
जंगल की जमीन का सोना : पिहरी और पुटपुटा
भुवनेश्वर पड़वार “पप्पू” की कलम से –
महंगी है लेकिन पौष्टिक और स्वादिष्ट है पिहरी और पुटपुटा
रोगों के विरुद्ध कारगर है इनका सेवन
Green Chicken
जनपथ टुडे, डिंडोरी, 9 अगस्त 2022, एक निश्चित समय और जगह पर ही पैदा होने वाली पौष्टिक और स्वादिष्ट सब्जी जिसको स्थानीय भाषा पिहरी व पुटपुटा के नाम से पहचाना जाता है। इन दोनों सब्जी की पैदावार बारिश के शुरुआती चरण में ही होती है और बामुश्किल 20 से 25 दिन ही इसका उत्पादन प्राकृतिक तरीके से संभव होता है। जंगल, पहाड़ों में एक निश्चित समय तक मिलने वाली पिहरी, पुटपुटा इन दिनों बाजार में नजर आ रहीं हैं।
पिहरी के दाम 600 से लेकर 800 रुपये किलो तक हैं, वहीं पुटपुटा के दाम 400 से 600 रुपये प्रतिकिलो है। आसमान छूते दामों के बावजूद लोग इन्हें खाना पसंद कर रहे है। आदिवासी अंचल सहित इनकी मांग दूसरे जिलों में भी है।
पिहरी ही है मशरूम :
महानगरों में मशरूम कहलाने वाला ये साग डिंडौरी जिले में पिहरी नाम से जाना जाता है। इनके दाम ऊंचे होने का कारण यह है कि पिहरी, पुटपुटा जंगल, पहाड़ जैसे क्षेत्रों में पैदा होती है। यह कम मात्रा में पैदा होती है, इन्हें इकट्ठा करना भी बड़ा मुश्किल काम है। जंगल से चुन चुनकर इसे इकट्ठा करना होता है, इसलिए यह मंहगी मिलती है।
साल वनों में होती है पिहरी व पुटपुरा : पिहरी समनापुर, बम्हनी, गौराकन्हारी, सरई आदि ग्रामीण शेट्टी में लगे जंगलों में होती है। जहां साल के पेड़ों की अधिकता होती है, वहीं पर उगती है पिहरी व पुटपुटा। यहां के जंगलों में मिलने वाले पुटपुटा की दिल्ली तक मांग है। खाने योग्य फफूंद में भरपूर प्रोटीन, मिनरल, पोषण तत्व से भरपूर है। वनांचल के साप्ताहिक बाजार में आते ही इनकी ब्रिकी हो जाती है। जंगल से लाकर वनवासी साप्ताहिक बाजार में विक्रय कर रोजी-रोटी जुटा रहे है। खाने के शौकीन स्वाद में लाजवाब पुटपुटा साग के दीवाने है। इससे शरीर में प्रोटीन, मिनरल की कमी पूरी हो रही है। पुटपुटा साल के पेड के नीचे बारिश के सीजन में जमीन से निकलता है। जमीन की गर्माहट के बाद मशरूम प्रजाति का पुटपुटा पेड के आसपास निकल आता है। इसे पुटु, नाम से भी जाना जाता है। इसका वनस्पति नाम लाइकोपरडान है। वनस्पति विशेषज्ञों के मुताबिक पुटपुटा खाने योग्य फंफूद है। पुटपुटा का उपरी हिस्सा सख्त और अंदर मुलायम होता है। इसके अंदर सफेद, पीला, भूरा और काले रंग का हिस्सा हो सकता है। सफेद रंग के दौरान पुटपुटा की सब्जी बहुत ही स्वादिष्ट लगती है। काला रंग होने पर इसे उपयोग में नहीं लाया जाता है।
शहरों में डिमांड
पुटपुटा की महानगरों में भारी मांग है। इसके गुण और स्वाद को जानने वाले दिल्ली और मुंबई में रहनेवाले भी यहां से इसे ले जाते हैं। उत्पादन से कहीं ज्यादा पुटपुटा की मांग है। डिंडौरी, मंडला जिले के अलावा बालाघाट और छत्तीसगढ से भी पुटपुटा की मांग है।
ग्रीन चिकन (Green Chicken)
जानकार बताते हैं कि नॉनवेज न खाने वालों के लिए पुटपुटा ज्यादा बेहतर है और विकल्प के रूप में देखा जाता है। पुटपुटा का स्वाद नॉनवेज की तरह होता है और इसमें चिकन और मटन की तरह पोषक तत्व की मात्रा भरभूर है। प्रोटीन और मिनरल होने के कारण कमी को पुटपुटा आसानी से पूरा कर शरीर को स्वस्थ
और तंदुरूस्त बनाता है। इन्हीं गुणों और अपने स्वाद के कारण इसे लोग ग्रीन चिकन कहते है।