफ” होना, इसमें न कोई बिचौलिया है न दलाल की भूमिका है। न किसी से किस्त डलवाने के लिए प्रमाणीकरण और अनुमोदन की जरूरत है। जिससे एक बार रजिस्ट्रेशन होने के बाद पूरी राशि हितग्राहियों के खाते में पहुंच रही है। शायद यही कारण है कि पीएम आवास, मनरेगा, शौचालय निर्माण, जैसी योजनाएं जिनका बड़ा टारगेटेड एरिया होने के बाद भी “लाड़ली बहना” सरकार के लिए बतौर रिटर्न गिफ्ट बहुत सार्थक साबित होती दिखाई दे रही है।

इस तरह सालों से प्रदेश की सत्ता पर काबिज दोनों बड़े दल 2023 के विधानसभा चुनाव में और कोई चर्चा नहीं कर रहे है। विकास न इनका मुद्दा है न चर्चा का विषय, बल्कि इस पूरे चुनाव से “विकास” पूरी तरह नदारत नज़र आ रहा है। पुरानी पेंशन स्कीम और लाड़ली बहना पर भी पार्टियों से अधिक मतदाताओं का फोकस रहा और माना जा रहा है कि मतदाताओं ने इसी आधार पर मतदान किया है। इन दोनों योजनाओं का समाज और प्रदेश के सम्पूर्ण विकास से सरोकार भी नहीं है। प्रदेश का हर परिवार महिलाओं को हर माह मिलने वाले 1500/- रुपए और सेवा निवृत सरकारी कर्मचारी की पेंशन से सब कुछ हासिल नहीं कर सकता है न ही इस आर्थिक मदद से प्रदेश के विकास में बहुत योगदान संभव है। पर क्या कीजिएगा चुनाव है इसने चलते है तो खोटे सिक्के भी चल जाते है और नहीं चलते तो सोने के सिक्के भी नहीं चलते। जो भी हो पर मध्यप्रदेश की आगामी सरकार बनेगी इन्हीं दोनों मुद्दों पर। चुनाव में विकास भर गायब नहीं रहा भ्रष्टाचार, हिन्दू – मुस्लिम, भरती घोटाले, आदिवासी अत्याचार, पलायन, बेरोजगारी जैसे दर्जनों मुद्दे में चुनावी मुद्दा बनने को तरसते रह गए।

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