अनूपपुर सीट पर उपचुनाव की सरगर्मियां, रमेश सिह की दावेदारी मजबूत
डिंडोरी एडीएम थे रमेश सिंह, निलंबत है अभी
पहली बार होगे इतनी अधिक सीटों पर विधानसभा उपचुनाव
जनपथ टुडे,6जून2020, कोरोना का कहर और इसके आगे पीछे घूमती प्रदेश की सियासत, कमलनाथ की 14 माह पुरानी सरकार जो चल रही थी भले ही कुछ खास न कर पाई हो जो उल्लेखनीय किंतु सरकार को लेकर बाहर और भीतर इतना भी असंतोष नहीं था कि सरकार गिर जाएगी इसका अंदेशा हो पाता। इसी बीच कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह कि दिल्ली में की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में भाजपा द्वारा कुछ विधायकों को अगवा किए जाने और कीमत लगाने का खुलासा और फिर उन विधायकों की कांग्रेसी नेताओं की छापामारी के बाद वापसी कर सरकार बचाने के बीच, जब सरकार के मंत्रियों के ही प्रदेश से लापता होने की चर्चा आम हुई और कांग्रेस के महत्वपूर्ण माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके खेमे की बड़ी बगावत से कमलनाथ सरकार की जमीन खिसक गई पर फिर तमाम प्रयासों के बाद भी कांग्रेस के पक्ष में कुछ ठीक होता नहीं दिखा अंततः मजबूर कमलनाथ को अपना इस्तीफा देना ही पड़ा। कोरोना की दस्तक प्रदेश में हो चुकी थी सरकार पर यह आरोप आज भी कायम है कि मध्य प्रदेश की सरकार को गिराने में जुटी रही मोदी सरकार और कोरोना के रोकथाम के संपूर्ण प्रयास नहीं किए गए, लॉक डॉउन देर से लगाया गया। मध्य प्रदेश में सरकार गिरने के बाद देश में लॉक डॉ उन लागू किया गया यह आरोप है, सच क्या है यह तो केवल सरकार को पता है। प्रदेश के कार्यवाहक मुख्यमंत्री कमलनाथ दुखी मन से कोरोना के प्रारंभिक काल में काम करते रहे इस बीच प्रदेश की बागडोर थमते हुए शिवराज सिंह ने कोरोना से भी मोर्चा लिया और कांग्रेस की सरकार की सुलगती हुई राख पर भी बराबर पानी डालते रहे, इसमें भी उन्होंने कोताही नहीं बरती।
कोरोना और लॉक डाउन खत्म होते-होते प्रदेश में बड़ी संख्या में खाली हुई विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की सरगर्मियां तेजी पकड़ने लगी हैं। अनलॉक का आज 6वा दिन ही है बाजार, दुकान, कारोबार, यात्री बसें परीक्षाएं जैसी बहुत ही महत्वपूर्ण चीजें अब तक पटरी पर नहीं आ पाई है, अभी भगवान के मंदिरों से भक्तों की दूरी भी नहीं मिट पाई है, पर उपचुनाव की सरगर्मी उफान पर आ चुकी है। लाजमी तौर पर चंबल में भाजपा उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस से बगावत करके आए लोगों को टिकट दी ही जाना है और इसके चलते पार्टी की संस्कृति और परंपरागत कार्यकर्ताओं का विरोध, प्रदेश के कई बड़े भाजपा नेताओं के सूजे हुए मुंह की खबरें भी आ रही हैं पर भाजपा में सब पटरी पर आ ही जाएगा। क्योंकि पार्टी की संस्कृति और जमीनी कार्यकर्ता और भाजपा के तमाम दिग्गज सबको धाराशाही कर 14 माह पहले भाजपा की सत्ता छिन चुकी थी, इसको इन्हीं बगावती कांग्रेसियों और गैरभाजपाई विचारधारा वाले विधायकों के “बेंगलुरु बनवास” के द्वारा प्राप्त किया गया और इसमें इन जमीनी कार्यकर्ताओं की नहीं बल्कि दिल्ली दरबार में बैठे राजनैतिक मठाधीशो की कलाकारी ही मूलधन है, उनके राजनीतिक गणित की परिपक्वता के हिसाब से चुनाव में बीस से अधिक विधायकों का चोला भगवा किया जाना है जिनकी पैदाइशी राजनीतिक विचारधारा क्या थी यह मुद्दा नहीं है, ये सियासत सत्ता पाने की है विचारधारा मजबूत करने की नहीं।
अनूपपुर का उपचुनाव डिंडोरी के नजरिए से
