मुख्यधारा से जुड़ने को मोहताज जिला

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आजादी के 70 साल बाद भी नहीं यातायात की सुविधाएं

न नेताओं को फिक्र न प्रशासन को

डिंडोरी – देश को आजादी मिले गुजर चुका है अरसा और इस लंबे दौर में जहां बुलेट ट्रेन का तानाबाना आम लोगों के लिए बुना जाने लगा है वहीं विकास की तीव्रता के चलते देशभर में सैकड़ों तेज गति की शताब्दी, दुरंतो जैसी सुविधायुक्त ट्रेनों को दौड़ते देखा जा सकता है मेट्रो ट्रेन, वोल्वो बसों की चकाचौंध के बीच हम आज भी समय-असमय जाती बसें में सवार होने पेड़ की छाया ही तलाशते नजर आते हैं जिले में आम लोगों के लिए एकमात्र यातायात का साधन बसे ही है। जिले के लगभग 900 गांवों से प्रतिदिन औसत मानत्व 25 से 30 व्यक्ति एक गांव से दूसरे गांव, शहर,कस्बों की यात्रा इलाज, शिक्षा भ्रमण आदि के लिए करते हैं अनुमानित 30000 लोगों को यातायात के साधनों की तलाश रोज रहती है, मान ले कि 5 से 10 हजार लोग प्रतिदिन निजी वाहनों का उपयोग करते होगे तब भी 20000 यात्री प्रतिदिन सार्वजनिक यातायात व्यवस्थाओं पर निर्भर है। माह भर के 5 से 6 लाख लोगों को यातायात की सुविधाओं के संचालन और देखरेख के लिए प्रशासनिक व्यवस्थाओं में एक भी जिम्मेदार पदस्थ नहीं है तब मनमानी व्यवस्थाओं पर रोक लगाने और अव्यवस्थाओ पर नियंत्रण की दूर-दूर तक संभावनाएं ही नजर नहीं आती ।

जिला मुख्यालय में बस स्टैंड का नहीं कोई जवाबदेह

जहां जिले भर में बसे अपनी मर्जी से मनमानी संचालित हो रही हैं वहीं यात्रियों की मजबूरी है कि वे इनके सिवाएं जाए कहा?
जिले में डिंडोरी और शहपुरा के अलावा बस स्टैंड नाम का कोई स्थान ही नहीं है शाहपुर, विक्रमपुर, गाड़ासरई,गोरखपुर, करंजिया, बजाग,अमरपुर,सक्का, मेहदवानी,चाबी,समनापुर सभी जगहो पर यात्री बसे सड़क पर ही अड्डा बनाए हुए हैं। शहपुरा, गाड़ासरई, समनापुर में नाम मात्र के बस स्टैंड हैं जहां यात्रियों के लिए कोई भी सुविधा और साधन उपलब्ध नहीं हैं।
जिला मुख्यालय में राज्य परिवहन निगम द्वारा निर्मित बस स्टैंड यात्रियों की बजाय अवैध कब्जों का शिकार हैं। परिसर में बनी दुकानों की कीमत और उनसे मिलने वाला किराया तो दुकानदार जबलपुर जाकर अग्रिम जमा कराते हैं पर आज तक इस परिसर की रंगाई पुताई मरम्मत और रखरखाव तक करने वाला कोई यहां नजर नहीं आया। जब से इस परिसर का लोकार्पण हुआ उसके बाद निगम ने यहां झाड़ू तक नहीं लगवाई ये अलग बात है कि दुकानदारों के किराए देने में देरी हो जाए तो निगम 15 प्रतिशत जुर्माना लगा देता है और दुकानदारों को। इसका भुगतान करने भी जबलपुर जाना पड़ता है।
जिला मुख्यालय स्थित परिसर के हाल बताते हैं कि अन्य कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में बस अड्डों के हाल क्या होंगे और वहां यात्रियों की सुध लेने वाला कौन है ?

 

 

 

क्यों नहीं यात्रियों कि परवाह किसी को ?

जिले में प्रतिमाह लाखो आम यात्री जिस बस सुविधा पर आश्रित है उसके सुधार की परवाह किसी को इसलिए नहीं है क्योंकि जिले का शासकीय अमला हो या फिर जनप्रतिनिधि सबके पास निजी साधन उपलब्ध हैं जिसके चलते ना तो उनका समस्याओं से सामना होता हैं न उन्हें परवाह हैं।बस जिले का आमयात्री रोज परेशानियां झेलने को मजबूर है बिना किसी उम्मीद के।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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