प्रदेश की राजनैतिक उठापटक का असर मुख्य रूप से सिंधिया के असर वाले चंबल संभाग पर अधिक है और उपचुनाव भी अधिकांश चंबल संभाग के विधायकों द्वारा इस्तीफा देने से खाली हुई विधानसभा सीटों पर होंगे, कुछ इंदौर संभाग के साथ महाकौशल क्षेत्र की एकमात्र अनूपपुर सीट जहां से विधायक बिसाहू लाल सिंह उठापटक में पहलीबर कमलनाथ के पास वापस पहुंचे थे कि वे तीर्थ यात्रा पर चले गए थे किंतु कुछ दिनों बाद उन्होंने अचानक पार्टी से पल्ला झाड़ ही लिया। बताया जाता है कि बिसाहू लाल सिंह कांग्रेस के दिग्विजय सिंह के खेमे के माने जाते हैं और उनका सिंधिया से कोई खास संपर्क नहीं था, किंतु वे कमलनाथ सरकार में मंत्री न बनाए जाने से खासे नाराज थे प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर भी चर्चा में रहने के बाद आदिवासी नेता अपनी सिनियारटी से हो रहे खिलवाड़ से अंततः न उम्मीद होकर आखिर भाजपा का दामन थाम ही बैठे।
गौरतलब है महाकौशल क्षेत्र में एकमात्र सीट है जिस पर उपचुनाव होगा अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सीट पर भाजपा बिसाहू लाल सिंह को ही टिकट देगी इस पर अधिक सवाल खड़े नहीं किए जा सकते।इस सीट पर कांग्रेस को एक अदद जिताऊ चेहरे की दरकार हो चली है। कांग्रेस की राजनीतिक उपलब्धियां जो भी हो पर पार्टी में चुनाव में टिकट लेने के लिए दावेदारों की कमी कभी नहीं होती, इस चुनाव में भी हाल वहीं बने हुए हैं। पर अब तब इस सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में जो नाम उभर कर आ रहा है वह नया है सक्रिय राजनीति में, किन्तु अनूपपुर सीट पर यह नाम प्रभावशाली तरीके से उभर रहा है। यह नाम है अनूपपुर जिले के खाड़ा गांव के निवासी रमेश सिंह का जो कि प्रशासनिक अधिकारी हैं और सूत्र बताते हैं कि वे दिग्विजय सिंह के करीबी भी है। दिग्गी राजा की तरफ से उन्हें इशारा भी मिल चुका है और फिलहाल उन्हें कार्यकर्ताओं और संगठन में अपनी जमीन पर तैयार करना है। गौरतलब है रमेश रमेश डिंडोरी में एडीएम पदस्थ थे कोरोना संक्रमण के दौरान जिला कलेक्ट्रेट में एक बैठक के समय उनकी भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष डॉक्टर सुनील जैन से हुई झड़प के दूसरे ही दिन प्रदेश में काबिज हुई नई नई भाजपा सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया था। जाहिर तौर पर इस राजनैतिक उठापटक से सत्ता में आई भाजपा सरकार का पहला शिकार रमेश सिंह ही थे इनके पक्ष में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शिवराज सिंह को पत्र लिखकर इन की बहाली हेतु पूरी घटना पर पक्ष रखा था जो कि रमेश सिंह और दिग्विजय सिंह की करीबी जाहिर करता है फिलहाल अनूपपुर में कांग्रेस के उम्मीदवारों को लेकर जो नाम दावेदारी में हैं उसमें रमेश सिंह की स्थिति काफी मजबूत बताई जाती है। प्रशासनिक अधिकारी रमेश सिंह के आसपास के आदिवासी क्षेत्रों के नेताओं से भी खासा संपर्क है, वहीं शिक्षा व अनुभव के अलावा आर्थिक रूप से भी उन्हें मजबूत माना जा रहा है। इनको लेकर डिंडोरी में भी सरगर्मी बनी हुई है क्योंकि यह डिंडोरी में काफी दिनों का रहे और यहां उनके खासे निजी संपर्क हैं दूसरी ओर अनूपपुर सीट का हिस्सा डिंडोरी जिले की सीमा से जुड़ा है और वहां के बहूत से ग्रामीण इलाकों से जिले का सीधा संपर्क है। ऐसे में रमेश सिंह को कांग्रेस यदि टिकट देती है तो डिंडोरी जिले में भी राजनीतिक सरगर्मियां अधिक दिखाई देगी। जिले मेंरमेश सिंह की दावेदारी को लेकर उत्सुकता बनी हुई है और फैसला कांग्रेस को लेना है। अभी समय बचा है लेकिन बहुत अधिक नहीं, प्रदेश अनलॉक हो चुका है और कोरोना का खौफ जा चुका है चुनाव आ चुका है।